नयीदिल्ली : आजहमारेदूसरे राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णनकाजन्मदिन है.उनकेजन्मदिन को पूराभारत शिक्षक दिवस के रूप में मनाताहै.हिंदुस्तान का शायदही कोई ऐसा बच्चाहोजिसनेस्कूली शिक्षा पायीहो और वह डॉ राधाकृष्णन को नहीं जानता हो.डॉराधाकृष्णनएकमहानशिक्षक थे और उनकी यह पहचान उनके राष्ट्रपति बनने से भीऊंचीथी.देश की दोऔर बड़ी हस्तियांऐसी हैं, जिनकीशिक्षक या शिक्षाविद वाली पहचान ही हमेशा मजबूत रही. एक हैं – पंडितमदनमोेहन मालवीय, जिन्होंने आधुनिक भारत के सबसे बड़े विश्वविद्यालय काशी हिंदू विश्वविद्यालय की नींव रखी और दूसरे हैं वैज्ञानिक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम. डॉ कलाम राष्ट्रपति पद से रिटायर होने के बाद फिर से शिक्षण में लौट गये थे और उनकानिधन भी भी लेक्चर देने के दौरान ही हुआ. हम इन तीन महान लोगों से जीवनसेकई चीजें सीख सकते हैं.
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन से सीखेंपूर्णता कापाठ
डॉ राधाकृष्णन ने 40 साल तक शिक्षणकार्य किया. पांच सितंबर 1988 को जन्मे डॉ राधाकृष्णन की प्रतिभा का अंदाज इस बात से ही आप लगा सकते हैं कि राष्ट्रपति बनने से पहले ही उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया. डॉ राधाकृष्णन पूरी दुनिया को ही स्कूल मानते थे. वे छात्रों को इस बात के लिए प्रेरित करते थे कि वे अपने जीवन में उच्च नैतिक मूल्यों को अपनायें. वे जिस विषय या अध्याय को पढ़ाते थे पहले उसका खुद अच्छे से अध्ययन करते थे. यानी उनका यह गुण किसी काम को संपूर्णता में करने की सीख देता है. वे पूरे मानव समुदाय को एक ही जाति मानते थे यानी वे वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत में विश्वास करते थे. वे मनुष्य मस्तिष्क के सदुपयोग के हिमायती थे. वे विश्व शांति की स्थापना की पैरोकारी करते थे. वे कहते थे कि शिक्षक को सिर्फ अध्यापन कर संतुष्ट नहीं होना चाहिए बल्कि छात्रों को स्नेह भी देना चाहिए और उनका आदर भी करना चाहिए. यानी आदर का प्रवाह सिर्फ छोटे से बड़े की ओर ही नहीं बल्कि बड़े से छोटे की ओर भी होना चाहिए. डॉ राधाकृष्णन 1939 से 1948 तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चांसलर भी रहे थे.
पंडित मदन मोहन मालवीय से सीखें संकल्प कापाठ
जिस काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एक दशक तक डॉ राधाकृष्णन चांसलर रहे, उसकी स्थापना पंडित मदन मोहन मालवीय ने की थी. मालवीय जी एक महान शिक्षाविद थे. उन्होंने शिक्षा, पत्रकारिता व स्वतंत्रता संग्राम में बड़ा योगदान दिया. वे चार बार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. उन्होंने देश के सबसे बड़े विश्वविद्यालय की नींव राज घरानों, उद्योगपतियों व अन्य लोगों से आर्थिक सहयोग मांग कर की. जमीन स्थानीय लोगों से मांगी. उनका यह संकल्प हमें संकल्प शक्ति की सीख देता है. अगर आपके इरादे नेक हों तो और आप संकल्पवान हो तो आप बड़ा से बड़ा काम कर सकते हैं. वे चार बार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. इतनी बार आजादी के पूर्व कांग्रेस अधिवेशनों की अध्यक्षता कम ही लोगों ने की थी. एकबार उन्हें अपने विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले एक दलित छात्र केबारेमें सूचना मिली की मेस वालाउनकेसाथ छूआछूत करता है, इस सूचना के बाद वे खुद उस छात्र का बरतन धोने के लिए हॉस्टल पहुंच गए, जिससे मेस वाला भावुक होकर रोने लगा औरमालवीयजीसे क्षमायाचना करने लगा. उसकी आखें पर जातिवाद की जो पट्टी बंधी थी खुल गयी. जिस छात्र के साथ ऐसा व्यवहार हुआ था वह आगे चल कर बड़ा नेता बना. उच्च कुलीन ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने वाले मालवीयजी यह सीख देते हैं कि छूआछूत नहीं मानो, अपने ढंग से इसका विरोध करो, सभी मनुष्य एक समान हैं.
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम से सीखें कठिनाइयों से पारा पाना
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का पूरा नाम अबुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम है. वे देश के ग्यारहवें राष्ट्रपति बने और मिसाइल मैन के नाम से मशहूर हैं. उनकी एक किताब है – अग्नि की उड़ान. उसे हर छात्र को अवश्य पढ़ना चाहिए. इसमें उन्होंने अपनी जीवन यात्रा कीपृष्ठभूमि में देश-समाजका अद्भुतचित्रण किया है. एक गरीब परिवार में जन्मे कलाम ने आर्थिक कठिनाइयों से पार पाकर शिक्षा पायी. वे ट्रेन लाइन पर गिराये गये अखबार का वितरण करते थे और उससे कुछ धन एकत्र हो जाता था. उनका यह गुण संघर्ष की सीख देता है. उनके जीवन पर उनके शिक्षक इयादुराई सोलोमन ने उनसे कहा था कि जीवन में सफलता तथा अनुकूल परिणाम प्राप्त करने के लिए तीव्र इच्छा, आस्था, अपेक्षा इन शक्तियों का भलीभांति समझ लेना और उन पर प्रभुत्व स्थापित करना चाहिए. डॉ कलाम इस सूत्र को अपने जीवन में मानते थे. उन्होंने अपने शिक्षकों से ही नेतृत्व का गुण सीखा. हम और आप कलाम साहब की जिंदगी से ये चीजें सीख सकते हैं.