नयी दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में गैर-मुस्लिमों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिये जाने की मांग वाली जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की आेर से केंद्र सरकार से उसका रुख बताने का निर्देश दिये जाने की पृष्ठभूमि में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष सैयद गैयूरल हसन रिजवी ने कहा है कि राज्य के गैर-मुस्लिमों को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलना चाहिए. रिजवी ने कहा कि मेरा मानना है कि जम्मू-कश्मीर में गैर-मुस्लिमों को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलना चाहिए और अल्पसंख्यकों वाली सुविधाएं भी उनको दी जानी चाहिए. इसके साथ ही, उन्होंने जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे का उल्लेख किया और कहा कि इस बारे में कोई भी फैसला अब केंद्र सरकार और न्यायालय ही करेंगे.
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बीते आठ अगस्त को जम्मू कश्मीर में गैर-मुस्लिमों को अल्पसंख्यक दर्जा देने संबंधी याचिका पर केंद्र सरकार को अंतिम अवसर देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उससे तीन महीने के भीतर इस पर निर्णय लेने को कहा था. प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेएस खेहर, न्यायमूर्ति एके गोयल और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड की पीठ ने केंद्र की इस दलील को स्वीकार किया कि उसे इस मुद्दे पर राज्य सरकार और अन्य किसी भी पक्षकार के साथ सलाह करने के लिए कुछ समय चाहिए.
केंद्र सरकार की पैरवी करते हुए अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार विभिन्न स्तरों पर सलाह-मशविरा कर रही है और इस जनहित याचिका पर उसके रख से अदालत को अवगत कराने के लिए और आठ सप्ताह का समय चाहिए. यह पीठ जम्मू-कश्मीर के वकील अंकुर शर्मा की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिका में न्यायालय से अनुरोध किया गया है कि वह मुस्लिम बहुल जम्मू-कश्मीर राज्य में गैर-मुस्लिमों को अल्पसंख्यक का दर्जा दे, जिससे वह सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ ले सकें.
रिजवी ने कहा कि कुछ महीने पहले मैंने कहा था कि कश्मीरी पंडितों को अल्पसंख्यक कर दर्जा मिलना चाहिए, लेकिन उन्हीं लोगों के एक समूह ने कहा कि वह मुख्यधारा में रहना चाहते हैं. इसके बाद मैंने आगे कुछ नहीं कहा. अब वहां गैर-मुस्लिमों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिये जाने पर सरकार औरअदालत फैसला करेगी. उन्होंने कहा कि आप जानते हैं कि धारा 370 की वजह से बहुत सारी चीजें अलग हैं. इसी वजह से वहां अल्पसंख्यक आयोग नहीं है. केंद्र सरकार इस ताजा मामले पर अपना फैसला करेगी.