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प्रणब मुखर्जी के इंदिरा गांधी से नरेंद्र मोदी तक प्रधानमंत्रियों से कैसे रहे संबंध?

नयी दिल्ली : देश के 13वें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की विदाई से संबंधित कार्यक्रम पिछले तीन दिनों से चलरहे हैं. आज रात देश के नाम उनके संबोधन के साथ एक तरह से इस कार्यक्रम का समापन हो जायेगा अौर कल यानी 25 जुलाई, 2017 को नवनिर्वाचित राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद देश के 14वें राष्ट्रपति के रूप […]

नयी दिल्ली : देश के 13वें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की विदाई से संबंधित कार्यक्रम पिछले तीन दिनों से चलरहे हैं. आज रात देश के नाम उनके संबोधन के साथ एक तरह से इस कार्यक्रम का समापन हो जायेगा अौर कल यानी 25 जुलाई, 2017 को नवनिर्वाचित राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद देश के 14वें राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभाल लेंगे. विशाल राजनीतिक व्यक्तित्व के कारण भारतीय राजनीति के मंच से उनका ओझल होना बहुतों के लिए दु:ख पहुंचाने वाली स्थिति होगी. राजनीति में उनकी सक्रिय कमी खलेगी, जो अपने लंबे अनुभव के कारण पक्ष-विपक्ष सबके लिए एक अभिभावक की हैसियत रखते रहे हैं.

प्रणब मुखर्जी एक ऐसे नेता रहे हैं जिन्हें इंदिरा गांधी के निधन के बाद से प्रधानमंत्री पद के लिए योग्य नेता माना गया. वे इंदिरा के कैबिनेट से लेकर मनमोहन तक के कैबिनेट में अहम हैसियत रखते रहे, लेकिन कभी प्रधानमंत्री नहीं बन सके. जब भिन्न विचारधारा के नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तोएक राष्ट्रपति के रूपमेंभी उन्होंने कभी ऐसी असहज स्थिति नहीं उत्पन्न होने दी जिससे मीडिया में अटकलों व चटखारे वालों खबरों का सिलसिला बन सके. हां, कुछ मौकों पर सरकार को टोका, रोका और कुछ मुद्दों पर बयानों के जरिए हस्तक्षेप भी किया.

प्रणब मुखर्जी पर जब इंदिरा गांधी हुईं थी नाराज

वरिष्ठ पत्रकार अदिति फडणीस इंदिरा गांधी और प्रणब मुखर्जी के संबंधों पर एक दिलचस्प किस्से का उल्लेख करती हैं. फडणीस के द्वारा बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखे गये लेख के अनुसार, 1980 में लोकसभा चुनाव का परिणाम आ चुका था, प्रणब लोकसभा चुनाव हार गये थे, कांग्रेस जीत गयी थी. लेकिन, इस जीत के बावजूद परिणाम आने के कुछ घंटे बाद इंदिरा गांधी ने प्रणब मुखर्जी को फोन किया. कहा – इस देश में सबको मालूम था कि आप जीत नहीं सकते, यहां तक की आपकी पत्नी को भी, फिर भी आपको कैसे लगा कि आप चुनाव जीत जाओगे. इसके बाद इंदिरा ने फोन पटक दिया. अदिति फडणीस के अनुसार, इसके दो दिन बाद फिर प्रणब मुखर्जी के पास एक फोन कॉल आया. इस बार लाइन पर दूसरी ओर संजय गांधी थे. उन्होंने प्रणब मुखर्जी से कहा – मम्मी जरूर अापसे गुस्सा हैं, लेकिन वे जानती हैं कि आपके बिना कोई मंत्रिमंडल बन नहीं सकता है.

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प्रणब मुखर्जी से राजीव गांधी के रिश्ते

प्रणब मुखर्जी के राजीव गांधी से रिश्ते अपेक्षाकृत अनुकूल नहीं थे. इंदिरा के निधन के बाद जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने प्रणब कोकैबिनेट से बाहर कर दिया.यह कहा जाता रहा हैकि उस दौर में प्रणब मुखर्जी ने प्रधानमंत्री बनने की इच्छासंकेतोंमें प्रकट की थी. लेकिन, प्रणब ने अपनी किताब द टर्बुलेंट ईयर्स : 1980-1996 में लिखा है कि उन्होंने कभी प्रधानमंत्री बनने की कोशिश नहीं की. उन्होंने लिखा है कि राजीव ने जब मुझे कैबिनेट से निकाल दिया तो मुझे बड़ा दुख हुआ. मैं हैरान रह गया था, लेकिन मैंने उनसे संपर्क करने की काेशिश नहीं की, लेकिन 1989 में जब वे चुनाव हार गये तो हम करीब आए. दरअसल, राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री बने तो वे युवा थे और अपने खास मित्रों पर भरोसा करते थे, उनके पास राजनीतिक अनुभव नहीं था. इस दौर में वीपी सिंह व प्रणब मुखर्जी जैसे कद्दावर नेताओं कीउन्होंनेउपेक्षा की व उनसे संबंध बिगड़े.

प्रणब व नरसिंह राव के रिश्ते

प्रणब मुखर्जी मुखर्जी अनुभवी राजनेता पीवी नरसिंह राव के लिए भी खासे अहम थे. नरसिंह राव लोगों की क्षमता और उनकी उपयोगिता को गहरे समझते थे. जब वे प्रधानमंत्री बने थे तो स्पष्ट रूप से मानते थे कि देश को आर्थिक सुधारों की जरूरत है, ऐसे में उन्होंने वित्तमंत्री के लिए मनमोहन सिंह को चुना, लेकिन कूटनीतिक मोर्चे पर उन्होंने प्रणब मुखर्जी पर भरोसा जतायाव विदेश मंत्री बनाया. वह दौर वैश्विक राजनीति के लिए उथल-पुथल भरा दौर था. कहते हैं, तब नरसिंह राव को प्रणब विरोधियों ने सुझाव दिया था कि उन्हें उत्तरप्रदेश का राज्यपाल बना दिया जाये. कुछ लोग चाहते थे कि उन्हें किनारा कर दिया जाये. इस बात को नरसिंह राव ने हल्के-फुल्के ढंग से उड़ा दिया. उन्होंने कहा कि प्रणब की बांग्ला शैली की हिंदी सुन कर बचे-खुचे लोग भी हमारा साथ छोड़ देंगे.हालांकिप्रणबनेअपनीकिताबमेंबादमेंरावकेकुछफैसलोंकीआलोचनाकी.

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प्रणब व मनमोहन के रिश्ते

मनमोहन सिंह प्रणब मुखर्जी के राजनीतिक जूनियर रहे हैं. 80-90 के दशक में जब प्रणब मुखर्जी कांग्रेस के एक कद्दावर राजनीतिक शख्स व प्रभावी मंत्री के रूप में काम करते थे, तब मनमोहन सिंह नौकरशाह व अर्थशास्त्री के रूप में सरकार में अलग-अलग जिम्मेवारियां संभाला करते थे. इस स्थिति के कारण मनमोहन सिंह के मन में हमेशा प्रणब मुखर्जी के प्रति गहरा सम्मान रहा. मनमोहन सिंह राजनीतिक दल में होते हुए भी एक गैर राजनीतिक शख्स रहे.इस नाते उन्हें जटिल समस्याओं को सुलझाने के लिए एक अनुभवी राजनीतिक शख्स की जरूरत होती थी और सिंह की इस कमी को प्रणब पूरा कर दिया करते थे. याद करें, अन्ना आंदोलन के दौरान वार्ता के लिए बनायी गयी मंत्रियों की तीन सदस्यीय कमेटी जब विफल हो गयी थी, तो मामला प्रणब को सौंपा गया था. प्रणब उस दौर में कांग्रेस पार्टी की समस्याओं को भी सुलझाते थे. एसएम कृष्णा और शशि थरूर के महंगे होटल में टिके होने की खबर को जब मीडिया ने मुद्दा बनाया तो प्रणब ने उन्हें सार्वजनिक रूप से फटकार लगायी और होटल छोड़ने की नसीहत दी. प्रणब मनमोहन सरकार के दर्जनों जीओएम के प्रमुख थे.

इसी तरह का एक दूसरा किस्सा है कि 2004 में जब यूपीए की सरकार बन रही थी, तो प्रणब मुखर्जी को गृहमंत्री बनाने की बात थी, जो प्रोटोकॉल में दूसरे नंबर पर आता है. लेकिन, बाद में रक्षा मंत्रालय उन्हें मिला, इससे उनके करीबी आहत हो गये थे, लेकिन कुछ ही क्षण में प्रणब मुखर्जी ने खुद को इस पद के लिए मानसिक रूप से तैयार कर लिया.

मोदी से प्रणब के रिश्ते

नरेंद्र मोदी प्रणब मुखर्जी के प्रति हमेशा गहरा सम्मान प्रकट करते रहे हैं. लोकसभा चुनाव में भी वह कांग्रेस को घेरने के लिए जबरदस्त ढंग से इस बात को उठा चुुके हैं कि आखिर कांग्रेस ने तमाम योग्यताओं के बावजूद प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री क्यों नहीं बनाया. मोदी ने हाल ही में प्रणब को पितातुल्य बताया था. प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति के रूप में ऐसा कुछ नहीं कहा-लिखा जिससे मोदी सरकार के लिए काफी असहज स्थिति उत्पन्न हो सके. याद कीजिए, जब भीड़ की हिंसा पर प्रणब मुखर्जी ने सवाल उठाया था, तो नरेंद्र मोदी ने कहा था कि आप राष्ट्रपति के बताये रास्ते पर चलें, वे जो कह रहे हैं उसे सुनें. मुखर्जी ने अंत में भी बदलाव को लेकर मोदी की ऊर्जा की तारीफ की. वरिष्ठ पत्रकार व कांग्रेस को करीब से समझने वाले राशीद किदवई बीबीसी हिंदी डॉट कॉम पर लिखते हैं – प्रणब मुखर्जी बेहतरीन प्रधानमंत्री हो सकते थे, जो देश को नहीं मिल पाया… ऐसा लगता है कि वे बहुत सी चीजें बोल सकते थे, लिख सकते थे, कह सकते थे, लेकिन उन्होंने अपने आप को ढाल लिया था और उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी का पूरा सहयोग किया.

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विदाई भाषण में भी इंदिरा को किया याद

प्रणब मुखर्जी ने संसद भवन में रविवार रात आयोजित अपने विदाई कार्यक्रम में एक बार फिर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को याद किया. उन्होंने कहा – मेरे राजनीतिक कैरियर को श्रीमती इंदिरा गांधी ने संरक्षण प्रदान किया, जो एक ऊंची शख्सियत की शख्स थीं. उन्होंने इमरजेंसी से जुड़ी यादें भी ताजा की. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में हार के बाद श्रीमती गांधी 1978 में लंदन गयीं. वहां एक पत्रकार उनसे इमरजेंसी से जुड़े सवाल करने के लिए तैयार था. उसने पूछा – आपको इमरजेंसी से क्या हासिल हुआ? इस पर इंदिरा गांधी ने जवाब दिया – उन 21 महीनों में हमने समाज के सभी तबकों के साथ समग्रता से जुड़ने के लिए स्वयं को तैयार करने के लिए काम किया.

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