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कौन थीं कर्नाटक की चर्चित पत्रकार गौरी लंकेश, जिनके तर्कवादी विचार ने बना दिये उनके दुश्मन?

बेंगलुरु : बेंगलुरु में मंगलवार रात‘फायर ब्रांड’ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या कर दी गयी. उनकी हत्या उनके आवास के बाहर हुई. गौरी लंकेश की पहचान एक व्यवस्था विरोधी पत्रकार की थी, जो गरीबों और दलितों की हितैषी थीं. साथ ही उन्हें हिंदुत्वादी राजनीति का कट्टर विरोधी माना जाता था. कन्नड़ पत्रकारिता में कुछ महिला […]

बेंगलुरु : बेंगलुरु में मंगलवार रात‘फायर ब्रांड’ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या कर दी गयी. उनकी हत्या उनके आवास के बाहर हुई. गौरी लंकेश की पहचान एक व्यवस्था विरोधी पत्रकार की थी, जो गरीबों और दलितों की हितैषी थीं. साथ ही उन्हें हिंदुत्वादी राजनीति का कट्टर विरोधी माना जाता था. कन्नड़ पत्रकारिता में कुछ महिला संपादकों में शामिल गौरी प्रखर कार्यकर्ता थीं जो नक्सल समर्थक थीं और वामपंथी विचारों को खुले तौर पर प्रकट करती थीं. गौरी जिस टेबलायड का प्रकाशन करती थीं, उसके लिए कोई विज्ञापन नहीं लेती थीं. वे 50 लोगों के समूह के माध्यम से उसे चलाती थीं. वे सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ आवाज उठाती थीं. वे हमेशाप्रेसकी स्वतंत्रता एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की समर्थक रहीं. वे प्रोपेगंडा फैलाने एवं फेक न्यूज के खिलाफ भी आवाज उठाती थीं.

पिता से ली पत्रकारिता की दीक्षा
वर्ष 1962 में जन्मीं गौरी कन्नड़ पत्रकार और कन्नड़ साप्ताहिक टैबलॉयड ‘लंकेश पत्रिका ‘ के संस्थापक पी लंकेश की बेटी थीं. उनकी बहन कविता और भाई इंद्रजीत लंकेश फिल्म और थियेटर हस्ती हैं. अपने भाई और पत्रिका के प्रोपराइटर तथा प्रकाशक इंद्रजीत से मतभेद के बाद उन्होंने लंकेश पत्रिका के संपादक पद को छोड़कर 2005 में कन्नड टैबलॉयड ‘गौरी लंकेश पत्रिका ‘ की शुरुआत की थी.
एक एक्टिविस्ट पत्रकार
गौरी ने खुद को एक्टिविस्ट पत्रकार बताया था. उन्होंने तमाम विवादों के बावजूद कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. भाजपा सांसद प्रह्लाद जोशी और पार्टी पदाधिकारी उमेश दोषी द्वारा दायर मानहानि मामले में पिछले वर्ष हुबली के मजिस्ट्रेट की अदालत ने उन्हें दोषी करार दिया था जिन्होंने 23 जनवरी 2008 को उनकी पत्रिका में प्रकाशित एक खबर पर आपत्ति जताई थी.गौरी समाज की मुख्य धारा में लौटने के इच्छुक नक्सलियों के पुनर्वास के लिए काम कर चुकी थीं और राज्य में सिटीजंस इनिशिएटिव फॉर पीस (सीआईपी) की स्थापना करने वालों में शामिल रही थीं.
गौर लंकेश कर्नाटक सरकार द्वारा नक्सलियों के समर्पण के लिए वार्ता हेतु बनायी गयी कमेटी की सदस्य भी थीं. उनकी हत्या पर मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने दु:ख प्रकट करते हुए दोषियों पर शीघ्र कार्रवाई की बात कही है.
कई आंदोलनों का हिस्सा थीं
संघ परिवार का विरोध करने के लिए उन्होंने बाबाबुदंगी आंदोलन का नेतृत्व किया. वह दलितों और किसानों के कई समूहों से जुड़ी थीं. वे स्वतंत्रता सेनानी एचएस दोसस्वामी के समूह के साथ मिलकर नक्सलियों को मुख्यधारा से जोड़ने के काम में जुटीं थीं. गौरी ने एक बार कहा था कि हिंदुत्ववादी राजनीति और जाति व्यवस्था की मैं आलोचना करती हूं तो लोग इसे मेरा हिंदुओं के प्रति नफरत बताते हैं, लेकिन मैं इसे अपना संवैधानिक कर्तव्य मानती हूं बाबा साहेब के संघर्ष को सफल बनाने और समता वादी समाज की स्थापना की ओर बढ़ने की दिशा में.

आखिर चुप क्यों कराया जा रहा है तर्कशील लोगों को
गौरी लंकेश के पहले हिंदूवादी विचारधारा को चुनौती देने वाले पत्रकार एमएम कलबुर्गी और महाराष्ट्र के लेखक नरेंद्र दाभोलकर की हत्या की गयी थी. कलबुर्गी ने लिंगायत समुदाय की कुछ पूजा परंपराओं का विरोध किया था. लिंगायत समुदाय कर्नाटक में बहुतायत में मौजूद है, जबकि नरेंद्र दाभोलकर ने समाज में व्याप्त अंधविश्वास का विरोध किया था.

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