नयी दिल्ली/देहरादून : चीनी सैनिकों ने इस महीने भारतीय क्षेत्र उत्तराखंड के बाराहोती इलाके में दो बार घुसपैठ की लेकिन भारतीय अधिकारियों ने घटनाओं के महत्व को आज कमतर करने का प्रयास किया और कहा कि इन्हें ‘अधिक महत्व’ नहीं दिया जाना चाहिए. अधिकारियों ने कहा कि चीन सेना के करीब 15-20 सैनिक 25 जुलाई की सुबह चमोली जिले में भारतीय क्षेत्र में 800 मीटर भीतर आ गये. घटना राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के ब्रिक्स देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक में हिस्सा लेने के लिए बीजिंग रवाना होने से केवल एक दिन पहले हुई.
यह घटना ऐसे समय में हुई है जब सिक्किम के पास डोकलाम में चीन और भारत के सैनिकों के बीच पहले से ही गतिरोध चल रहा है. भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) सूत्रों ने देहरादून में बताया कि घुसपैठ की पहली घटना 15 जुलाई को और दूसरी 25 जुलाई को हुई. दोनों ही घटनाओं में चीन के करीब 15 से 20 की संख्या में सैनिक भारतीय क्षेत्र में आ गये और वहां पर कुछ समय तक रहे.
जानकारी रखने वाले अधिकारियों ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि 25 जुलाई को पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के सैनिक भारतीय क्षेत्र बाराहोती में घुस आये और वहां दो घंटे रहने के दौरान वहां मवेशी चरा रहे चरवाहों को धमकाया. बाद में भारतीय पक्ष द्वारा विरोध जताने पर चीनी सैनिक वहां से चले गये.
यद्यपि आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि इसी तरह की घटनाएं पूर्व में हुई हैं लेकिन इन्हें सामान्य तरीके से स्थानीय स्तर पर सुलझा लिया गया और इन्हें अधिक महत्व नहीं दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि घुसपैठ दोनों पक्षों की ओर से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की अलग-अलग धारणाओं के चलते होती हैं. आईटीबीपी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा, ‘चीनी सेना के सैनिक हमारे क्षेत्र में आते हैं और कुछ देर रहने के बाद चले जाते हैं. ऐसा दशकों से हो रहा है. यद्यपि हम इसे सामान्य नहीं कह सकते लेकिन यह इतना असामान्य भी नहीं है.’
गत वर्ष जुलाई में भी चीन के सैनिकों ने उत्तराखंड के चमोली जिले में घुसपैठ की थी. बाराहोती उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से करीब 140 किलोमीटर दूर 80 वर्ग किलोमीटर का एक ढलान चारागाह है. यह तीन सीमा चौकियों में से एक है जिसे मध्य सेक्टर कहा जाता है जिसमें उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं.
अधिकारियों ने कहा कि यह ‘विसैन्यीकृत क्षेत्र’ है जहां आईटीबीपी के जवानों को अपने हथियार ले जाने की इजाजत नहीं है. वर्ष 1958 में भारत और चीन ने बाराहोती को एक विवादित क्षेत्र के रूप में सूचीबद्ध किया था जहां दोनों पक्षों में से कोई भी अपने सैनिक नहीं भेजेगा. 1962 के युद्ध के दौरान पीएलए ने मध्य सेक्टर में प्रवेश नहीं किया था और अपना ध्यान पश्चिमी सेक्टर (लद्दाख) और पूर्वी सेक्टर (अरणाचल प्रदेश) पर केंद्रित रखा था.
युद्ध के बाद आईटीबीपी के जवान गैर जंगी तरीके (जिसमें राइफल की नाल जमीन की तरफ रखी जाती है) से इस क्षेत्र में गश्त करते थे. सीमा विवाद के समाधान के लिए वार्ताओं के दौरान भारत जून 2000 में एकतरफा रूप से इस बात पर सहमत हो गया था कि आईटीबीपी के जवान तीन चौकियों-बाराहोती और कौरिल तथा हिमाचल प्रदेश में शिपकी में हथियार लेकर नहीं जायेंगे. आईटीबीपी के लोग सिविल ड्रेस में गश्त करने जाते हैं और बाराहोती के चारागाह में सीमावर्ती गांवों से भारतीय चरवाहे अपनी भेड़ तथा तिब्बत के लोग अपने याक चराने आते हैं.