सर्जिकल स्ट्राइक: अमावस्या का इंतजार, फिर मौत बनकर आतंकियों पर टूटे भारतीय कमांडोज

नयी दिल्ली : एलओसी के पार पाकिस्तान समर्थित आतंकियों के ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक के करीब एक साल पूरे हो चुके हैं. 29 सितंबर, 2016 को भारतीय सेना ने यह बड़ी और साहसपूर्ण कार्रवाई की थी. सर्जिकल स्ट्राइक के एक वर्ष पूरा होने पर एक किताब आयी है. इसमें सेना के मेजर ने उस महत्वपूर्ण […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 11, 2017 7:31 AM

नयी दिल्ली : एलओसी के पार पाकिस्तान समर्थित आतंकियों के ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक के करीब एक साल पूरे हो चुके हैं. 29 सितंबर, 2016 को भारतीय सेना ने यह बड़ी और साहसपूर्ण कार्रवाई की थी. सर्जिकल स्ट्राइक के एक वर्ष पूरा होने पर एक किताब आयी है. इसमें सेना के मेजर ने उस महत्वपूर्ण और चौंका देने वाले मिशन से जुड़े अपने अनुभव को साझा किया है. कार्रवाई की अगुआई करने वाले मेजर का कहना है कि हमला बहुत ठीक तरीके से और तेजी के साथ किया गया था, लेकिन वापसी सबसे मुश्किल काम था. दुश्मन सैनिकों की गोली कानों के पास से निकल रही थी.

शिव अरूर और राहुल सिंह द्वारा लिखित इस किताब का शीर्ष है – इंडियाज मोस्ट फीयरलेस : ट्रू स्टोरीज ऑफ मॉडर्न मिलिटरी हीरोज. इसे पेंग्विन इंडिया ने प्रकाशित किया है. इसमें सर्जिकल स्ट्राइक की 14 सच्ची कहानियों को शामिल किया गया है. इसमें नेतृत्व करनेवाले अधिकारी को मेजर माइक टैंगो बताया गया है.

मेजर के मुताबिक, ‘हमले से कमांडोज घबराये नहीं थे, लेकिन एलओसी पर चढ़ाई वाले रास्ते को पार करते हुए लौटना बहुत कठिन था. जिस ओर सैनिकों का पीठ था, वहां से पाकिस्तानी सैनिक हमारे सैनिकों को टारगेट कर गोलीबारी कर रहे थे.’ उन्हें इस बात की जानकारी थी कि 19 लोगों की जान बहुत हद तक उनके हाथों में थी. इन सबके बावजूद अधिकारियों और कर्मियों की सकुशल वापसी को लेकर मेजर टैंगो थोड़े चिंतित थे.

चार लॉन्चिंग पैड ध्वस्त, 40 आतंकी मारे गये थे
मेजर ने कहा, सर्जिकल स्ट्राइक के लिए आइएस द्वारा संचालित और पाकिस्तानी सेना से संरक्षित आंतकियों के चार लॉन्चिंग पैड्स को चुना गया था. मास्क्ड कम्यूनिकेशन्ज के जरिये सीमा पार चार लोगों से संपर्क साधा, जिसमें पीओके के दो ग्रामीण और दो उस इलाके में सक्रिय पाक नागरिक थे. दोनों गुप्तचर जैश-ए-मोहम्मद से थे. पूरी कार्रवाई में महज एक घंटे का समय लगा. आतंकियों को तेजी से मारने के बाद दोनों टीमें एकत्रित हुईं. मारे गये आतंकियों की गिनती के बाद सैनिक वापस लौटे. चारों टारगेट मिलाकर करीब 38-40 आतंकी और दो पाकिस्तानी सैनिक मारे गये. सैनिकों को टारगेट पर पहुंचने के बाद सेटेलाइट डिवाइसेज से नवीनतम सूचनाओं को देखें और दुश्मनों का सफाया कर दें.

उड़ी यूनिट के सैनिक थे
सर्जिकल स्ट्राइक के लिए उड़ी हमले में नुकसान झेलने वाले दो यूनिटों के सैनिकों को शामिल किया गया. अग्रिम भूमि की जानकारी उनसे बेहतर शायद ही किसी को थी. लेकिन, कुछ और भी कारण थे. उनको मिशन में शामिल करने का मकसद उड़ी हमलों के दोषियों के खात्मे की शुरुआत भी था.

अमावस्या का इंतजार, फिर…
बीते साल 29 सितंबर को लाइन ऑफ कंट्रोल के दूसरी ओर आतंकियों के लॉन्च पैड्स को भारतीय सेना ने तबाह कर दिया था लेकिन सबके मन में केवल एक ही सवाल आ रहा था कि इन वीर जवानों ने कैसे इस हमले को अंजाम दिया होगा. आतंकियों पर हमला करने के लिए हमारे जाबांजों ने अमावस्या का इंतजार किया था उसके बाद मौत बनकर आतंकियों पर टूट पड़े थे भारतीय कमांडोज. उन्होंने काफी बहादूरी के साथ आतंकियों के छक्के छुड़ाये. इस सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देने में पैरा कमांडोज और पैराट्रूपर्स से लैस टीम का अहम योगदान था जिन्हें इस वर्ष 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस को सम्मानित किया गया. कई अधिकारियों को मेडल्स से नवाजा गया है.

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