मुंबई : 1993 में हुए मुंबई सीरीयल बम ब्लास्ट केस में आज अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम को उम्रकैद की सजा सुनाई गयी है. इस मामले की सुनवाई करतेहुए टाडा अदालत ने गुरुवार को अहम फैसला सुनाते हुए अबू सलेम के साथ ही हथियारसप्लाई के आरोपी करीमुल्लाह शेख को भी उम्रकैद की सजा देते हुए 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है.वहीं ताहिर मर्चेंटऔर फिरोज अब्दुल राशिद खान को मौत की सजा सुनायीगयी है. जबकि रियाज सिद्दीकी को 10 साल की सजा सुनायीगयी है. पूरी सुनवाई के दौरान अबू सलेम सहित सभी दोषी अदालत में मौजूद रहे. मालूम हो कि मुंबई सीरीयल बम ब्लास्ट के मामले में विशेष टाडा अदालत ने डोसा और सलेम समेतछह को दोषी करार दिया था.
इस मामले में रियाज सिद्दीकी को 10 वर्ष की सजा सुनाई, लेकिन रियाज सिद्दीकी जेल में 10 वर्ष बिता चुका है इसलिए उसे जेल से रिहा कर दिया जाएगा. वहीं अब्दुल कय्यूम को अदालत ने साक्ष्य के अभाव में पहले ही रिहा कर चुकी है जबकि एक अन्य आरोपी मुस्तफा डोसा की मृत्यु हो चुकी है.
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कौन है अबू सलेम
मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक सलेम पर हथियार और गोलाबारूद सहित एके-47 राइफल और हथगोला आपूर्ति का आरोप था, जिसका विस्फोट में इस्तेमाल किया गया था. इसे गुजरात से मुंबई लाया गया था. सलेम पर गुजरात से मुंबई हथियार ले जाने का आरोप है. सलेम ने अवैध रूप से हथियार रखने के आरोपी अभिनेता संजय दत्त को एके 56 राइफलें, 250 कारतूस और कुछ हथगोले 16 जनवरी 1993 को उनके आवास पर उन्हें सौंपे थे. दो दिन बाद 18 जनवरी 1993 को सलेम और दो अन्यसंजय दत्त के यहां गये और वहां से दो राइफलें तथा कुछ गोलियां लेकर वापस आए थे.
कौन है फिरोज
1993 के मुंबई ब्लास्ट केस में फांसी की सजा पाने वाला फिरोज अब्दुल राशिद को पुलिस ने नवी मुंबई से गिरफ्तार किया था. फिरोज पर आरोप है कि वह दुबई में साजिश के लिए बुलायी गयी बैठक में शामिल हुआ. उसने हथियार और विस्फोटक लाने में मदद की थी.
कौन है ताहिर मर्चेंट
मुंबई ब्लास्ट केस में फांसी कीसजापाने वाले ताहिर मर्चेंट को कोर्ट ने धमाकों के लिए पैसे जुटाने और कई आरोपियों को ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान भिजवाने का दोषी पाया. ताहिर मर्चेंट को ताहिर तकल्या के नाम से भी जाना जाता है.मुंबई बम ब्लास्ट के बाद ताहिर मर्चेंट फरार हो गया है और 2010 तक भगोड़ा रहा. हालांकि 2010 में सीबीआइ ने ताहिर को अबूधाबी से गिरफ्तार किया. ताहिर मर्चेंट याकूब मेनन का बेहद करीबी था. 1993 में कोर्ट ने ताहिर के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था. मर्चेंट ने धमाके के बाद कई लोगों को दुबई बुलाया और वहां उसे उन्हें हथियारों की ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान भिजवाया. मर्चेंट ने कथित रूप से इन लोगों के लिए यात्रा दस्तावेज और पैसे उपलब्ध कराये. इसके लिए मर्चेंट 1993 ब्लास्ट की साजिश रचते हुए दुबई में कई मीटिंग अटेंड की. इन मीटिंगों में याकूब मेमन और दाऊद इब्राहिम शामिल होते थे.
कौन है अब्दुल कय्यूम
मुंबई सीरीयल ब्लास्ट केस में एक अन्य प्रमुख आरोपी अब्दुल कयूम को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया था. फिल्मअभिनेता संजय दत्त के घर हथियार और गोला-बारूद पहुंचाने मेंअब्दुल कयूम ने अबू सलेम का साथ दिया था. कयूम को 13 फरवरी, 2007 को गिरफ्तार किया गया था.
कौन है रियाज सिद्दीकी
1993 मुंबई सीरीयल बमब्लास्टकेसमें आरोपी रियाज सिद्दीकी को 10 वर्ष की सजा सुनायीगयी है. हालांकि, रियाज जेल में 10 वर्ष बिता चुका है इसलिए उसे जेल से रिहा कर दिया जाएगा. रियाज सिद्दीकी पर आरोप है किउसने आरडीएक्स से भरी मारुति वैन चला कर गुजरात के भरुच इलाके में ले गयाफिर उसने वो गाड़ी अबू सालेम के हवाले कर दी.
कौन है मुस्तफा दोसा
इस मामले में एक अन्य दोषी मुस्तफा दोसा का दिल का दौरा पड़ने से पहले ही मौत हो चुकी है. मुस्तफा को साल 2004 में संयुक्त अरब अमीरात से प्रत्यर्पित कर लाया गया था, जिसकी 28 जून 2017 में मौत हो गयी. मुस्तफा दोसा को दिल का दौरा पड़नेकेबाद जेजे अस्पताल में भर्ती कराया गया था. विशेष टाडा अदालत ने 16 जून को ही उसे दोषी करार दिया था. सीबीआइ ने मुंबई बम ब्लास्ट केस में दोसा की भूमिका को याकूब मेनन से अधिक गंभीर करार देते हुए अदालत से उसके लिए सजा-ए-मौत की मांग की थी, लेकिन सजा का ऐलान होने से पहले ही उसकी मौत हो गयी. बता दें कि याकूब मेनन को फांसी दी जा चुकी है.
मुंबई बम ब्लास्ट मामले में सबसे पहले 2006 में आया था अहम फैसला
1993बमब्लास्टकेसमें सबसे पहले और अहम फैसला 2006 मे आया था. तब 123 अभियुक्तों में से 100 को सजा सुनाई गयी थी.जबकि 23 को बरी कर दिया गया था. जिन अभियुक्तों को सजा सुनाई गयी थी उनमेंबॉलीवुड अभिनेता संजय दत्त भी शामिल थे. इसी फैसले में याकूब मेमन को फांसी की सजा सुनायीगयी थी. याकूब 1993 धमाकों में वांटेड टाइगर मेमन का भाई था. याकूब मेमन को 30 जुलाई 2015 को महाराष्ट्र के यरवडा जेल में फांसी दी गयी थी.
इन सातों पर अलग से शुरू हुई थी सुनवाई
हालांकिउस दौरान इन सात अभियुक्तों का फैसला नहीं हो पाया था. दरअसल, साल 2006 में टाडा अदालत ने इस केस को दो हिस्सों पार्ट- ए और पार्ट- बी में बांटा था. कोर्ट को इसलिए ऐसा करना पड़ा क्योंकि इन सात अभियुक्तों को 2002 के बाद विदेश से प्रत्यर्पित किया गया था जबकि केस की सुनवाई 1995 से चल रही थी. कोर्ट का मानना था कि इन सातों की सुनवाई भी अगर साथ में होगी तो फैसला आने में और देर होगी. इसलिए इन सातों की सुनवाई अलग से शुरू की गयी.
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