नयी दिल्ली : रामनाथ कोविंद का राष्ट्रपति बनना लगभग तय है. राष्ट्रपति चुनाव निर्वाचक मंडल के वोटों का गणित पूरी तरह से भाजपा-एनडीए के उम्मीदवाररामनाथ कोविंदकेपक्ष में हैऔरयूपीएकी उम्मीदवारमीराकुमार सिर्फ प्रतिकात्मक लड़ाई लड़तीनजर आ रही हैं. इसकी पुष्टि अंतत: कांग्रेसव यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी के उस बयान से भीहुई, जिसमेंउन्होंने कहा कि भले वोटों का समीकरण पक्ष में नहीं हो लेकिन चुनाव पूरी ताकत व उत्साह से लड़ना चाहिए. बहरहाल, अब जब भाजपा के रामनाथकोविंद का 25 जुलाई को रायसीना हिल पर पहुंचना लगभग तय हो गया है तो राजनेता और राजनीतिक विश्लेषक दोनों यह हिसाब-किताबलगा रहे होंगे कि भाजपा के रामनाथ कोविंदकी जीत से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर क्या असर होगा?
राजनीतिक धाक बढ़ेगी
कोविंद की जीत का पहला और स्पष्ट मतलब होगा नरेंंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी की धाक का और मजबूत होना. कोविंद मोदी और शाह की पसंद हैं, जिनके नाम की कोई अटकलबाजी भी नहीं हो रही थी. इस पद के लिए तो भाजपा के बड़े नाम – आडवाणी, जोशी, सुषमा व सुमित्रा की चर्चा थी. मीडिया में आयी खबरों के अनुसार, राष्ट्रपति पद के एनडीए उम्मीदवारी की घोषणा के दिन बिहार के राजभवन में कोविंद के पास दिल्ली से उस समय फोन आया, जब राष्ट्रपति उम्मीदवार तय करने के लिए भाजपा संसदीय दल की बैठक शुरू ही होने वाली थी. यानी सबकुछसुनियोजित था – क्या करना है, किनको चुनना है.
उत्तरप्रदेशवदलितों को संदेश
मोदी-शाह अपने इस उम्मीदवार के माध्यम से उत्तरप्रदेश की जनता को सीधा साकारत्मक संदेश दे चुके हैं.मोदीइसीप्रदेश सेसांसदहैं.अब राष्ट्रपति भी यहीं सेहोने जा रहे हैं.मोदी-शाह ने देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेशमें लोकसभा चुनाव व विधानसभा चुनाव में जैसी कामयाबीपायीवैसीकामयाबी वह अपने गृह प्रदेश गुजरात में भी कभी नहीं पा सके. राज्य के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी हैं, जिनकी जाति का उल्लेख नहीं होना चाहिए, लेकिन बहुतों के दिमाग में यह बात है कि वह किस वर्ग से आते हैं. कुछ लोग उन्हें प्रभुत्वशाली जाति का प्रतिनिधि मानते हैं.
योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद राज्य के कुछ हिस्सों में जातीय संघर्ष हुए. यह स्थितियां 2019 में भाजपा की संभावनाओं के लिए अच्छी नहीं हैं. ऐसे में राजनीति को कुछ प्रतिकात्मक मायने देना जरूरी हो जाता है. प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने जिन ऐतिहासिक चरित्रों का सबसे ज्यादा उल्लेख किया उनमें बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का नाम भी शामिल है. राजनीति में ऐसे ऐतिहासिक संदर्भ देने के साथ ही मौजूदा संदर्भभी गढ़ना आवश्यकहोता है, जो संवैधानिक सीमाओं के कारण भले अनबोला ही रहे.
उत्तरप्रदेश देश के सबसे बड़ी दलित नेता मायावती का गृह प्रदेश भी है और वहीं से देश के सर्वोच्च पद पर एक दलित का पहुंचना संघ-भाजपा की विचारधारा को मजबूत करने की दिशा में आगे काएक कदम होगा, जिसका अबतक कोविंद प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. संभव है इससे संघ-भाजपा की वैचारिक धरातल दलित समुदाय में और मजबूत हो.
स्वप्न का हकीकत बनने के करीब पहुंचना
रामनाथ कोविंद का राष्ट्रपति उम्मीदवार बनना और जीत के करीब पहुंचना एक स्वप्न के सच होने की तरह है, जिसमें अप्रत्याशित चीजें घटित होती हैं. सामान्य तौर पर राष्ट्रपति उम्मीदवार सत्ताधारी दल का कोई हैविवेट व्यक्तित्व बनाया जाता रहा है या फिर अपवाद के रूप में वैसे लोग जिनका अपने क्षेत्र में बहुत बड़ा नाम हो. जैसे – मिसाइल मेन एपीजे अब्दुल कलाम. रामनाथ कोविंद कभी भाजपा में दबदबे वाले नेता नहीं रहे, न केंद्र में और न अपने गृह राज्य उत्तरप्रदेश में. वे एक लो-प्रोफाइल नेता रहे, जो अपनी राजनीतिक पहचान बनाने के लिए केंद्र व राज्य के दिग्गज व दबदबे वाले नेताओं पर निर्भर थे. जो अभी तीन साल पहले मोदी लहर में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में भी दलित होने के बावजूद भाजपा के टिकट से वंचित रह गये थे.
पर, उन्हें राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाये जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इन पंक्तियों का मर्म समझिए – रामनाथ कोविंद एक अप्रतिम राष्ट्रपति साबित होंगे और गरीबों, वंचितों व हाशिये पर के समाज की मजबूत आवाज बने रहेंगे. वे कानून के जानकार हैं, किसान के बेटे हैं और साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं. दरअसल, यह रामनाथकोविंद की साधारण पृष्ठभूमिभी उनकी असाधारणता है और भविष्य की राजनीति के मद्देनजर इसी असाधारणता पर मोदी-शाह मोहित हो गये.