रोहिंग्या मुसलमानों को भारत से वापस म्यांमार भेजना मोदी सरकार के लिए कितना मुश्किल है?
नयी दिल्ली : रोहिंग्या मुसलमानों का मामला पिछले कई सप्ताह से गर्म है. आखिरकार आज इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रख दिया. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि रोहिंग्या मुसलमान देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा हैं, उनमें से कुछ […]
नयी दिल्ली : रोहिंग्या मुसलमानों का मामला पिछले कई सप्ताह से गर्म है. आखिरकार आज इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रख दिया. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि रोहिंग्या मुसलमान देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा हैं, उनमें से कुछ आतंकी संगठनों से जुड़े हैं और हवाला, हुंडी जैसी गतिविधियों में शामिल हैं. इतना ही नहीं सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि यह काम सरकार के जिम्मे छोड़ दें और वह इसमें हस्तक्षेप नहीं करे. सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजने के प्रति अपना संकल्प अदालत में दोहराया. अब इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट तीन अक्तूबर को करेगा. उधर, पहले ही संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख जैद राद अल हुसैन ने रोहिंग्या समुदाय के लोगों को वापस भेजने के भारत के प्रयासों की निंदा कर चुके हैं. देश में भी वरिष्ठ वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता प्रशांत भूषण व एमआइएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी सरकार के खिलाफ खड़े हैं. भूषण इस मामले की अदालत में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं, वहीं ओवैसी सरकार की तीखी आलोचना यह कह कर कर चुके हैं कि इतने शरणार्थियों को भारत में रखा क्या सवा अरब आबादी वाले हिंदुस्तान में 40 हजार रोहिंग्या को नहीं रख सकते? इस मामले में गृहमंत्री राजनाथ सिंह कोर्ट में हलफनामा पेश किये जाने के बाद कहा कि मामला सुप्रीम कोर्ट के पास है और हमें फैसले का इंतजार करना चाहिए.
रोहिंग्या को भारत में रखने के लिए शरणार्थी कानून का हवाला
ओवैसी व कई अन्य लोग यह कह चुके हैं कि अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी कानून के कारण आप कैसे म्यांमार के विस्थापित समुदाय रोहिंग्या को यहां से वापस भेजोगो? जबकि सरकार के पास इसके लिए दलील है. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजेजू कहा चुके हैं कि भारत ने शरणार्थी संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया है, इसलिए वह इस माममले में अंतरराष्ट्रीय कानून को मानने के लिए बाध्य नहीं है.हालांकि नियम-कानून से हटकर व्यवहार में कई चीजों को लागू करना आसान नहीं हो पाता और मानवाधिकार पूरी तरह नियमों में बंधा हुआ मसला भी नहीं है. राजनाथ सिंह के आज के सधे बयान में यह संकेत छिपे थे कि सरकार जैसा चाह रही है, वह उतना आसान नहीं है.भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी कहा है कि रोहिंग्या की मदद हम करेंगे, लेकिन उनके देश म्यांमार की सीमा के अंदर. 1990 के दशक से भारत में अाये रोहिंग्या मुसलमानों में 15 हजार के करीब अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी कानूनों के तहत परमिटधारी है जो यूएनएचसीआर से मिलता है.
नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय संधि क्या कहता है?
नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय संधि (आइसीसीपीआर) मानवाधिकार संबंधी संयुक्त घोषणा पर अाधारित है और इस पर हस्ताक्षर करने वाले देश इसको मानने को बाध्य हैं. भारत ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किया है और किरण रिजेजू इसी को आधार बना कर रोहिंग्या को वापस भेजने की बात बार-बार कह रहे हैं. आइसीसीपीआर का संचालन एक एक कमेटी करती है जो मानव अधिकार परिषद के अधीन कार्य करती है. संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकारों के संरक्षण और प्रोत्साहन का पक्षधर है, मानव अधिकार परिषद इस कार्य के लिए उसकी जिम्मेवार इकाई है.
मानवअधिकार कार्यकर्ता इसी बात के आधार पर सरकार के स्टैंड की आलोचना कर रहे हैं. कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की दलील है कि सरकार 1951 के शरणार्थी समझौते एवं राज्यविहीन लोगों से संबंधित 1954 के समझौते का उल्लंघन कर रही है. वहीं, सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए यह भी दलील दी जा रही है कि किसी समुदाय को अगर अपने मूल देश में खतरा है तो उसे वापस नहीं भेजा जा सकता. मानवाधिकार कार्यकर्ता व इस मुद्दे पर सक्रिय लोग इसे मुद्दा बनाये हुए हैं. इसके लिए भारतीय संविधान के प्रावधानों का भी हवाला दिया जा रहा है. रोहिंग्या मुसलमान राजस्थान, दिल्ली, जम्मू, पश्चिम बंगाल एवं असम में प्रमुख रूप से हैं और देश भर में रोजगार के लिए घूमते रहते हैं. खुफिया एजेंसियों का संदेह है कि ये अतिवादी संगठनों के झांसे में आसानी से आ सकते हैं, वहीं मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि अबतक उनके किसी आतंकी गतिविधि में शामिल होने के साक्ष्य नहीं मिले हैं.
रोहिंग्या मुसलमानों का भारत आने का सिलसिला तब तेज हुआ जब म्यांमार के नये नागरिकता कानून के तहत इन्हें नागरिकता नहीं दी गयी. विस्थापित रोहिंग्या बांग्लादेश और भारत में अधिक आये हैं. म्यांमा में दस लाख के करीब रोहिंग्या हैं, जिनकी वहां के बौद्धों से नहीं बनती और यह धारणा है कि वे बांग्लादेश से उनके यहां आकर बसे हैं. रोहिंग्या को दुनिया के सबसे संकटग्रस्त समुदाय में शामिल किया गया है और उन्हें लगता है कि अगर वापस म्यांमार वे भेजे गये तो जीवित नहीं बचेंगे.