भारत और चीन के सीमा विवाद को लेकर जारी गतिरोध के बीच भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार अजीत डोभाल चीन के दौरे पर है. चीनी मीडिया ने पहले तो इस बात की सराहना की और कहा कि डोभाल के इस दौरे से दोनों देशों के बीच रिश्ते में सुधार की गुंजाइश है. चीन की सरकारी मीडिया चाइना डेली डोभाल के दौरे से डोकलाम मसले पर शांतिपूर्ण हल की उम्मीद जता रही थी. वहीं ग्लोबल टाइम्स ने डोभाल को मुख्य ‘ षडयंत्रकर्ता’ बताते हुए कहा कि भारत और चीन के सीमा विवाद के पीछे इसी शख्स का हाथ है.
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अजीत डोभाल के नाम से क्यों चिढ़ता है चीन और पाकिस्तान ?
भारत और चीन के सीमा विवाद को लेकर जारी गतिरोध के बीच भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार अजीत डोभाल चीन के दौरे पर है. चीनी मीडिया ने पहले तो इस बात की सराहना की और कहा कि डोभाल के इस दौरे से दोनों देशों के बीच रिश्ते में सुधार की गुंजाइश है. चीन की सरकारी […]
डोभाल के नाम से क्यों चिढ़ता है पाकिस्तान और चीन
पेइचिंग में ब्रिक्स देशों के ‘नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर्स’ की मीटिंग है, इसी बैठक में हिस्सा लेने डोभाल भी पहुंचे हैx. डोभाल की पृष्ठभूमि राजनायिक की नहीं रही है. अजीत डोभाल आइबी में अधिकारी थे. इस दौरान उन्होंने कई बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया है,. जासूसी पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने की वजह से डोभाल को लेकर भारत के दोनों पड़ोसी मुल्क में अजीब सा खौफ रहता है. पाकिस्तान में लोग यू-ट्यूब पर डोभाल के उन दिनों का भाषण सुनते हैं, जब मुंबई के ताज होटल में आतंकी हमला हुआ था.
मुंबई के 26/11 हमले के बाद एक संस्थान में डोभाल को देश के सुरक्षा पर बोलने के लिए बुलाया गया था, उसमें उन्होंने कहा था कि हमारे दोनों पड़ोसी चीन और पाकिस्तान से हमारे रिश्ते तनावपूर्ण हो जाते हैं. दोनों देश परमाणु हथियारों से लैस राष्ट्र है. ऐसी परिस्थिति में उन्होंने सीधे- सीधे लड़ाई नहीं कर सकते हैं. हमें यह बात सुनिश्चित करना होगा कि अगर पाकिस्तान एक बार भी आतंकी हमला करता हो तो, उसे ब्लूचिस्तान समेत चार टुकड़े होंगे. पाकिस्तान के टीवी न्यूज चैनल समेत ट्वीटर में भी अकसर डोभाल को लेकर कई तरह के किस्से कहे जाते हैं.
डोभाल की नीति क्यों है अलग
भारत में पहली बार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का पद 1998 में सृजित किया गया था. राष्ट्रीय सुरक्षा के बढ़ते खतरे को देखते हुए ब्रजेश मिश्रा को देश का पहला राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया. अब तक डोभाल से पहले देश में चार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार काम कर चुके हैं. देश के पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार ब्रजेश मिश्रा बने. इसके बाद जे एन दीक्षित, एम के नारायणन, शिवशंकर मेनन और अजीत डोभाल भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार बने. पांच राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार में अजीत डोभाल व एम के नारायणन भारतीय पुलिस सेवा से आते थे, बाकी तीन सुरक्षा सलाहाकार का अनुभव विदेश सेवा का था. इस लिहाज से भी देखे तो देश के राष्ट्रीय सुरक्षा में डोभाल की रणनीति बाकियों से अलग होती है.
प्रधानमंत्री मोदी के करीब हैं डोभाल
अजित डोभाल का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बेहद करीबी संबंध है. अकसर विदेश दौरों में अजीत डोभाल प्रधानमंत्री के साथ दिख जाते हैं. यही नहीं कई अहम द्विपक्षीय वार्ता के दौरान भी अजीत डोभाल मौजूद रहते हैं. अजीत डोभाल की नीति भारतीय के सुरक्षा दृष्टिकोण से कितनी सफल है, इस बात का मूल्यांकन उनके कार्यकाल खत्म होने के बाद ही हो सकता है लेकिन इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि बतौर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार अजीत डोभाल भारत और चीन के आंखों में खटकते रहते हैं.
आइबी में शानदार रहा है करियर
अजीत डोभाल 1968 में केरल कैडर से आईपीएस में चुने गए थे, 2005 में इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी के चीफ के पद से रिटायर हुए हैं. वह सक्रिय रूप से मिजोरम, पंजाब और कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों में शामिल रहे हैं. कहा तो यह भी जाता है कि ब्लूस्टार के दौरान गुप्तचर की भूमिका में थे. जब भारत में कंधार विमान का अपहरण हुआ तो आतंकियों से बातचीत के लिए सरकार ने उन्हें ही नियुक्त किया था.
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