बाहर के एक आदमी से जानिए अंदर की बात
टीएसआर सुब्रमण्यम का जन्म तामिलनाडु के तनजावोर में हुआ था. उनकी स्कूली शिक्षा तनजावोर में ही हुई. उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय और इम्पीरियल कॉलेज ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी से भी अपनी पढ़ाई की. सुब्रमण्यम ने हार्वड विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन में मास्टर्स की उपाधी ली. 1 अगस्त 1996 से 31 मार्च 1998 तक वह भारत में […]
टीएसआर सुब्रमण्यम का जन्म तामिलनाडु के तनजावोर में हुआ था. उनकी स्कूली शिक्षा तनजावोर में ही हुई. उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय और इम्पीरियल कॉलेज ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी से भी अपनी पढ़ाई की. सुब्रमण्यम ने हार्वड विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन में मास्टर्स की उपाधी ली. 1 अगस्त 1996 से 31 मार्च 1998 तक वह भारत में सबसे बड़े प्रशासनिक पद पर, कैबिनेट सेकरेट्री, थे. सुब्रमण्यम 1961 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में आये थे.
कौशलेंद्र रमण
‘इंडिया एट टìनग प्वाइंट’ सरकार के ‘अंदर’ के आदमी की किताब है जो सरकार से बाहर आने के 17 साल बाद लिखी जाती है. लेखक हैं पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमण्यम . लेखक 37 साल तक भारतीय प्रशासनिक सेवा में रहे. यही उन्हें सरकार के अंदर का आदमी बनाता है. रिटायर हुए 17 साल हो गए हैं. इसलिए अब उन्हें बाहर का आदमी भी कहा जा सकता है. इस बात को लेखक भी मानते हैं. यही वजह है कि जब वह अंदर की बात बताना शुरू करते हैं तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया तक को नहीं छोड़ते हैं.
मनमोहन सिंह जिस समय वित्त मंत्रलय में डिप्टी इकोनॉमिक एडवाइजर थे तब के किस्से भी सुब्रमण्यम ने इस किताब में बयां किये हैं. उन्होंने लिखा है कि कैसे उस समय मंत्रलय में उनके सहयोगी कहते थे कि मनमोहन ने कैसे सीनियर्स के लिए अपने आप को अनिवार्य बना लिया है. मनमोहन यह बहुत जल्दी समझ जाते थे कि उनके बॉस को क्या चाहिए. बॉस के कहने से पहले ही सारा केस हर तरह के तर्को के साथ तैयार रखते थे. उनके इसी गुण की वजह से वित्त मंत्रालय में सुब्रमण्यम के सहयोगियों ने पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि मनमोहन बहुत आगे तक जायेंगे.
मणिशंकर अय्यर पर चुटकी लेते हुए लेखक ने कहा है : उन्हें भारत के ग्रामीण इलाकों के जीवन के बारे में उतनी ही जानकारी है जितनी मुङो अंटार्टकिा के बारे में है.
किसी भी मुद्दे को समझाने-बताने का सुब्रमण्यम का अपना नजरिया है और अपना हास्य है. ये दोनों बातें किताब के सभी अध्याय में मिल जाएंगी. पूरी किताब में 18 अध्याय हैं जिनमें भ्रष्टचार, शिक्षा से लेकर खेल और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर बेबाकी से लिखा गया है. इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि सभी लेखों में सुब्रमण्यम साफ तसवीर रखने के बाद कुछ सुझाव भी देते हैं. इससे पता चलता है कि वह निराशावादी नहीं है.
लेकिन लेखक के मन में यह सवाल हमेशा परेशान करता दिखाता है कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी जनता को उसका वाजिब हक क्यों नहीं मिल पाया. अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य आज भी लोगों की पहुंच से दूर है. पब्लिक सर्वसि का इस्तेमाल प्राइवेट मोटिव के लिए किया जाता है. किताब की भूमिका में ही लेखक ने इसकी चर्चा की है. साथ ही यह भी कहा है कि इसके लिए हम अपने बीते हुए कल को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं क्योंकि कई देशों ने हमारे बाद अपनी विकाय यात्र शुरू की और आज वो हमसे बहुत आगे हैं.
सरकार के कामकाज के बारे में जानने-समझने वालों के लिए यह किताब उपयोगी है. साथ ही यह हर उस भारतीय के लिए उपयोगी है जो यह जानना चाहता है कि उसकी सरकार कैसे काम करती है. वह भारतीय जो जानना चाहता है कि लोगों की इच्छा की बलि चढ़ाकर अपनी इच्छा को कैसे पूरी करते हैं शासक वर्ग के लोग. इस किताब के लिए सबसे पहले नोएडा के गोल्फ कोर्स और उनके पैर का शुक्रगुजार होना पड़ेगा. गोल्फ कोर्स की खराब स्थिति और पैर की तकलीफ की वजह से दो माह तक उन्हें आराम करना पड़ा. इसी दौरान उन्होंने यह किताब लिखी. इसका हिन्दी के साथ-साथ अन्य भाषाओं में भी अनुवाद होना चाहिए.