नयी दिल्ली : सुप्रीमकोर्ट ने महात्मा गांधी हत्याकांड की नये सिरे से जांच कराने के लिए दायर याचिका पर शुक्रवार को कुछ कुरेदनेवाले सवाल पूछे और वरिष्ठ अधिवक्ता अमरेंद्र शरण को इस मामले में मदद के लिए न्याय मित्र नियुक्त किया. न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ का याचिका पर सुनवाई के दौरान शुरू में मत था कि काफी समय पहले ही निर्णित हो चुके इस मामले में कानून की दृष्टि से कुछ नहीं किया जा सकता है, परंतु बाद में उसने पूर्व अतिरक्त सालिसीटर जनरल अमरेंद्र शरण से कहा कि इस मामले का आकलन करते समय उसकी कोई भी टिप्पणी उन पर बाध्यकारी नहीं है. पीठ ने इस मामले को 30 अक्तूबर को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध कर दिया.
इससे पहले, पीठ ने इस मामले में अनेक सवाल किये. इसमें यह सवाल भी शामिल था कि इस मुकदमे में, नाथूराम विनायक गोडसे और नारायण आप्टे को दोषी ठहराने और 15 नवंबर, 1949 को फांसी दिये जाने के बाद, आगे जांच के लिए साक्ष्य कैसे जुटाये जायेंगे. महात्मा गांधी की 30 जनवरी, 1948 को दक्षिण पंथी हिंदू राष्ट्रवादी गोडसे ने काफी नजदीक से गोली मार कर हत्या कर दी थी. इस याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने टिप्पणी की, हम इस पर विचार के पक्ष में नहीं है, परंतु जब याचिकाकर्ता ने उसे कुछ समय देने का अनुरोध किया, क्योंकि इस हत्याकांड से संबंधित कुछ संवेदनशील दस्तावेजों को सार्वजनिक करने के बारे में अमेरिका में मेरीलैंड स्थित नेशनल आर्काइव्स एंड रिसर्च एडमिनिशट्रेशन के समक्ष उसकी अपील पर अभी निर्णय होना है, तो उन्होंने अपना विचार बदल दिया.
यह याचिका अभिनव भारत के ट्रस्टी और शोधकर्ता मुंबई निवासी डाॅ पंकज फडणीस ने दायर की है. उन्होंने अनेक कारणों का जिक्र करते हुए इसकी जांच फिर से करने का अनुरोध करते हुए दावा किया है कि यह सारे मामले पर पर्दा डालनेवाली इतिहास की सबसे बड़ी घटना है.
विभिन्न अदालतों द्वारा तीन गोलियों की कहानी पर भरोसा करके गोडसे और आप्टे (जिन्हे फांसी दी गयी) को दोषी ठहराने और विनायक दामोदर सावरकर (जिन्हें साक्ष्य के अभाव में संदेह का लाभ दिया गया) उन पर याचिका में सवाल उठाये गये हैं. उन्होंने दावा किया कि इन दो दोषी व्यक्तियों के अलावा एक तीसरा हत्यारा भी हो सकता है और इसलिए इस तथ्य की जांच की आवश्यकता है कि क्या दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका की खुफिया एजेंसी आफिस आॅफ स्ट्रैटेजिक सर्विसेज और सीआइए की पूर्ववर्ती एजेंसी ने गांधी को संरक्षण देने का प्रयास किया था.
इस याचिका पर सुनवाई शुरू होते ही फडणीस ने इस हत्याकांड की फिर से जांच कराने के अपने अनुरोध के समर्थन में चुनिंदा अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल करने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध न्यायालय से किया. पीठ ने याचिकाकर्ता से सवाल किया, अब इस समय हम क्या कर सकते हैं, तो उन्होंने कहा कि यह याचिका दायर करने के बाद उन्हें इस मामले से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज मिले हैं.
पीठ ने जानना चाहा, अब हम क्यों फिर से इसे खोलें. हम आपको पर्याप्त समय देंगे, परंतु आप हमें बतायें कि हम उस निष्कर्ष को क्यों फिर से खोलें जिसकी पुष्टि की जा चुकी है. न्यायालय ने जब ऐसे मामलों में समय सीमा के कानून के बारे में सवाल किया, तो उसने कहा कि उसे इसकी जानकारी है. याचिकाकर्ता ने 1966 में गठित न्यायमूर्ति जेएल कपूर जांच आयोग की रिपोर्ट का भी हवाला दिया. उन्होंने दलील की कि इस हत्याकांड में दोषियों की अपील 1949 में पूर्वी पंजाब उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी थी. इसके बाद प्रीवी काउंसिल ने इस मामले को यह कहते हुए लौटा दिया था कि भारत का उच्चतम न्यायालय जनवरी, 1950 से अस्तित्व में आ जायेगा.
फडणीस ने दावा किया कि उच्चतम न्यायालय ने कभी भी इस मामले में फैसला नहीं किया. उन्होंने यह भी कहा कि कपूर आयोग की रिपोर्ट कभी भी शीर्ष अदालत के सामने नहीं आयी. फडणीस ने बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी है जिसने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि सक्षम अदालत ने सारे तथ्य दर्ज किये थे और उच्चतम न्यायालय तक ने इसकी पुष्टि की और दूसरी बात यह कि कपूर आयोग की 1969 में रिपोर्ट आने के 46 साल बाद यह याचिका दायर की गयी है.