मुंबई फुटओवर ब्रिज भगदड़ : मिल तो गगनचुंबी इमारतों में बदल गये, बुनियादी ढांचा रहा जस का तस
मुंबई : एल्फिंस्टन रोड और परेल स्टेशन का इलाका कभी कपड़ा मिलों का केंद्र था लेकिन टेक्स्टाइल उद्योग के पतन के बाद यहां विकास की अंधी दौड़ शुरू हुई और अचानक ही यह इलाका गगनचुंबी इमारतों से अट गया. लेकिन इलाके की बुनियादी ढांचा दशकों पुरानी ही रही. विकास की यह बेतरतीब पसंद के चलते […]
मुंबई : एल्फिंस्टन रोड और परेल स्टेशन का इलाका कभी कपड़ा मिलों का केंद्र था लेकिन टेक्स्टाइल उद्योग के पतन के बाद यहां विकास की अंधी दौड़ शुरू हुई और अचानक ही यह इलाका गगनचुंबी इमारतों से अट गया. लेकिन इलाके की बुनियादी ढांचा दशकों पुरानी ही रही.
विकास की यह बेतरतीब पसंद के चलते आधुनिकतम इमारतों में काम करने वाले लोग उपनगरीय ट्रेनों में कठिन कठोर लंबे सफर के बाद इन दो स्टेशनों पर हजारों की तादाद में जब उतरते हैं तो उन्हें इन स्टेशनों को जोड़ने वाले ओवरब्रिज से गुजरने के लिए एक जंग करनी पडती हैं.
एक स्थानीय निवासी के अनुसार इन्ही स्थितियों के चलते आज का यह हादसा बस वक्त का इंतजार कर रहा था. मध्य रेलवे के परेल और पश्चिम रेलवे के एल्फिंस्टन रोड स्टेशनों को जोड़ने वाले ओवरब्रिज पर मची भगदड़ में कम से कम 22 लोगों की मौत हो गई जबकि अनेक घायल हो गए.
एक मार्केटिंग कंपनी के क्षेत्रीय प्रमुख अरुण तिवारी ने बताया, हर दिन सुबह और शाम में यहां जंग का आलम होता है. स्टेशन से निकलने या वहां प्रवेश करने के लिए लोग जंग लड़ते हैं. भगदड़ सुबह पौने 11 बजे के करीब हुई. अचानक शुरू हुई तेज बारिश से बचने के लिए लोगों ने उस वक्त बड़ी तादाद में ओवरब्रिज पर शरण ले रखी थी.
इसी इलाके में नजदीक ही रहने वाले तिवारी ने बताया, जब से इस इलाके में आफिसों की नयी इमारतें बनी हैं, भीड़ कई गुणा बढ़ गई है. लेकिन स्टेशन पर बुनियादी ढांचा सुधारने के लिए कुछ भी नहीं किया गया है. उन्होंने सवाल किया, इन मौतों के लिए कौन जिम्मेदार है? तिवारी ने कहा, यह तो होने वाला था. बस वक्त का मामला था. ऐसी चीजें दूसरे (रेलवे) फुटब्रिज पर भी हो सकती हैं.
रोजाना ट्रेन से सफर करने वाले सतीश पॉल का भी कमोबेश यही कहना था. उन्होंने कहा कि एल्फिंस्टन रोड़ और परेल स्टेशन के बीच आने जाने वाले लोगों की तादाद में बेतहाशा इजाफा हुआ है, लेकिन सुविधाएं जस की तस रहीं. बुनियादी ढांचे में उस रफ्तार से नहीं सुधारा गया.
रियल इस्टेट के एजेंट रविन्द्र ने बताया, जब मैं ट्रेन से उतरा तो देखा कि लोग (ओवरब्रिज पर) एक के ऊपर एक पड़े हैं और वहां चीख-पुकार मचा है. ऑफिस पहुंचने में देर होने पर लोगों की तनख्वाह कट जाती है, इस लिए तनख्वाह कटने के डर से लोग आफिस के लिए बेतहाशा दौड़ लगाते हैं. इस जल्दबाजी में हर सुबह उनकी जान खतरे में होती है. ओवरब्रिज के नजदीक ही रेलवे के क्वार्टर में रहने वाली बहनों अनीता और बबीता कांबले के लिए हर रोज की सुबह शोर भरी होती है और उनके लिए यह रोजर्मे की बात हो चुकी है.
अनीता इस लोमहर्षक हादसे का जिक्र करते हुए बताती हैं, यह साढ़े दस बजे के करीब का वक्त था. हमने लोगों के चीखने चिल्लाने की आवाज सुनी. हमें यह कोई असामान्य नहीं लगा क्योंकि आफिस के वक्त में इन स्टेशनों पर बेतहाशा भीड़ होती है. लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ जब भीड़ हमारे घर के सामने भी जमा हो गई. उसने कहा, जब हम घर से बाहर आए तो हमने देखा कि ब्रिज पर लोग एक के ऊपर एक पड़े हैं. उसने बताया कि पुलिस के आने से पहले स्थानीय लोग उनकी मदद के लिए दौड़े. अनीता ने बताया कि इलाके में नए दफ्तर बनने के बाद इन दो स्टेशनों पर आने जाने वाले लोगों की तादाद में बेतहाशा इजाफा हुआ है.
नजदीक के एक अस्पताल में काम करने वाली एक महिला ने कहा, विकास अच्छी चीज है और उसका स्वागत है. लेकिन हमें बुलेट ट्रेन नहीं चाहिए. हमें बेहतर बुनियादी ढांचा चाहिए. नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर उन्होंने कहा, हम टैक्स देते हैं. हम जीएसटी देते हैं. यह सब अच्छा है, लेकिन कम से कम और ब्रिज भी तो बनाओ.