…तो क्यों करना पड़ेगा सुहागरात के लिए तीन साल तक का इंतजार

नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बाल विवाह निषेध कानून के होने के बावजूद बाल विवाह की परंपरा बनी रहने पर निराशा जतायी और इस बात को दुर्भाग्यपूर्ण कहा कि ज्यादातर यह कदम लड़की के माता-पिता के कहने पर उठाया जाता है. शीर्ष अदालत उस प्रावधान की वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिका पर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 31, 2017 11:53 PM

नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बाल विवाह निषेध कानून के होने के बावजूद बाल विवाह की परंपरा बनी रहने पर निराशा जतायी और इस बात को दुर्भाग्यपूर्ण कहा कि ज्यादातर यह कदम लड़की के माता-पिता के कहने पर उठाया जाता है. शीर्ष अदालत उस प्रावधान की वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पति को 15 से 18 साल के बीच के आयुवर्ग वाली पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने की अनुमति दी गयी है.

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सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में इस प्रावधान को निरस्त करने से एक अपराध की श्रेणी जुड़ जायेगी. बलात्कार को परिभाषित करने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में एक अपवाद उपबंध जुड़ा हुआ है, जो कहता है कि पति द्वारा अपनी पत्नी बशर्ते पत्नी 15 वर्ष से कम की नहीं हो, के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं होगा.

न्यायमूर्ति एमबी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि यह कठोर वास्तविकता और दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में होने वाले ज्यादातर बाल विवाह लड़की के माता-पिता द्वारा कराये जाते हैं. हालांकि, इसके अपवाद भी हैं कि जब नाबालिग लड़के और लड़की के बीच प्रेम संबंध हो जायें और वे अपनी मर्जी से शादी कर लें. पीठ ने यह भी सवाल किया कि क्या वह भादंसं की धारा 375 के अपवाद दो को निरस्त करके एक अपराध की श्रेणी जोड़ सकती है. संसद इस उपबंध को निरस्त करने से इंकार कर चुकी है.

एनजीओ ‘इनडिपेंडेंट थॉट ‘ की ओर से पेश अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने कहा कि 2013 में सीआरपीसी में हुए संशोधन द्वारा, लड़की द्वारा यौन संबंधों के लिए रजामंदी की उम्र 16 से बढ़ाकर अब 18 कर दी गयी है. उन्होंने कहा कि भादंसं की धारा 375 के अपवाद दो में रजामंदी की उम्र अब भी 15 वर्ष बनी हुई है, जिसके कारण विवाहित बालिका और अविवाहित बालिका के लिए रजामंदी की उम्र में तीन वर्ष का अंतर है. अग्रवाल ने कहा कि भादंसं की धारा 375 का अपवाद दो भेदभावपूर्ण और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.

इस दलीलों पर संज्ञान लेते हुए पीठ ने कहा कि हमें इस कठोर वास्तविकता को स्वीकार करना होगा. इस तरह की शादियां देश में अब भी हो रही हैं और अगर हम इस अपवाद को निरस्त करते हैं, तो इन विवाहों से जन्मे बच्चों का क्या होगा. हमें सभी पहलुओं को अपने दिमाग में रखना होगा.

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