सैन्य कमांडर ने कहा-कश्मीर में आतंकवाद की कमर टूट चुकी है, राजनीतिक पहल के लिए माकूल समय

अवंतीपुरा (जम्मू-कश्मीर) : उग्रवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित दक्षिण कश्मीर में सेना के कमांडर का मानना है कि कश्मीर में सशस्त्र उग्रवाद की कमर टूट चुकी है और अब बहुत ज्यादा राजनीतिक दूरंदेशी की जरूरत है, ताकि दशकों पुरानी पृथकतावादी समस्या का स्थायी हल सुनिश्चित किया जा सके. दक्षिण कश्मीर के पांच जिलों में उग्रवाद […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 27, 2017 8:29 PM

अवंतीपुरा (जम्मू-कश्मीर) : उग्रवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित दक्षिण कश्मीर में सेना के कमांडर का मानना है कि कश्मीर में सशस्त्र उग्रवाद की कमर टूट चुकी है और अब बहुत ज्यादा राजनीतिक दूरंदेशी की जरूरत है, ताकि दशकों पुरानी पृथकतावादी समस्या का स्थायी हल सुनिश्चित किया जा सके. दक्षिण कश्मीर के पांच जिलों में उग्रवाद के खिलाफ अभियान चलानेवाली विक्टर फोर्स के प्रमुख मेजर जनरल बी एस राजू ने कहा, अब ऐसा कोई इलाका नहीं है, जहां उग्रवादियों या पृथकतावादियों का प्रभाव हो. उग्रवादी अब अपने बचाव में लगे हैं. उन्होंने कहा कि उनका पूरा ध्यान अब इस बात पर है कि उग्रवादी संगठनों में अब और नयी भर्तियां न हों और लोगों को इस बात का विश्वास दिलाया जाये कि सेना वहां उनकी मदद के लिए है. उन्होंने बताया कि इस काम के लिए उनके सैनिकों ने स्कूलों और काॅलेजों में विभिन्न कार्यक्रम शुरू कर दिये हैं.

श्रीनगर से 33 किलोमीटर के फासले पर अवंतीपुरा स्थित विक्टर फोर्स के जनरल आफिसर कमांडिंग राजू ने कहा, सबसे बड़ी बात यह है कि ज्यादातर लोग समाधान चाहते हैं. वे हिंसा के इस दुष्चक्र से निकलना चाहते हैं. दक्षिण कश्मीर को जम्मू कश्मीर में उग्रवाद का केंद्र माना जाता है और पिछले वर्ष सुरक्षा बलों पर हमले की सबसे ज्यादा घटनाएं यहां हुई थीं. इस वर्ष तस्वीर बदली है और अकेले इस इलाके में ही अब तक 73 उग्रवादियों को ढेर कर दिया गया है. यह पिछले वर्षों के औसत आंकड़े से लगभग दुगुना है. यह माना जा रहा है कि तकरीबन 120 सशस्त्र उग्रवादी बचे हैं, ज्यादा से ज्यादा 150 भी हो सकते हैं.

इस वर्ष मार्च में कार्यभार संभालनेवाले राजू कहते हैं, इन दिनों वे सेना को सीधे निशाना नहीं बना रहे हैं, बल्कि कमजोर निशानों की तलाश में रहते हैं. वे कभी कभार मुखबिर बताकर नागरिकों को निशाना बन रहे हैं. राजू कहते हैं, हालात अब उस मुकाम पर पहुंच गये हैं, जहां राजनीतिक पहल की शुरुआत की जा सकती है और यह देखकर अच्छा लग रहा है कि इस दिशा में प्रयास होने लगे हैं. उन्होंने हाल में केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के बड़े नेताओं के कश्मीर के सभी पक्षों से बात करने की इच्छा जतानेवाले बयानों का जिक्र करते हुए यह बात कही. अलगाववादी नेता मीरवायज उमर फारुक सहित कुछ अन्य ने भी केंद्र व राज्य की इस पहल का स्वागत किया है.

राजू ने कहा, अब यह केंद्र सरकार की राजनीतिक समझ पर निर्भर करता है. यह बहुत हद तक केंद्र सरकार पर निर्भर करेगा. आप उग्रवाद से पुलिस के जरिये ही नहीं निपट सकते. उन्होंने कहा कि कश्मीरियों के साथ सीधे बातचीत करनी होगी ताकि उन्हें यह बताया जा सके कि क्या दिया जा सकता है और क्या देना संभव नहीं है. हमें लोगों को बताना होगा कि किसी भी हालत में आजादी मुमकिन नहीं है. संविधान के अंतर्गत सब कुछ संभव है. अगर, आप आजादी की जिद लगाये रहेंगे तो राज्य की दुर्दशा लंबे समय तक बनी रहेगी. राजू ने कहा कि राज्य में ही पनपनेवाले उग्रवादियों के खिलाफ सफलता के चलते सैन्य विशेषज्ञों को लगता है कि मारे गये उग्रवादियों की भरपाई के लिए अगले कुछ सप्ताह में सीमापार से घुसपैठ बढ़ सकती है.

उन्होंने कहा, मुझे आशंका है कि मारे गये उग्रवादियों की भरपाई के लिए ज्यादा से ज्यादा कोशिशें हो सकती हैं. लेकिन, सर्दियां आने से घुसपैठ के रास्ते संकरे हो रहे हैं. उनके अनुसार, सुरक्षा बलों और सरकार की एक सबसे बड़ी समस्या युवा और स्कूल जानेवाले बच्चों का कट्टरपंथ की तरफ झुकाव है. यह बात आम होती जा रही है कि छोटी उम्र के लड़के और यहां तक कि आठ साल के बच्चे भी पत्थर फेंकते नजर आते हैं. जरूरी नहीं है कि ये लोग किसी विचारधारा की वजह से ऐसा करते हैं, बल्कि वह इसे बड़ी बहादुरी का काम मानते हैं.

राजू ने बताया कि बच्चों को व्यस्त रखने और उन्हें यह एहसास दिलाने के लिए कि सैनिक उनके मददगार हैं, सेना ने कुछ खास कार्यक्रम शुरू किये हैं जैसे खेल और चित्रकारी प्रतियोगिताएं, पठन-पाठन के सामान का वितरण, बच्चों को पहाड़ों पर ले जाना और खाने का सामान देना. उन्होंने बताया कि ज्यादातर उग्रवादियों, स्वतंत्रता के हिमायतियों और यहां तक कि पत्थर फेंकनेवालों को आजादी का मतलब कुछ ज्यादा मालूम नहीं है, हालांकि वह देखादेखी यह सब कहने लगे हैं. जरूरी नहीं कि वह भारत से आजादी चाहते हैं.

राजू ने कहा, लेकिन लोग सुरक्षा बलों की मौजूदगी से आजादी जरूर चाहते हैं. मैं यह समझता हूं, लेकिन लोगों को भी यह मालूम होना चाहिए कि हम यहां सिर्फ उनकी हिफाजत के लिए हैं और एक बार उग्रवाद को घाटी से निकाल बाहर कर दिया तो सुरक्षा बल अपनी बैरकों में वापस लौट जायेंगे. सरकारी और सुरक्षा एजेंसियों के अन्य अधिकारियों की तरह ही राजू भी एक मजबूत किशोर न्याय प्रणाली की हिमायत करते हैं, जिसमें लोगों को हिरासत में रखने के केंद्र हों. इस समय किशोर पत्थरबाजों को सामूहिक तौर पर गिरफ्तार किया जाता है. हालांकि, आखिर में उन्हें छोड़ना ही पड़ता है, लेकिन इस दौरान उन्हें समझाने का कोई प्रयास नहीं किया जाता और वह बाहर जाकर फिर उन्हीं गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं.

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