डीएम जांच में बड़ा खुलासाः गोरखपुर के बीडीआर मेडिकल काॅलेज में 48 घंटे में 35 आैर बच्चों की चली गयी जान

नयी दिल्ल्ली/गोरखपुर: गोरखपुर के बाबा राघवदास (बीडीआर) मेडिकल काॅलेज में चिकित्सकीय लापरवाही से बीते 48 घंटों के दौरान 35 अन्य बच्चों की मौत हो गयी है. जिलाधिकारी की जांच रिपोर्ट में यह बात सामने आयी है कि बीते 10 से 12 अगस्त के बीच करीब 35 बच्चों की जानें चली गयी हैं. हालांकि, इस मामले […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 17, 2017 8:38 AM

नयी दिल्ल्ली/गोरखपुर: गोरखपुर के बाबा राघवदास (बीडीआर) मेडिकल काॅलेज में चिकित्सकीय लापरवाही से बीते 48 घंटों के दौरान 35 अन्य बच्चों की मौत हो गयी है. जिलाधिकारी की जांच रिपोर्ट में यह बात सामने आयी है कि बीते 10 से 12 अगस्त के बीच करीब 35 बच्चों की जानें चली गयी हैं. हालांकि, इस मामले में सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आैर स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ सिंह यह दावा कर रहे हैं बीडीआर मेडिकल काॅलेज में बच्चों की मौत आॅक्सीजन की कमी से नहीं हुर्इ है. इस बीच, जिलाधिकारी की रिपोर्ट इन दोनों के दावों पर गंभीर सवाल भी खड़ा कर रही है.

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बीडीआर मेडिकल काॅलेज में बच्चों की मौत को लेकर की गयी जांच में यह बात सामने आयी है कि ऑक्सीजन सप्लाई कंपनी पुष्पा सेल्स ने लिक्विड ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित की, जिसके लिए वह जिम्मेदार है. लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई लगातार होती रहे, इसके प्रभारी डॉक्टर सतीश हैं, जो अपना कर्तव्य नहीं निभाने के पहली नजर में दोषी हैं.

जिलाधिकारी की रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑक्सीजन सिलेंडर का स्टॉक संभालने की जिम्मेदारी भी डॉक्टर सतीश पर हैं, जिन्होंने लॉग बुक में एंट्री ठीक समय से नहीं की आैर न ही प्रिंसिपल ने इसे गंभीरता से लिया. प्रिंसिपल डॉक्टर राजीव मिश्रा को पहले ही कंपनी ने ऑक्सीजन सप्लाई रोकने की जानकारी दी थी, लेकिन 10 तारीख को वह मेडिकल कॉलेज से बाहर थे.प्रिंसिपल के बाहर रहने पर सीएमएस, कार्यवाहक प्राचार्य, बाल रोग विभाग के प्रमुख डॉ कफील खान के बीच समन्वय की कमी थी.

रिपोर्ट में कहा गया है कि लिक्विड ऑक्सीजन कंपनी के भुगतान के बारे में आगाह करने के बावजूद और 5 अगस्त को बजट मिल जाने के बाद भी प्रिंसिपल को जानकारी ना देने के लिए लेखा अनुभाग के कर्मचारी दोषी हैं.

इस बीच पिछले 48 घंटे में गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में 35 और बच्चों की मौत हुई है. इन बच्चों की मौत किस कारण हुई, जब ये सवाल प्रिंसिपिल पीके सिंह से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि बीते दिन 24 बच्चों की मौत हुई है. जब इनसे पूछा गया कि क्या आपके पास इंसेफेलाइटिस को लेकर कोई डाटा है, तो उन्होंने कहा कि नहीं, मेरे पास टोटल वॉर्ड का डाटा है.

मीडिया में अब सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि जब बच्चों की मौत के जो नये मामले आये हैं, उनकी सीधी वजह प्रिंसिपल तक नहीं बता पा रहे हैं, तो स्वास्थ्य मंत्री और मुख्यमंत्री ने किस मशीन से जांच लिया था कि 36 बच्चों की जान ऑक्सीजन के ठप होने से नहीं हुई. दूसरा सवाल खड़ा किया जा रहा है कि अगर सरकार कहती है कि ऑक्सीजन सप्लाई ठप होने से बच्चों की मौत हुई नहीं, तो डीएम की जांच रिपोर्ट में सीधे पहला दोषी ऑक्सीजन देने वाली कंपनी को क्यों माना गया ?

ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी को दोषी क्यों माना जा रहा है,जबकि वो 6 महीने से गोरखपुर से लखनऊ तक बकाया भुगतान की जानकारी दे रही थी? जांच रिपोर्ट में सिर्फ ऑक्सीजन सप्लाई कंपनी, प्रिंसिपल और डॉक्टर ही दोषी क्यों, जबकि स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव तक को बकाया बाकी होने की जानकारी थी ? जांच रिपोर्ट कहती है कि ऑक्सीजन सप्लाई जीवन रक्षक कार्य है, तो क्या कोई कंपनी अपने घर से ऑक्सीजन देगी, जबकि छह महीने से कंपनी 63 लाख के बकाए की जानकारी दे रही थी.

उधर, अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी के कारण किसी की मौत होने और इस संबंध में किसी भी प्रकार की लापरवाही बरतने को जघन्य अपराध बताते हुए प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुई बच्चों की मौत के मामले की जांच प्रदेश की मुख्य सचिव की कमेटी के अलावा दिल्ली के तीन विशेषज्ञ डॉक्टरों की एक टीम भी कर रही है. दोनों की रिपोर्ट में जो भी इसके लिए दोषी पाया जायेगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवार्इ की जायेगी.

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