सुप्रीम कोर्ट में जज नहीं करते हैं माइक का इस्तेमाल, लॉ इंटर्न और वकीलों ने दायर की याचिका

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में जजों द्वारा माइक के इस्तेमाल नहीं होने से पैदा परेशानियों को लेकर याचिका दायर की गयी है. याचिका कानून के छात्रों और वकीलों के एक समूह ने दायर की है. बताया जा रहा है कि आरटीआई से प्राप्त जानकारी के मुताबिक क 91.96 लाख रुपये की रकम से सुप्रीम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 20, 2017 5:27 PM
नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में जजों द्वारा माइक के इस्तेमाल नहीं होने से पैदा परेशानियों को लेकर याचिका दायर की गयी है. याचिका कानून के छात्रों और वकीलों के एक समूह ने दायर की है. बताया जा रहा है कि आरटीआई से प्राप्त जानकारी के मुताबिक क 91.96 लाख रुपये की रकम से सुप्रीम कोर्ट में माइक्रोफोन सिस्टम खरीदी गयी थी लेकिन न्यायधीश इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं, जिससे याचिकाकर्ता और लॉ इंटर्न को काफी परेशानी उठानी पड़ती है. याचिका Whistle for Public Interest (WHIP) ग्रुप के सदस्यों ने दायर की है.
गौरतलब है कि कोर्ट रूम में जजों द्वारा माइक्रोफोन का उपयोग नहीं करने का मामला पहले भी उठता रहा है. कोर्ट रूम में कानून के छात्र, पत्रकार और याचिकाकर्ता को सुनने में काफी तकलीफ होती है. सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी में एडिशनल रजिस्ट्रार व सूचना पदाधिकारी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में 91.96 लाख के रकम से माइक खरीदे गये. यह माइक्रोफोन सिस्टम कोर्ट रूम का एक बेहद जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर में आता है. हमने दो फेज में नये माइकों का इंस्टालेशन किया.
सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका कानून के छात्र कुलदीप अग्रवाल व वकील कुमार सानू और पारस जैन ने दायर की. जनहित याचिका दायर करने वाले इस समूह इससे पहले भी जनहित याचिका दायर कर चुकी है. याचिका दायर करने वाले सूमह ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को पत्र लिखकर भी माइक्रोफोन के इस्तेमाल के लिए अपील की है. पत्र में यह भी कहा गया है कि लॉ इंटर्न के लिए इस तरह की दिक्कतें बैचेन करने वाली माहौल पैदा करती है. शुरूआत में यह समझा गया कि यह दिक्कत सिर्फ लॉ इंटर्न तक सीमित है, लेकिन बाद में इस बात की जानकारी मिली कि माइक्रोफोन के इस्तेमाल नहीं होने से याचिकाकर्ता को भी दिक्कत होती है.
चीफ जस्टिस को लिखे गये पत्र में इस बात का भी उल्लेख है कि जब कोर्ट रूम में भीड़ होती है तब भी जज माइक का इस्तेमाल नहीं करते हैं. इससे पत्रकारों को रिपोर्टिंग में गलत व भ्रामक कवरेज के खतरे बढ़ जाते हैं. भविष्य में भ्रमित कवरेज से कोर्ट की अवमानना का खतरा भी बन सकता है.

Next Article

Exit mobile version