नयी दिल्ली : राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील 64 करोड़ रुपये के बोफोर्स तोप सौदा दलाली कांड शुक्रवार को एक बार फिर उस समय चर्चा में आ गया जब सुप्रीमकोर्ट यूरोप में रहनेवाले उद्योगपति हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ इस मामले में आरोप निरस्त करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के 2005 के फैसले को चुनौती देनेवाली भाजपा नेता अजय अग्रवाल की अपील पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया.
उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति आरएस सोढी (अब सेवानिवृत्त) ने 31 मई, 2005 को हिंदुजा बंधुओं श्रीचंद, गोपीचंद और प्रकाशचंद तथा बोफोर्स कंपनी के खिलाफ सारे आरोप निरस्त करने के साथ ही इस मामले की जांच करने के तरीके के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो पर आक्षेप करते हुए कहा था कि इसकी वजह से करीब 250 करोड़ रुपये की कीमत राजस्व को चुकानी पड़ी. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाइ चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने 12 साल पुरानी इस अपील पर शीघ्र सुनवाई के लिए अंतरिम अर्जी का संज्ञान लेते हुए कहा कि इस मामले को 30 अक्तूबर से शुरू हो रहे सप्ताह में सूचीबद्ध किया जाये. शीर्ष अदालत ने 90 दिन के भीतर उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील दायर करने में केंद्रीय जांच ब्यूरो के विफल रहने पर 18 अक्तूबर, 2005 को अधिवक्ता अजय अग्रवाल की अपील विचारार्थ स्वीकार कर ली थी.
न्यायालय का इस अपील पर शीघ्र सुनवाई की अनुमति देने का निर्देश महत्वपूर्ण है क्योंकि स्वीडन के मुख्य जांचकर्ता स्टेन लिंडस्ट्राॅम द्वारा उच्च स्तर पर कथित रिश्वत के बारे में संकेत को लेकर मीडिया में खबरें आने के बाद भाजपा सांसदों ने संसद में बोफोर्स तोप सौदा दलाली कांड फिर से खोलने की मांग की थी. उत्तर प्रदेश के रायबरेली संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ भाजपा के टिकट पर 2014 का चुनाव लड़नेवाले अजय अग्रवाल ने कहा था कि वह शीर्ष अदालत का ध्यान इस ओर आकर्षित करेंगे कि उन्होंने दलाली की रकम का पता लगाने के लिए प्रवर्तन निदेशालय को पत्र लिखकर विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून, 1999 और धन शोधन रोकथाम कानून, 2002 के तहत जांच करने का अनुरोध किया था.
प्रवर्तन निदेशालय को 28 जुलाई को लिखे पत्र में अग्रवाल ने दावा किया था कि कथित अपराध 2006 तक लगातार हुआ है जब इटली के कारोबारी ओत्तावियो क्वात्रोच्चि के लंदन में दो बैंक खातों पर लगी रोक हटायी गयी. क्वात्रोच्चि इस सौदे में एक बिचौलिया होने की वजह से आरोपी था. भाजपा नेता ने कहा था कि वह सीबीआइ को भी एक पत्र लिखकर इन तथ्यों मामले की जांच की अवस्था के बारे में हलफनामा दाखिल करने के लिये कह रहे हैं, क्योंकि एक दिसंबर, 2016 को संक्षिप्त सुनवाई के दौरान जांच ब्यूरो ने शीर्ष अदालत से कहा था कि प्राधिकारियों ने उसे उच्च न्यायालय के फैसले 31 मई 2005 के खिलाफ अपील दायर करने की अनुमति नहीं दी थी.
न्यायमूर्ति सोढी के 2005 के फैसले से पहले उच्च न्यायालय के ही एक अन्य न्यायाधीश जेडी कपूर (अब सेवानिवृत्त) ने चार फरवरी, 2004 को इस मामले से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को मुक्त करते हुए बोफोर्स कंपनी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 465 के तहत आरोप तय करने का निर्देश दिया था. यह मामला अंतिम बार इस साल 28 फरवरी को सूचीबद्ध हुआ था, लेकिन यह स्थगित हो गया था. भारत और स्वीडिश हथियार निर्माता कंपनी एबी बोफोर्स के बीच 155 एमएम की 400 होवित्सजर तोप भारतीय सेना के लिए आपूर्ति करने हेतु 24 मार्च 1986 को 1437 करोड़ रुपये का सौदा हुआ था. लेकिन, 16 अप्रैल, 1987 को स्वीडिश रेडियो ने दावा किया था कि कंपनी ने भारत के प्रमुख नेताओं और रक्षा अधिकारियों को रिश्वत दी थी.
सीबीाआइ ने इस मामले में आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी, हेराफेरी के कथित अपराध में भारतीय दंड संहिता और भ्रष्टाचार निवारण कानून के प्रावधानों के तहत 22 जनवरी, 1990 को एबी बोफोर्स के तत्कालीन अध्यक्ष मार्टिन पिंटो, कथित बिचौलिये विन चड्ढा और हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी.