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जाने-अनजाने में मिनिमम गवर्नमेंट-मैक्सिमम गवर्नेंस को छोड़ वाजपेयी की राह पर चल पड़े पीएम मोदी

विश्वत सेन उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में जगह खाली होने के बाद भले ही इस समय उसमें तीसरी बार भारी फेरबदल की जा रही हो, लेकिन अपने शासनकाल के तीन साल के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने मिनिमम गवर्नमेंट-मैक्सिमम गवर्नेंस के सिद्धांत को छोड़कर […]

विश्वत सेन

उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में जगह खाली होने के बाद भले ही इस समय उसमें तीसरी बार भारी फेरबदल की जा रही हो, लेकिन अपने शासनकाल के तीन साल के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने मिनिमम गवर्नमेंट-मैक्सिमम गवर्नेंस के सिद्धांत को छोड़कर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की राह पर चल पड़े हैं. यह बात दीगर है कि वर्ष 2014 में हुए आम चुनाव के बाद सत्ता में आने के पहले ही मोदी आैर भाजपा ने अटल, आडवाणी आैर जोशी की तिकड़ी को हाशिये पर खड़ा कर दिया था, मगर अब जबकि मोदी के शासन के तीन साल बाद मंत्रिमंडल में फेरबदल का समय आया है, तो रक्षा मंत्री जैसे अहम मंत्रालयों के मुखिया को चुनने में टीम मोदी के सामने दिक्कतें आ रही हैं. अंदरूनी तौर पर बताया यह जा रहा है कि शायद इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी ने रक्षा मंत्री जैसे अहम मंत्रालयों के मंत्रियों के चयन का काम पार्टी की तिकड़ी के लोगों के जिम्मे सौंप दिया है.

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बता दें कि अपने शासन के तीन साल बाद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी 24 मर्इ, 2003 को मंत्रिमंडल का विस्तार किया गया था. इस मंत्रिमंडल में 2004 में होने वाले आम चुनाव को ध्यान में रखकर एनडीए के घटक दलों समेत जाट, गुर्जर समेत अन्य समुदायों के नेताआें को खुश करने के लिए उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मंत्रिमंडल में फेरबदल के बहाने जिस रास्ते को अख्तियार किये हैं, उस पर अगले साल गुजरात समेत कर्इ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों की छाप साफ दिखार्इ दे रही है. इसके साथ ही, इसमें एक साल 10 महीने बाद वर्ष 2019 में होने वाले आम चुनाव का साया भी साफ दिखायी दे रहा है. यही वजह है कि नये मंत्रिमंडल में जाट नेता के तौर पर पूर्व केंद्रीय मंत्रि साहिब सिंह वर्मा के बेटे परवेश वर्मा को शामिल करने की बात की जा रही है.

अजीत सिंह के इस्तीफे से वाजपेयी को आम चुनाव के ठीक पहले करना पड़ा था फेरबदल

पूर्व प्रधानमंत्री अटल अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में जब 24 मर्इ, 2003 को अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया था, तब तृणमूल कांग्रेस को मंत्रिमंडल विस्तार से बाहर रखने का फैसला किया गया था. उस समय ममता बनर्जी को अपनी ही पार्टी के सुदीप बंदोपाध्याय को मंत्रिमंडल में शामिल करने पर आपत्ति थी. वाजपेयी सरकार के मंत्रिमंडल में फेरबदल का अहम कारण यह था कि राजनीतिक कारणों से तत्कालीन कृषि मंत्री अजित सिंह और वित्त राज्यमंत्री जिंजी रामचंद्रन ने इस्तीफा दे दिया था. उस समय बताया यह गया था कि राष्ट्रीय लोकदल के नेता अजित सिंह ने वाजपेयी सरकार से नाखुश होकर मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया था.रालोद के नेताआें का आरोप था कि अजित सिंह ने किसानों की समस्या पर ध्यान न दिये जाने के विरोध में इस्तीफा दिया

मंत्रियों के काम के भार को कम करना था बहाना

हालांकि, उस समय मंत्रिमंडल में फेरबदल के पीछे प्रधानमंत्री वाजपेयी ने कहा था कि कुछ मंत्रियों के कामकाज के भार को कम करने के लिए फेरबदल किया जा रहा है. उन्होंने यह भी कहा था कि जिनके पास अनेक विभाग हैं, उन मंत्रियों का कार्यभार कम करने के लिए और कुछ नये मंत्रियों को शामिल करने के लिए यह फेरबदल किया जायेगा. उस समय मंत्रिमंडल में 77 मंत्री थे, जिनमें 30 कैबिनट स्तर के और 47 राज्य और उपमंत्री स्तर के थे. 24 मर्इ, 2003 को मंत्रिमंडल में विस्तार के पहले वाजपेयी सरकार ने 2003 की जनवरी में भी अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल किया था. उस समय भाजपा नीत एनडीए सरकार में करीब दो दर्जन सहयोगी दल शामिल थे और वाजपेयी को सभी सहयोगी दलों को ख़ुश रखना मुश्किल साबित हो रहा था. यही वजह है कि 1999 में सरकार बनाने के बाद से लगभग आधी दर्जन बार मंत्रिमंडल में फेरबदल किया था.

सत्ता में आने से पहले टीम मोदी ने तीन धरोहरों को किया था अलग

2014 में आम चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल करने के पहले टीम मोदी ने सबसे पहले भाजपा की तिकड़ी या तीन धरोहर अटल, आडवाणी आैर जोशी को हाशिये पर भेजने का काम किया था. उसी समय उन्होंने इस बात का भी नारा दिया था कि उनकी सरकार मिनिमम गवर्नमेंट आैर मैक्सिमम गवर्नेंस के सिद्धांत पर काम करेगी. गौरतलब है कि भाजपा के तीन धरोहर अटल, आडवाणी, मुरली मनोहर 1990 के दशक से ही पार्टी की विचारधारा आैर कार्यकलापों पर हावी थी. सरकार आैर संगठन में गड़बड़ी होने पर पहली पंक्ति के इन्हीं तीन नेताआें के मशविरे से काम किया था. 1990 के दशक का ही वह वक्त था, जब भाजपा राजनैतिक शक्ति बनकर राष्ट्रीय फलक पर उभरी थी. उसे गंभीरता से लिया जाने लगा था. उसके डेढ़ दशक बाद 2014 में जब टीम मोदी सत्ता में आयी, तब उसके शिखर नेताओं की तिकड़ी को चुपचाप मंच से चले जाने को कह दिया गया.

संगठन आैर सत्ता चलाने के लिए वाजपेयी ने बनायी थी नेताआें की तीन पंक्ति

दरअसल, भाजपा के जरिये राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की हिंदूवादी आैर राष्ट्रवादी विचारधारा को भारतीय राजनीति की मुख्यधारा में लाने का श्रेय अलग-अलग व्यक्तित्व के स्वामी अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी आैर मुरली मनोहर जोशी को ही जाता है. कांग्रेसी समाजवाद और वामपंथी साम्यवाद के बीच उन्होंने दक्षिणपंथ और हिंदू सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के लिए राजनैतिक जगह बनायी. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संगठन आैर शासन चलाने के लिए भाजपा में नेताआें की तीन पंक्तियां बना रखी थी. पार्टी की पहली पंक्ति में अटल, आडवाणी आैर जोशी जैसे नेता शामिल थे. दूसरी पंक्ति में राजनाथ सिंह, वेंकैया नायडू, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, उमा भारती सरीखे नेताआें को शामिल किया गया था. तीसरी पंक्ति में विजय गाेयल, मुख्तार अब्बास नकवी, राजीव प्रताप रूडी, शाहनवाज हुसैन, प्रमोद महाजन जैसे युवाआें का दल शामिल था. प्रधानमंत्री मोदी की टीम सत्ता में आने के पहले ही वाजपेयी की इन तीनों पंक्तियों को ध्वस्त कर दिया था.

भारतीय राजनीति आैर राजनेताआें को साधने के लिए मंत्रिमंडल में भारी फेरबदल

अब जबकि अगले साल देश के कर्इ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति आैर अपने घटक दलों समेत कर्इ समुदायों के नेताआें को साधने के लिए अपने मंत्रिमंडल में भारी फेरबदल कर उनको जगह देने की जुगत में लगे हुए हैं. प्रधानमंत्री मोदी द्वारा मंत्रिमंडल में किये जा रहे फेरबदल के मद्देनजर अन्नाद्रमुक और जदयू के केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने की बात की जा रही है. हालांकि, तमिलनाडु की अन्नाद्रमुक में चल रही आंतरिक कलह की वजह से इसके सरकार में शामिल होने की बात को नकारा जा रहा है. वहीं, जदयू सूत्रों का कहना है कि उन्हें अब तक सरकार में शामिल होने की जानकारी नहीं दी गयी है.

सरकार में शामिल किये जायेंगे ये नेता आैर बदले जायेंगे इनके विभाग

सूत्रों का कहना है कि इस समय दो बड़े मंत्रालय (वित्त एवं रक्षा) संभाल रहे अरुण जेटली के पास एक ही मंत्रालय रह जाये. वहीं, नितिन गडकरी फिलहाल सडक परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री हैं. उन्हें अधिक जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है. हाल में हुई रेल दुर्घटनाओं की नैतिक जिम्मेदारी लेने वाले और इस्तीफे की इच्छा का संकेत देने वाले रेलमंत्री सुरेश प्रभु को किसी दूसरे मंत्रालय में भेजा जा सकता है. स्टील मंत्री बीरेंद्र सिंह समेत कई अन्य मंत्रियों का भी विभाग बदला जा सकता है. पार्टी के बीच संभावित मंत्रियों के तौर पर भाजपा के महासचिव भूपेंद्र यादव, पार्टी के उपाध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे, प्रहलाद पटेल, सुरेश अंगदी, सत्यपाल सिंह, हिमंता बिस्वा सरमा, अनुराग ठाकुर, शोभा करंदलाजे, महेश गिरी और प्रहलाद जोशी का नाम चर्चा में है.

इन घटक दलों के नेता सरकार में हो सकते हैं शामिल

नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जदयू के सरकार में शामिल होने की संभावनाओं के बीच ऐसा माना जा रहा है कि इसके नेता आरसीपी सिंह और संतोष कुमार को चुना जा सकता है. आरसीपी सिंह राज्यसभा में पार्टी के संसदीय दल के नेता हैं. अन्नाद्रमुक के नेता थंबीदुरै ने शुक्रवार को शाह से मुलाकात की थी. यदि तमिलनाडु की यह पार्टी सरकार में शामिल होने का फैसला करती है, तो थंबीदुरैऔर पार्टी नेता पी वेणुगोपाल एवं वी मैत्रेयन अपने राज्य का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं. हालांकि पार्टी ने अभी तक इसकी पुष्टि नहीं की है. इसके अलावा, तेदेपा और शिवसेना जैसे मौजूदा सहयोगियों को भी ज्यादा प्रतिनिधित्व मिलने से जुड़ी चर्चाएं गर्म हैं.

इस समय मंत्रिमंडल में हैं 73 मंत्री

मंत्री परिषद में फिलहाल प्रधानमंत्री समेत 73 मंत्री हैं. मंत्रियों की अधिकतम संख्या 81 से ऊपर नहीं जा सकती. संविधान के संशोधन के अनुसार, यह सीमा लोकसभा की सदस्य संख्या यानी 545 के 15 फीसदी से ऊपर नहीं जा सकती. कुछ पद रिक्त होने के कारण कई वरिष्ठ मंत्री दो-दो विभाग भी संभाल रहे हैं. जेटली के अलावा हर्षवर्धन, स्मृति ईरानी और नरेंद्र सिंह तोमर के पास अतिरिक्त प्रभार हैं. मई, 2014 में पद संभालने के बाद मोदी अब तक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ही तरह दो बार मंत्री परिषद को विस्तार दे चुके हैं. पहला विस्तार नौ नवंबर, 2014 को और दूसरा विस्तार, पांच जुलाई 2016 को दिया गया.

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