भारतीय वायु सेना के 5 स्टार रैंक प्राप्त मार्शल अर्जन सिंह हमारे बीच नहीं रहे. शनिवार को दिल का दौरा पड़ने के कारण उनका निधन हो गया. वह 98 साल के थे और पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे. दिल्ली स्थित आर्मी हॉस्पिटल रिसर्च एंड रेफरल में उन्होंने आखिरी सांस ली.
पाकिस्तान स्थित पंजाब के लायलपुरमें 15 अप्रैल 1919 को जन्मे अर्जन सिंह अपने करियर में अजेय रहे. उन्होंने 15 अगस्त 1947 को सौ से भी अधिक विमानों के साथ लाल किले के ऊपर से फ्लाई पास्ट का नेतृत्व किया, 45 साल की उम्र में वायुसेना प्रमुख बने. उनका जीवन उपलब्धियों से भरा रहा. यही वजह है कि सन 2002 में 85 वर्ष की आयु में उन्हें मार्शल ऑफ एयरफोर्स के सम्मानसे नवाजा गया था.
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वह भारत के ऐसे तीसरे अफसर हैं, जिन्हें राष्ट्रपति भवन में सेना का यह दुर्लभ सम्मान मिला. उनसे पहले राष्ट्रपति भवन में सेना का दुर्लभ सम्मान 1971 युद्ध के नायक एसएचएफ जे मानेकशाॅ को मिला था. वह पद पर रहते हुए यह सम्मान पाने वाले पहले सैनिक अफसर बने थे. आजाद भारत के पहले थल सेनाध्यक्ष फील्ड मार्शल केएम करियप्पा कोसेवानिवृत्ति के बाद यह मानद पदवी दी गयी थी.
यहां यह जानना गौरतलब है कि मार्शल तीनों सेनाओं में सर्वोच्च रैंक होता है. यह सम्मान पाने वालों की रैंक जीवन पर्यंत रहती है.ये पांच सितारों वाली यूनीफॉर्म पहनते हैं.
बात करें इस खास रैंक की, तो भारतीय थल सेना में इसे फील्ड मार्शल का रैंक कहा जाता है. यह फाइव स्टार जनरल ऑफिसर पद होता है. फील्ड मार्शल का पद जनरल से ऊपर होता है. वहीं, भारतीय वायु सेना में सबसे ऊंचा रैंक मार्शल का होता है. यह रैंक आज तक केवल अर्जन सिंह को ही मिला है. तो, भारतीय जल सेनायानीनेवी में इसके समानांतर पद होता है एडमिरल ऑफ द फ्लीट. यह रैंक आज तक देश में किसी को नहीं मिल सका है.
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इस रैंक वाले शख्स को मिलनेवाली सुविधाओं की बात करें, तो मार्शल का रैंक जीवनभर के लिए होता है. सेवानिवृत्ति के बाद भी. मृत्युपर्यंत व्यक्ति इसी पद पर बना रहता है. मार्शल को अन्य सैन्य अफसरों की तरह किसी भीआधिकारिक समारोह में पूरी यूनिफॉर्म में ही शामिल होना होता है. इस पद पर पहुंचेव्यक्ति को उनके जीवित रहने तक पूरी सैलरी दी जाती है.