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भारत-जापान शिखर बैठक : संबंधों की बेहतरी की गति तेज

भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुए 15 समझौतों से दोनों देशों के बीच संबंधों को नयी दिशा मिली है. ये समझौते द्विपक्षीय हितों की बेहतरी के लिहाज से तो खास हैं ही, साथ ही चीन के बढ़ते प्रभाव के बरक्स व्यापक भागीदारी की राह […]

भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुए 15 समझौतों से दोनों देशों के बीच संबंधों को नयी दिशा मिली है. ये समझौते द्विपक्षीय हितों की बेहतरी के लिहाज से तो खास हैं ही, साथ ही चीन के बढ़ते प्रभाव के बरक्स व्यापक भागीदारी की राह भी तैयार करते हैं.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परियोजनाओं को साकार करने तथा वैश्विक आतंकवाद की चुनौतियों का सामना करने में सहमति से एशिया और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में दोनों देश अपनी उपस्थिति को प्रगाढ़ कर पायेंगे. प्रधानमंत्री आबे की यात्रा के महत्व के विविध पहलुओं पर विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है संडे-इश्यू…
पुष्पेश पंत
वरिष्ठ स्तंभकार
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे की भारत-यात्रा का उपयोग भारत के राजनय की गतिशीलता के प्रदर्शन करने की काफी हद तक सफल कोशिश हमारी सरकार ने की है. नरेंद्र मोदी ने उनका मुख्य स्वागत-अभिनंदन अहमदाबाद में किया अौर अनायास चीनी सदर शी जिनपिंग के दौरे की याद ताजा करा दी. आलोचक इस बार भी यह सवाल उठा रहे हैं कि क्यों भारतीय प्रधानमंत्री को देश की राजधानी में शाही मेहमानों के स्वागत की परंपरा रास नहीं आती?
क्यों वह विकास की नुमाइश के लिए बार-बार गुजरात का रुख करते हैं? चूंकि गुजरात में निकट भविष्य में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं विपक्ष की यह शंका नाजायज नहीं कि इस यात्रा के दौरान सौदों-समझौतों के ऐलान से स्थानीय मतदाता को प्रभावित किया जा सकता है. हमारी समझ में गुजरात हो या अौर कोई भारतीय राज्य मतदाता इतना नादान नहीं कि वह अपनी जिंदगी की रोजमर्रा के सरोकारों को नजरंदाज कर मित्र देशों के साथ राजनय की उपलब्धियों या विफलता के आधार पर अपने प्रतिनिधि चुनेगा. बहरहाल.
यही विपक्षी आलोचक यह शंका भी मुखर कर रहे हैं कि मोदी शायद इसलिए जापान को इतनी तवज्जो दे रहे हैं, क्योंकि वहां वह इवीएम मशीनें बनती हैं, जिनका प्रयोग भारत के चुनावों में होता है. यह टिप्पणी इतनी बचकाना है कि इसका जवाब देना समय का अपव्यय ही कहा जा सकता है. भारत में इस उपकरण के प्रयोग से निश्चय ही चुनावों को छल-बल से काफी हद तक मुक्त कराया जा सका है अौर पूरी मतदान प्रक्रिया को अौर भी पारदर्शी बनाने के प्रयास जारी हैं.
भारत ने जापान के साथ बुलेट ट्रेन के बाबत जो समझौता किया है, उसके पहले चरण में अहमदाबाद अौर मुंबई को जोड़ा जाना है. अतः यह बात तर्कसंगत है कि आबे को गुजरात ले जाया जा रहा है. हजारों करोड़ रुपये की लागत वाली इस महत्वाकांक्षी परियोजना को लेकर भी भाजपा-मोदी सरकार पर छींटाकशी हो रही है, जिसे नाजायज नहीं कहा जा सकता.
हाल में रेलगाड़ियों के पटरी से उतरनेवाली दुर्घटनाअों में अचानक बढ़त हुई है. कई जाने गयी हैं अौर नागरिक पूछने लगे हैं कि क्या रेल यात्रा के दौरान सुरक्षा को तेज रफ्तार से अधिक प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिए? रेल व्यवस्था के आधुनिकीकरण अौर खस्ताहाल पटरियों के रख-रखाव का काम साथ-साथ ही होगा, अतः आबे की यात्रा का विश्लेषण करते वक्त इस मुद्दे को भी अनावश्यक तूल नहीं दिया जाना चाहिए.
असली सवाल यह है कि जब मोदी यह कहते हैं कि जापान भारत का सबसे अच्छा मित्र है, तब क्या वह चीन को यह संकेत तो नहीं दे रहे कि वह एशिया में उसके आक्रामक विस्तारवादी राजनय पर अंकुश लगाने की व्यूह-रचना की रणनीति अपनाने से हिचकेंगे नहीं. डोकलाम के तनावपूर्ण अनुभव के बाद शायद यह संदेश चीन के नेताअों तक पहुंचाना जरूरी समझा जा रहा है. जापान तथा भारत के सामरिक तथा आर्थिक राष्ट्रीय-हितों का दीर्घकालीन संयोग स्पष्ट है.
दक्षिणी चीन सागर की जलराशि हो अथवा उत्तरी कोरिया की उद्दंडता से पैदा हुआ परमाण्विक विस्फोट का जोखिम, चीन को ही जापान अपने लिए सबसे बड़ा खतरा समझता है. जापान अपनी संवेदनशील ऊर्जा सुरक्षा के लिए जिस जलमार्ग पर निर्भर है, उसी पर अपना एकाधिकार स्थापित करने का प्रयास चीन कर रहा है. वियतनाम या फिलीपींस की तुलना में जापान ही भारत के सहयोग से इस क्षेत्र में शक्ति समीकरणों को संतुलित रखने में सफल हो सकता है. ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति चुने जाने के बाद से जापान इस बाबत निश्चित नहीं कि संकट की घड़ी में अमेरिका पहले की तरह उसके पक्ष में सैनिक हस्तक्षेप के लिए तैयार होगा. जो संधियां शीतयुद्ध के युग में कवच का काम करती थीं, आज जीर्ण-शीर्ण हो चुकी हैं.
इसके अलावा यह न भूलें कि ऐतिहासिक रूप से चीन तथा जापान एक-दूसरे के पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी ही नहीं, शत्रु भी रहे हैं. जापानी सैनिक साम्राज्यवाद के अनुभव को चीनी ही नहीं दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य अनेक देश भी भुलाने में असमर्थ नजर आते रहे हैं. विजेता मित्र राष्ट्र इस बात की याद तजा कराने मे कोई कसर नहीं छोड़ते कि द्वितीय महायुद्ध के दौरान जापान का आचरण कितना निर्मम अौर उत्पीड़क था. जाने कितने विद्वान यह भूल जाते हैं कि इसी जापान को परास्त करने के लिए अमेरिका ने एटम बम का प्रयोग किया था अौर जर्मनी को हराने के लिए किस तरह की कार्पेट बमबारी की थी.
इसी दौर में नेताजी सुभाष बोस ने जापान की मदद से आजाद हिंद फौज का गठन किया था, जिसका भारत की लड़ाई में योगदान अनदेखा नहीं किया जा सकता. अर्थात् जापान के साथ भारत के संबंधों का ताना-बाना चीन की तुलना में कहीं अधिक तनाव रहित रहा है. जापानी आज तक टोक्यो की युद्ध-अपराध अदालत में भारतीय जज राधा विनोद पाल के अल्पमत वाले फैसले को साभार याद करते हैं.
चीन के साथ हमारे आर्थिक संबंधों का पैमाना बहुत बड़ा है, पर यह व्यापार हमारे विपक्ष में बुरी तरह असंतुलित है. इस संदर्भ में भी आबे ने हजारों करोड़ रुपयों के जिस ऋण-सहायता की पेशकश की है, वह महत्वपूर्ण है. सस्ती चीनी तथा कोरियाई उपभोक्ता उपकरणों की बाढ़ ने हाल के वर्षों में हमारा ध्यान परिष्कृत टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में जापान से भटकाया है.
अमेरिकी मीडिया का प्रचार भी इसके लिए जिम्मेदार है. जापान की मंदी, उस देश की बैंकिंग प्रणाली की पौराणिकता, जापानियों के नस्ली अहंकार का ही जिक्र इनके विश्लेषणों में होता है. जापानी उत्पादों की गुणवत्ता नहीं, उनकी महंगी कीमत को रेखांकित किया जाता है. इस सबके बावजूद सोनी, कैनन, निकौन, अोलिंपस, पैंटेक्स, सुजुकी, होंडा, यामाहा जैसे ब्रांड भारत के महानगरों में ही नहीं छोटे कस्बों में भी पहचाने जाते हैं. रैनबैक्सी जैसी औषधि निर्माता कंपनी को भी एक बार जापानी कंपनी ने ही खरीदा था.
इन तमाम बातों का उल्लेख इसलिए परमावश्यक है कि यह याद दिलाया जा सके कि कितने सारे उत्कृष्ट टेक्नोलॉजी के क्षेत्रों में भारत अौर जापान के बीच सहकार की संभावना है अौर क्यों अब तक इस ‘मित्र’ की उपेक्षा होती रही है? क्या इसका कारण यह तो नहीं कि चीन के साथ आर्थिक संबंधों की नजाकत अौर उनके असाधारण महत्व को प्राथमिकता देनेवाले अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह से यह चूक हुई? या फिर अमेरिका के अंधानुकरण की उतावली में भारत मरीचिकाअों में भटकता रहा है? जापान की सहायता से दिल्ली-मुंबई गलियारे के निर्माण की परियोजना के बारे में क्यों इतनी उदासीनता हमारी सरकार अब तक दिखाती रही है?
शिंजो आबे की यात्रा के बहाने भारत-जापान संबंधों को भलीभांति जानने समझने की कोशिश की जानी चाहिए. ऐसा नहीं हैं कि मोदी ‘जाना था चीन पहुंच गये जापान’ वाली कसरत कर रहे हैं!
प्रस्तुति : आरके श्रीवास्तव
एशिया में बदल रहे हैं समीकरण
शशांक
पूर्व विदेश सचिव
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे की भारत यात्रा के दौरान भारत-जापान के बीच हुए 15 समझौतों से यही लगता है कि भारत और जापान के रिश्ते मजबूत हो रहे हैं, और एशिया में भी राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं.
पिछले दिनों ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान भारत और चीन ने जिस तरह से आतंकवाद के मसले पर बात की, और अब शिंजो आबे ने भी आतंकवाद खत्म करने की बात की है, तो इससे लगता है कि अब एशिया में अब ऐसा माहौल बन रहा है, जिसमें बड़े देश यह चाहते हैं कि इस क्षेत्र में शांति बनी रहे. और अगर इस शांति के बनने में भारत एक केंद्रीय भूमिका में खुद को पेश करता है, तो यह एिशया के लिए बहुत ही अच्छी बात होगी.
भारत में बुलेट ट्रेन के लिए जापान का साथ मिलने से हमारे इन्फ्रास्ट्रक्चर को एक तरह से मजबूती मिलेगी. खासतौर पर भारतीय रेल की जो मौजूदा स्थिति है, उस नजरिये से देखते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि हमें बुलेट ट्रेन के निर्माण में मिलनेवाली ट्रेनिंग हमारे लिए बहुत ही फायदेमंद होगी. भारतीय रेलवे में तकनीकी व्यक्तियों को बहुत-कुछ सीखने को मिलेगा और वे बरसों से पुराने ढर्रे पर चल रही हमारे ट्रेनों की दशा-दिशा बदलने और उन्हें अपडेट करने का काम कर सकेंगे.
जापान में पिछले चार-पांच दशकों में एक भी बड़ा ट्रेन हादसा नहीं हुआ है, इसका अर्थ यह है कि वहां की तकनीक बहुत ही बेहतरीन है. इसलिए भारतीय रेलवे में यह जरूरत बहुत ही शिद्दत से महसूस की जा रही है, क्योंकि यहां आये दिन ट्रेन हादसे हो रहे हैं. जापान ने जिस तरह से भारत में इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में मदद करने की बात कही है, वह हमारी ‘एक्ट इस्ट पॉलिसी’ के लिए बहुत जरूरी है. एशिया में अब भारत की जिम्मेदारी बढ़ रही है और मुझे उम्मीद और यकीन है कि भारत इस पर पूरी तरह से खरा भी उतरेगा.
भारत के इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र को विकसित करने के लिए जापान से जो भी ट्रेनर या तकनीकी विशेषज्ञ आयेंगे, इससे दोनों देशों के बीच एक समृद्ध सांस्कृतिक आदान-प्रदान होगा, जिससे हमारे पारस्परिक रिश्तों को मजबूती मिलेगी. सांस्कृतिक आदान-प्रदान एक सकारात्मक बदलाव का वाहक होता है. दूसरी बात यह है कि हमें चीन को अलग करके भारत-जापान रिश्तों को नहीं देखना चाहिए.
पूरे प्रशांत क्षेत्र में शांति के लिए इन सारे बड़े और महत्वपूर्ण देशों की आपसी सहभागिता जरूरी है और इस सहभागिता को कायम करने में भारत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, तो इससे हमारी साख बढ़ेगी. दरअसल, इन दोनों देशों ने द्विपक्षीय बातें नहीं की हैं, बल्कि घरेलू स्तर से लेकर दूसरे सीमा क्षेत्रों के स्तर के साथ ही वैश्विक स्तर पर भी बातें हुई हैं. जाहिर है, इन सभी समझौतों और बातों का सार्थक परिणाम निकलेगा ही, क्योंकि हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं.
चीनी मीडिया ने कसा तंज
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अपनी संपादकीय में लिखा कि कोई भी एशियाई देश अकेले या किसी के साथ मिल कर चीन को चुनौती नहीं दे सकता है. अखबार ने एशिया में विकास को जरूरी बताते हुए लिखा है कि कौन कितनी तेजी से विकास कर रहा है, इससे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि टॉप पर कौन पहुंचता है. भू-राजनीतिक मुद्दों के इतर चीन विकास को अपने राष्ट्रीय विदेश नीति में सर्वोपरि रखता है.
अखबार ने भारत के साथ जापान और अमेरिका की साझेदारी को दिखावा बताया. वहीं जापान को तुच्छ मानसिकता का बताते हुए कहा कि चीन को घेरने के लिए वह वैश्विक स्तर पर सहयोगी ढूंढ रहा है. अखबार ने दावा किया है कि इक्कीसवीं सदी में भारत और जापान की घनिष्ठता किसी भी प्रकार से चीन के लिए चुनौती नहीं बन सकती है.
सामरिक रिश्तों की मजबूूती पर जोर
भारत-जापान द्वारा संयुक्त रूप से जारी वक्तव्य में आतंकी समूहों अलकायदा, आइएसआइएस, जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और अन्य आतंकी संगठनों की निंदा की गयी. दोनों देशों ने आतंकवाद के खिलाफ आपसी साझेदारी बढ़ाने पर भी जोर दिया. ब्रिक्स घोषणा पत्र में पाकिस्तान स्थित आतंकी समूहों एलइटी और जेइएम के जिक्र के बाद यह दूसरा मौका है, जब इन आतंकी समूहों पर संयुक्त स्तर पर कार्रवाई की बात कही गयी है.
रक्षा सहयोग बढ़ाने पर जोर
भारत और जापान ने रक्षा तकनीकों पर आपसी साझेदारी को और मजबूत करने पर सहमति जतायी है. इस दौरान यूएस-2 एंफीबियस एयरक्रॉफ्ट पर जारी चर्चा का भी जिक्र किया गया, लेकिन कोई ठोस हल नहीं निकल सका. रक्षा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए दोनों देश सर्विलांस और अनमैन्ड सिस्टम टेक्नोलॉजी समेत विभिन्न हाइ टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं.
चीन को संदेश देने की कोशिश
दोनों देशों के प्रमुखों ने चीन का स्पष्ट तौर पर जिक्र किये बगैर ओबीओआर प्रोजेक्ट पर विरोध दर्ज कराया. विकास और कनेक्टिविटी इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ विभिन्न देशों की संप्रभुता, अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुपालन, पारदर्शिता को जरूरी बताया. संयुक्त वक्तव्य में चीन के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट की भारत के पक्ष के अनुरूप विरोध दर्ज कराया गया है.
भारत-जापान समझौता
सीमा मुद्दे पर चीन ने दी धमकी
दोनों देशों के बीच 15 विभिन्न मुद्दों पर हुए समझौते
– आपदा जोखिम को कम करने के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाना और आपदा निवारण से जुड़े अनुभव, नीतियों और जानकारियों को साझा करना.
– भारत में जापानी भाषा की शिक्षा को बढ़ावा देना और इसके जरिये दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय रिश्ते और सहयोग को मजबूती प्रदान करना.
– इंडिया जापान एक्ट इस्ट फोरम के माध्यम से भारत के उत्तर-पूर्व राज्यों में संपर्क को बढ़ावा देकर इन राज्यों में विकास परियोजनाओं को गति देना.
– भारतीय और जापानी डाक विभाग के बीच कूल इएमएस सर्विस काे लागू करना, ताकि भारत में रहनेवाले जापानी नागरिकों के लिए जापान से ताजे खाद्य पदार्थ भिजवाये जा सकें.
– भारत में जापानी निवेश को गति देने के लिए भारत-जापान के बीच निवेश रोडमैप.
– जापान-भारत विशेष कार्यक्रम के जरिये मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत ढांचागत विकास को बढ़ावा देना.
– नागरिक उड्डयन सहयोग के तहत आरओडी का आदान-प्रदान और दोनों देशों के बीच असीमित उड़ानों काे मंजूरी.
– सैद्धांतिक जीवविज्ञान के क्षेत्र में दोनों देशों के प्रतिभाशाली युवा वैज्ञानिकों की पहचान और प्राेत्साहन के लिए जापानी शोध संस्थान राइकेन और बेंगलुरु के एनसीबीएस के बीच संयुक्त आदान-प्रदान कार्यक्रम तैयार करना.
– दोनों देशों में विज्ञान व शोध को बढ़ावा देने के लिए जापान के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड इंडस्ट्रियल साइंस एंड टेक्नोलॉजी (एआइएसटी) और डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी (डीबीटी), भारत के बीच संयुक्त शोध अनुबंध.
– डीबीटी शोध संस्थान और एआइएसटी के बीच लाइफ साइंस और बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देना.
– लक्ष्मीबाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल एजुकेशन और जापान के निप्पॉन स्पोर्ट्स साइंस यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय शिक्षा और खेल को बढ़ावा देने और सहयोग के लिए करार.
– भारतीय खेल प्राधिकरण और जापान के निप्पाॅन खेल विज्ञान विश्वविद्यालय के बीच अंतरराष्ट्रीय शिक्षा सहयोग आदान-प्रदान को बढ़ावा देना.
– भारत के लक्ष्मीबाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल एजुकेशन और जापान के सुकुबा यूनिवर्सिटी के बीच रणनीतिक सहयोग, साझा शोध कार्यक्रम और आदान-प्रदान को मजबूत करना और बढ़ावा देना.
– लक्ष्मीबाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल एजुकेशन और जापान के सुकुबा यूनिवर्सिटी के बीच आदान प्रदान को
बढ़ावा देना.
– आरआइएस और जापान के आइडीइ-जेट्रो के बीच शोध कार्यक्रमों और इसके प्रसार को बढ़ावा देना.
रखी गयी बुलेट ट्रेन की आधारशिला
आखिरकार अहमदाबाद से मुंबई के बीच चलनेवाली बहुप्रतीक्षित शिंकानसेन यानी बुलेट ट्रेन की नींव 14 सितंबर को भारत में रख दी गयी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके जापानी समकक्ष शिंजो आबे ने पूरी गर्मजोशी के साथ साबरमती में इस परियोजना की अाधारशीला रखी. यह ट्रेन जमीन और समुद्र के रास्ते होती हुई मुंबई पहुंचेगी. जानते हैं इस ट्रेन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में.
किमी लंबा रेल ट्रैक है अहमदाबाद से मुंबई के बीच.
स्टेशन होंगे इस ट्रेन के सफर में. साबरमती, अहमदाबाद, आणंद, वडोदरा, भरूच, सूरत, बिलीमोरा, वापी, वोइसर, विरार, थाणे से गुजरकर यह ट्रेन मुंबई पहुंचेगी
घंटे में तय होगी दूरी, वर्तमान में इस दूरी को पूरा करने में लगते हैं आठ घंटे.
अगस्त, 2022 तक इस परियोजना के पूरा होने का लक्ष्य रखा गया है.
भारत-जापान आर्थिक संबंध
पिछले चार वर्षों में जापान के साथ भारत के व्यापार में 16 प्रतिशत की गिरावट आयी है. इस गिरावट का प्रमुख कारण पेट्रोलियम की मांग और इसकी कीमतों में आयी कमी है. हाल के वर्षों में जापान के साथ भारत के कुछ प्रमुख वस्तुओं के आयात-निर्यात से जुड़े आंकड़ों से दोनों देशों के बीच व्यापार का हाल जाना जा सकता है.
भारत द्वारा निर्यात (मिलियन डॉलर में)
वर्ष
वस्तु 2015-16 2016-17
नेप्था, लाइटनिंग के
लिए तेल व अन्य 325.11 284.15
खनिज तेल, तरल
पाराफिन व अन्य 293.98 70.81
फ्रोजन मछली 279.61 283.68
सोयामिल 19.55 78.53
जापान से आयात
पीवीसी व संबद्ध सामग्री 144.71 169.72
गीयर बॉक्स, अॉटो ट्रांसमिशन
सिस्टम्स, कपलिंग्स 196.95 243.5
इस्तेमाल किये हुए
टैंकर वेसेल्स 18.41 110.28
जहाज व अतिरिक्त
कल-पुर्जे 319.83 179

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