Loading election data...

आखिर चीनी राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग को आयी पंचशील समझौते की याद

नयी दिल्ली : भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को पंचशील समझौते की याद आ गयी है. पीएम मोदी से मिलने के बाद जिनपिंग ने कहा कि चीन, भारत के साथ मिलकर पंचशील के सिद्धांत के तहत काम करने के लिए तैयार है. उन्होंने कहा कि चीन और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 5, 2017 12:01 PM

नयी दिल्ली : भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को पंचशील समझौते की याद आ गयी है. पीएम मोदी से मिलने के बाद जिनपिंग ने कहा कि चीन, भारत के साथ मिलकर पंचशील के सिद्धांत के तहत काम करने के लिए तैयार है. उन्होंने कहा कि चीन और भारत प्रमुख पड़ोसी हैं, दोनों विकासशील और उभरते देश हैं. आइए हम यहां आपको पंचशील समझौते के संबंध में बताते हैं.

पंचशील समझौते पर भारत और चीन के बीच 29 अप्रैल 1954 को हस्ताक्षर हुआ था. यह समझौता चीन के क्षेत्र तिब्बत और भारत के बीच व्यापार और आपसी संबंधों को लेकर समझौता हुआ था. इस समझौते की प्रस्तावना में पांच सिद्धांत थे जो अगले पांच साल तक भारत की विदेश नीति के लिए कारगर साबित हुए.

#BRICSSUMMIT : चीन में भी ‘सबका साथ सबका विकास’ की बात, पढ़ें भारतीय प्रधानमंत्री के दस सुझाव

समझौते के बाद ही हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे लगे और भारत ने गुट निरपेक्ष रवैया अपनाया. 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में इस संधि की मूल भावना तार-तार हो गयी. पंचशील शब्द ऐतिहासिक बौद्ध अभिलेखों से लिया गया है जो कि बौद्ध भिक्षुओं का व्यवहार निर्धारित करने वाले पांच निषेध होते हैं. तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने वहीं से ये शब्द उठाया था. समझौते के बारे में 31 दिसंबर 1953 और 29 अप्रैल 1954 को बैठकें हुई थीं जिसके बाद अंततः बेइजिंग में इसपर सहमति बनी.

ब्रिक्स समिट : आतंकवाद पर मोदी की कूटनीति में फंसा चीन, घिरा पाक, पढ़ें कैसे

यह समझौता मुख्य तौर पर भारत और तिब्बत के व्यापारिक संबंधों पर केंद्रित है मगर इसे याद किया जाता है इसकी प्रस्तावना की वजह से जिसमें पांच सिद्धांत हैं-

ये है पंचशील

एक दूसरे की अखंडता और संप्रभुता का सम्मान

परस्पर अनाक्रमण

एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना

समान और परस्पर लाभकारी संबंध

शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व

इस समझौता को नहीं भुलाया जा सकता
पंचशील समझौते के तहत भारत ने तिब्बत को चीन का एक क्षेत्र स्वीकार कर लिया था जिसके बाद उस समय इस संधि ने भारत और चीन के संबंधों के तनाव को काफी हद तक दूर कर दिया था. भारत को 1904 की ऐंग्लो तिबतन संधि के तहत तिब्बत के संबंध में जो अधिकार मिले थे भारत ने वे सारे इस संधि के बाद त्याग दिये, हालांकि बाद में इस समझौते पर सवाल भी उठाये गये. कुछ लोगों ने पूछा कि समझौते के एवज में भारत ने सीमा संबंधी सारे विवाद निपटा क्यों नहीं लिये. मगर इसके पीछे भी भारत की मित्रता की भावना मानी जाती है कि उसने चीन के शांति और मित्रता के वायदे को सम्मान दिया और निश्चिंत हो गया. पंडित नेहरू ने अप्रैल 1954 में संसद में इस संधि का बचाव करते हुए कहा था कि ये वहां के मौजूदा हालात को सिर्फ़ एक पहचान देने की तरह ही है. ऐतिहासिक और व्यावहारिक कारणों से ये क़दम उठाया गया. नेहरु ने क्षेत्र में शांति को सबसे ज्यादा अहमियत दी और उन्हें चीन में एक विश्वसनीय दोस्त नजर आया. इसके बाद भी जब भारत और चीन संबंधों की बात होती है तब इस सिद्धांत का जिक्र जरूर होता है. इस संधि को भले ही 1962 में ज़बरदस्त चोट पहुंची हो लेकिन अंतरराष्ट्रीय संबंधों में इसका अमर दिशानिर्देशक सिद्धांत हमेशा जगमगाता रहेगा.

Next Article

Exit mobile version