नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने 32 सप्ताह की गर्भवती 10 वर्षीय बलात्कार पीड़िता को गर्भपात की अनुमति देने का अनुरोध ठुकरा दिया है. न्यायालय ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर विचार किया जिसमें कहा गया हैकि गर्भपात करना न तो इस लड़की के जीवन के लिए अच्छा है और न ही भ्रूण के लिए. न्यायालय ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार प्रत्येक राज्य में ऐसे मामलों में तत्परता से निर्णय लेने के लिए स्थायी मेडिकल बोर्ड गठित करे.
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सुप्रीम कोर्ट ने 10 वर्षीय बलात्कार पीड़िता को नहीं दी गर्भपात की इजाजत
नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने 32 सप्ताह की गर्भवती 10 वर्षीय बलात्कार पीड़िता को गर्भपात की अनुमति देने का अनुरोध ठुकरा दिया है. न्यायालय ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर विचार किया जिसमें कहा गया हैकि गर्भपात करना न तो इस लड़की के जीवन के लिए अच्छा है और न ही भ्रूण के लिए. […]
गौरतलब है कि पीड़िता की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 25 जुलाई को केंद्र सरकार से जवाब तलब किया था. प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड की पीठ ने चंडीगढ विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव से इस मामले में न्याय मित्र के रूप में न्यायालय की मदद करने का अनुरोध किया है. न्यायालय ने बलात्कार पीड़िता का 26 जुलाई को चिकित्सकों के बोर्ड से परीक्षण कराने का भी निर्देश दिया था और इसके लिए माता-पिता में से एक की सहमति लेने को कहा था.
पटना की दुष्कर्म पीड़िता को भी नहीं मिली थी गर्भपात की इजाजत
हालांकि दुष्कर्म के बाद गर्भवती हुई पटना की एक एचआइवी पीड़ित महिला को सुप्रीम कोर्ट से गर्भपात की इजाजत नहीं मिली थी. छह मई को यह खबर आयी थी कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हुई देरी के लिए बिहार सरकार से जवाब मांगा है. सुप्रीम कोर्ट ने एम्स के मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि एक असहाय और एचआइवी पीड़ित 35 साल की महिला के 26 हफ्ते के भ्रूण का गर्भपात नहीं होगा. साथ ही कोर्ट ने बिहार सरकार को पटना की इस महिला को दुष्कर्म पीड़िता फंड से चार हफ्ते के भीतर को तीन लाख रुपये देने के आदेश दिए हैं. महिला के मामले में राज्य सरकार के अथॉरिटी और एजेंसियो द्वारा जो देरी हुई है उसके लिए क्या मुआवजा तय हो, इस पर सुप्रीम कोर्ट अब 9 अगस्त को सुनवाई करेगी.
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