उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा-लोकतंत्र और वंशवाद साथ-साथ नहीं चल सकते

नयी दिल्ली: उपराष्ट्रपति एम वैंकेया नायडू ने कहा है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए राजनीतिक दलों में वंशवाद की प्रवृत्ति घातक है. लोकतंत्र और वंशवाद एक साथ नहीं चल सकते हैं. शुक्रवार को एक पुस्तक विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए नायडू ने किसी दल या व्यक्ति विशेष का नाम लिये बिना कहा कि लोकतंत्र […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 15, 2017 9:41 PM

नयी दिल्ली: उपराष्ट्रपति एम वैंकेया नायडू ने कहा है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए राजनीतिक दलों में वंशवाद की प्रवृत्ति घातक है. लोकतंत्र और वंशवाद एक साथ नहीं चल सकते हैं. शुक्रवार को एक पुस्तक विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए नायडू ने किसी दल या व्यक्ति विशेष का नाम लिये बिना कहा कि लोकतंत्र और वंशवाद एक साथ नहीं चल सकते हैं. यह हमारी व्यवस्था को कमजोर करते हैं. लोकतंत्र में वंशवाद घृणित प्रवृत्ति है.

भारत में चुनाव प्रक्रिया के क्रमिक विकास पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाइ कुरैशी द्वारा लिखित पुस्तक लोकतंत्र के उत्सव की अनकही कहानी के विमोचन समारोह में नायडू ने राजनीतिक दलों में वंशवाद की प्रवृत्ति पर तंज कसते हुए यह बात कही. नायडू ने चुनाव सुधार के लिए मतदान में शिक्षित वर्ग की शत प्रतिशत भागीदारी और संसद से पंचायत तक, सभी चुनाव एक साथ कराये जाने को तात्कालिक जरूरत बताया. उन्होंने कहा कि सात दशक के चुनावी सफर में अब तक शत प्रतिशत मतदान न हो पाना चिंता की बात है. खासकर शहरी शिक्षित तबका अभी भी सिर्फ व्यवस्था को कोसने में मशगूल रहता है, लेकिन मतदान में उसकी भागीदारी पर्याप्त नहीं होती.

कार्यक्रम में मुख्य चुनाव आयुक्त एके जोती भी मौजूद थे. नायडू ने चुनाव आयोग से मतदाता पंजीकरण अभियान में शिक्षित वर्ग की शतप्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित करने के प्रभावी उपाय करने को कहा. उन्होंने कहा कि देश में साल भर चलनेवाले चुनाव लोकतंत्र के पर्व को बोझिल बना देते हैं. उन्होंने उदाहरण दिया कि अगर दशहरा का पर्व एक दिन के बजाय साल भर चलता रहे तो यह पर्व बोझिल हो जायेगा. इसी तरह तमाम दृष्टिकोण से संसद से लेकर ग्राम पंचायत तक, प्रत्येक चुनाव एक साथ होने से व्यवस्था और जनता, दोनों को लाभ होगा. अब समय आ गया है कि इस विषय पर चल रही गंभीर बहस को अंजाम तक पहुंचाया जाये.

इससे पहले जोती ने चुनाव आयोग की भूमिका में तेजी से हो रहे विस्तार का जिक्र करते हुए कहा कि दो साल में आयोग अब विनियामक के बजाय चुनाव प्रक्रिया को सुगम और सुचार बनाने में मददगार की भूमिका में आ गया है. उन्होंने कहा कि आयोग का काम महज चुनाव संपन्न कराना मात्र नहीं है, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतदान के जरिये प्रत्येक व्यक्ति की प्रभावी भूमिका को सुनिश्चित करने के लिए आयोग लोगों को जागरूक भी कर रहा है.

कार्यक्रम के अंत में वरिष्ठ पत्रकारों से साथ परिचर्चा में कुरैशी ने इस पुस्तक से जुड़े अपने अनुभवों को साझा करते हुए इसके हिंदी अनुवाद को देश के सामान्य मतदाताओं के लिए लाभप्रद बताया. उन्होंने कहा कि मूल रूप से तीन साल पहले अंग्रेजी में प्रकाशित हुई इस पुस्तक का अब हिंदी संस्करण आने के बाद यह 22 भारतीय भाषाओं में शीघ्र प्रकाशित होगी. पुस्तक का हिंदी में अनुवाद भाषाविद रत्नेश मिश्रा ने किया. परिचर्चा में कुरैशी ने इस पुस्तक को चुनाव सुधार की सतत यात्रा पर आधारित अपने अनुभवों का संकलन बताया. कुरैशी ने चुनाव में धनबल के बढ़ते प्रभाव और चंदे के नाम पर राजनीतिक दलों के साझा भ्रष्टाचार को चुनाव सुधार की प्रक्रिया में सबसे बड़ा बाधक बताया.

Next Article

Exit mobile version