#Teachers_Day : सफलता की राह दिखाती हैं डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की ये 15बातें…

रांचीः पांच सितंबर यानी शिक्षक दिवस. भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान शिक्षाविद डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है. 1962 से हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है. गुरु-शिष्य की अनूठी परंपरा के प्रवर्तक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 40 वर्षों तक शिक्षक के रूप में कार्य […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 4, 2017 10:51 PM

रांचीः पांच सितंबर यानी शिक्षक दिवस. भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान शिक्षाविद डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है. 1962 से हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है. गुरु-शिष्य की अनूठी परंपरा के प्रवर्तक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 40 वर्षों तक शिक्षक के रूप में कार्य किया. शिक्षक दिवस के मौके पर जानते हैं उनके विचार, जीवन से जुड़ी कुछ बातें, जो हमें सफलता की राह दिखाती हैं.

अपने विद्यार्थियों का स्वागत हाथ मिलाकर करते थे राधाकृष्णन

आज शिक्षक दिवस है. ऐसे में शिक्षक का नाम लेते ही सबसे पहले महान शिक्षाविद और गुरुओं के गुरु डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का चेहरा जेहन में तैरने लगता है. सिर पर सफेद पगड़ी, सफेद रंग की धोती और कुर्ता. कुर्ता हमेशा बंद गले का होता था. इसी लिबास में वह हमेशा नजर आते थे. यह लिबास उन्हें बेहद पसंद था. उनकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वह अपने विद्यार्थियों का स्वागत हाथ मिलाकर करते थे. उनका सादा जीवन और शिक्षा के प्रति समर्पण हमें कई सीख देते हैं. मौजूदा दौर में उनके अनमोल विचार हमें प्रेरित करते हैं.

सफलता की कुंजी हैं डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन की ये 15बातें

  • शिक्षक का काम सिर्फ विद्यार्थियों को पढ़ाना ही नहीं है बल्कि पढ़ाते हुए उनका बौद्धिक विकास भी करना है.
  • शिक्षा मानव और समाज का सबसे बड़ा आधार है.
  • अच्छा शिक्षक वह है, जो ताउम्र सीखता रहता है और अपने छात्रों से सीखने में भी कोई परहेज नहीं करता हो.
  • उच्च नैतिक मूल्यों को अपने जीवन में उताकर उसे आत्मसात करे.
  • शिक्षक समाज का निर्माता होता है. समाज के निर्माण में उसकी अहम भूमिका होती है.
  • शिक्षा द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है. ऐसे में पूरे विश्व को एक ही इकाई मानते हुए शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए.
  • कोई भी आजादी तब तक सच्ची नहीं होती है, जब तक उसे पाने वाले लोगों को विचारों को व्यक्त करने की आजादी न दी जाये.
  • शिक्षक वह नहीं, जो तथ्यों को छात्रों के दिमाग में जबरन डालने का प्रयास करे. सही मायने में शिक्षक वही है, जो उसे आने वाली चुनौतियों के लिये तैयार करे.
  • किताबें पढ़ने से एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची खुशी मिलती है.
  • पुस्तकें वह माध्यम हैं, जिनके जरिये विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण किया जा सकता है.
  • शिक्षा का परिणाम एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति होना चाहिए, जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के खिलाफ लड़ सके.
  • ज्ञान के माध्यम से हमें शक्ति मिलती है. प्रेम के जरिये हमें परिपूर्णता मिलती है.
  • हमें तकनीकी ज्ञान के अलावा आत्मा की महानता को प्राप्त करना भी जरूरी है.
  • शांति राजनीतिक या आर्थिक बदलाव से नहीं आ सकती बल्कि मानवीय स्वभाव में बदलाव से आ सकती है.
  • हर्ष और आनंद से परिपूर्ण जीवन केवल ज्ञान और विज्ञान के आधार पर संभव है.

डॉ सर्वपल्‍ली राधाकृष्‍णन को जानिये

देश के पहले उप-राष्‍ट्रपति और दूसरे राष्‍ट्रपति डॉ सर्वपल्‍ली राधाकृष्‍णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुमनी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. बचपन से ही वे किताबें पढ़ने के शौकीन थे. स्वामी विवेकानंद और वीर सावरकर से वह काफी प्रभावित थे. 40 वर्षों तक उन्होंने शिक्षक के रूप में कार्य किया. 1954 में देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से उन्हें सम्मानित किया गया. भारत रत्न, ऑर्डर ऑफ मेरिट, नाइट बैचलर और टेम्पलटन समेत कई सम्मानों से उन्हें नवाजा गया है. 1952 से 1962 के बीच वह देश के उपराष्ट्रपति रहे. 1962 में डॉ राजेंद्र प्रसाद का कार्यकाल खत्म होने के बाद राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति का पद संभाला. 1962-67 तक वह देश के राष्ट्रपति रहे. चेन्नई में 17 अप्रैल 1975 को उनका निधन हो गया.

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