निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है : सुप्रीम कोर्ट
नयी दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को राइट टू प्रायवेसी यानी निजता के अधिकार के मामले में अपना फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है. आपको बता दें कि राइट टू प्रायवेसी को संविधान के तहत मूल अधिकार मानना चाहिए या नहीं, इस पर […]
नयी दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को राइट टू प्रायवेसी यानी निजता के अधिकार के मामले में अपना फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है. आपको बता दें कि राइट टू प्रायवेसी को संविधान के तहत मूल अधिकार मानना चाहिए या नहीं, इस पर शीर्ष अदालत ने सुनवाई के बाद 2 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था. चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अगुवाई वाली 9 सदस्यीय संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई की.
#FLASH Supreme Court's nine judge bench upholds #RightToPrivacy as a fundamental right. pic.twitter.com/dB3yCdABZq
— ANI (@ANI) August 24, 2017
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया. निजता का अधिकार आर्टिकल 21 के तहत है जो निजता का अधिकार जीवन के अधिकार में ही है. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि निजता का अधिकार कुछ तर्कपूर्ण रोक के साथ मौलिक अधिकार है.
खेहर के अलावा इस बेंच में जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस एसए बोडबे, जस्टिस आरके अग्रवाल, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस अभय मनोहर सप्रे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल थे. नौ सदस्यीय पीठ ने सुनवाई के दौरान इस पर विचार किया कि आखिर राइट टू प्रायवेसी के अधिकार की प्रकृति क्या है ? इसके अलावा 1954 और 1962 में राइट टू प्रायवेसी को मूल अधिकार न मानने वाले दो फैसलों का भी अध्ययन किया गया.
गौर हो कि इस मामले की सुनवाई के दौरान आधार कार्ड जारी करने वाली संस्था भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण ने कहा था कि संसद की ओर से बनाये गये तमाम कानून अलग-अलग तरह से इस प्रायवेसी का संरक्षण करते हैं, लेकिन यह मूल अधिकार नहीं माना जा सकता.