कारगिल युद्ध : कंधे में गोली लगने के बावजूद 60 फीट की चढ़ाई चढ़े थे योगेंद्र
3 मई 1999 भारतीय बार्डर पर सेना के लिए बिलकुल आम दिन था. तभी एक गड़ेरिया ने भारतीय सेना को सूचित किया कि सीमा पर पाकिस्तानी आतंकियों और सेना का घुसपैठ हो रहा है. इस बात की खोजबीन के लिए भारतीय जवानों का एक पेट्रोलिंग सीमा पर भेजा गया. बताया जाता है कि पाकिस्तानी आतंकियों […]
3 मई 1999 भारतीय बार्डर पर सेना के लिए बिलकुल आम दिन था. तभी एक गड़ेरिया ने भारतीय सेना को सूचित किया कि सीमा पर पाकिस्तानी आतंकियों और सेना का घुसपैठ हो रहा है. इस बात की खोजबीन के लिए भारतीय जवानों का एक पेट्रोलिंग सीमा पर भेजा गया. बताया जाता है कि पाकिस्तानी आतंकियों ने पांच भारतीय सेनाओं को मार दिया. इसी दौरान पाकिस्तानी सेना ने बमबारी शुरू कर दी. उधर भारतीय सीमा के पास पाकिस्तानी सैनिकों की संख्या बढ़ती जा रही थी. सीमा पर युद्ध जैसी हालत बन चुकी थी. देखते- ही- देखते भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया. भारत और पाक के बीच यह तीसरा युद्ध था. पाकिस्तानी घुसपैठिये और सेना पहाड़ों पर ऊंचे पॉजिशन पर थे. वहीं भारतीय सेना को एक कठिन लड़ाई लड़नी थी क्योंकि दुश्मन सेना लाभ की स्थिति में थी. भारतीय सेना ने अपने सूझ – बूझ और वीरता से कारगिल की लड़ाई में जीत हासिल की. हम चुनिंदा सैनिकों के बहादुरी की कहानी आप तक पहुंचा रहे हैं. यहां युद्ध के उन घटनाओं का विवरण है, कैसे सेना की बहादुरी और रणनीति ने जीत सुनिश्चित किया.
सूबेदार योगेन्द्र सिंह यादव
सबसे कम उम्र में परमवीर चक्र हासिल करने का रिकार्ड बनाने वाले योगेन्द्र सिंह यादव के पिता भी सेना में थे और 1971 का भारत -पाकिस्तान की लड़ाई में हिस्सा ले चुके थे. यादव के कमांडो प्लाटून ‘घटक’ को 1000 फीट के ऊंचाई पर स्थित बर्फीले बंकर पर कब्जा करने का लक्ष्य दिया गया था. यादव रस्सी के सहारे अपने उद्देश्य के लिए बढ़ रहे थे. इस दौरान दुश्मन ने मशीनगन से फायर करना शुरू कर दिया. कंधे में दो गोली लगने के बाद भी इन्होंने 60 फीट की दूरी तय की और चार पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया.
कैप्टन विजयंत थापर
राजस्थान राइफल्स को लोन हिल पर ‘थ्री पिम्पल्स’ से पाकिस्तानियों को खदेड़ने की जिम्मेदारी मिली थी. विजयंत थापर के लिए सबसे बड़ी चुनौती चांदनी रात थी. रात के वक्त भी अगर भारतीय सेना का मूवमेंट होता है तो पाकिस्तानी सैनिकों को आसानी से इंडियन आर्मी का लोकेशंस पता चल जाता . फायरिंग रेंज में होने के बावजूद विजयंत आगे बढ़े और पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ा. भारतीय आर्मी ने ‘थ्री पिम्पल्स’ जीत तो लिया लेकिन विजयंत को खो दिया. विजयंत की यूनिट जो कुपवाड़ा में आतंक विरोधी अभियान चला रही थी, घुसपैठियों को भगाने तोलोलिंग की ओर द्रास भेजी गयी. इसके बाद उन्हें नोल एंड लोन हिल पर ‘थ्री पिम्पल्स’ से पाकिस्तानियों को खदेड़ने की ज़िम्मेदारी मिली. चांदनी रात में पूरी तरह से दुश्मन की फायरिंग रेंज में होने के बावजूद विजयंत आगे बढ़े. हम ‘थ्री पिम्पल्स’ जीत गए.
विक्रम बत्रा
24 साल के कैप्टन विक्रम बत्रा की शहादत की आज भी मिसाल दी जाती है. विक्रम बत्रा को ‘प्वाइंट 5140’ फतह करने की जिम्मेदारी मिली थी. आमने-सामने की लड़ाई में विक्रम बत्रा ने चार पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया. बताया जाता है कि बत्रा पाकिस्तानी फायरिंग रेंज के समीपर पहुंच गये थे. विक्रम बत्रा के वीरता की कहानी यहीं खत्म नहीं हो जाती है. विक्रम बत्रा को 7 जुलाई 1999 को फिर से प्वाइंट 4875 फतह करने की जिम्मेदारी दी गयी. दुश्मन के इलाके में घुसकर की गयी यह लड़ाई बेहद खतरनाक थी लेकिन बत्रा ने पांच पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया. उनके वीरता और शहादत के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.
अनुज नायर
6 जुलाई 1999 चार्ली कंपनी को पिंपल कॉम्पलेक्स में प्वाइंट 4875 कैप्चर करने की जिम्मेदारी दी गयी. शुरुआत में ही कंपनी कमांडर घायल हो गये. इस दौरान पाकिस्तानी आर्मी लगातार मोटार्र दाग रहे थे. कैप्टन नायर का प्लाटून जैसे – जैसे आगे बढ़ रह था, उन्हें दुश्मन के तीन -चार पॉजिशन की जानकारी मिली. पहले पॉजिशन पर पहुंचकर अनुज नायर ने रॉकेट लांचर दागा. खास रणनीति के साथ नायर आगे बढ़ रहे थे और नौ पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया .
कैप्टन मनोज कुमार पांडेय
मनोज कुमार पांडेय सेना में स्पोर्ट्स पर्सन थे. कारगिल युद्ध के दौरान इनके वीरता और साहस के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. बताया जाता है कि मोर्चे में पाकिस्तानी सेना द्वारा भारी गोलीबारी की जा रही थी. उनके पैर और गरदन पर गोली लगी. उन्होंने दो दुश्मनों को मार गिराया और कामयाबी हासिल की.