जयपुर : सोमवार 23 अक्तूबर से राजस्थान विधानसभा का शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा है. इस सत्र में सरकार एक ऐसा बिल पास कराना चाहती है जिसमें किसी जज, सरकारी पदाधिकारी, नेता और अफसरों के खिलाफ सरकार की मंजूरी के बाद ही एफआईआर दर्ज करवाया जा सकेगा. सरकार ने इस संबंध में एक अध्यादेश निकाल दिया है. विधानसभा में पास होने के बाद यह बिल राज्यभर में लागू हो जायेगा. इसे क्रिमिनल लॉ राजस्थान अमेंडमेंट ऑर्डिनेंस 2017 के नाम से जाना जायेगा.
राजस्थान सरकार की ओर से जारी अध्यादेश में किसी भी जज, मजिस्ट्रेट या लोकसेवक के खिलाफ सरकार से मंजूरी लिए बिना किसी तरह की जांच नहीं की जायेगी. अध्यादेश के मुताबिक, कोई भी लोकसेवक अपनी ड्यूटी के दौरान लिये गये निर्णय पर जांच के दायरे में नहीं आ सकता है, सिवाय कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर 197 के.
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अध्यादेश के अनुसार किसी भी लोकसेवक के खिलाफ कोई भी व्यक्ति एफआईआर दर्ज नहीं करा सकता है. पुलिस भी एफआईआर नहीं दर्ज कर सकती है. किसी भी लोकसेवक के खिलाफ कोई कोर्ट नहीं जा सकता है और न हीं जज किसी लेकसेवक के खिलाफ कोई आदेश दे सकता है.
साथ ही मीडिया भी उससे कोई सवाल नहीं कर सकती है और नाही उसके बारे में कोई खबर प्रकाशित कर सकती है. अध्यादेश में यह कहा गया है कि किसी भी जज, मजिस्ट्रेट या लोकसेवक का नाम और पहचान मीडिया तब तक जारी नहीं कर सकता है जब तक सरकार के सक्षम अधिकारी इसकी इजाजत नहीं दें. क्रिमिनल लॉ राजस्थान अमेंडमेंट ऑर्डिनेंस 2017 में साफ तौर पर मीडिया को लिखने पर रोक लगायी गयी है.
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गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने अध्यादेश के बारे में पूछने पर कहा कि ईमानदार अधिकारी को बचाने के लिए हमने ये अध्यादेश लाया है. कोई भी ईमानदार अधिकारी काम करने में डरता था कि कोई जानबूझकर झूठी शिकायत कर उसे फंसा देगा. उसे सुरक्षा देने के लिए यह अध्यादेश लाया गया है.
हालांकि सरकार के इस अध्यादेश का विपक्ष विरोध कर रही है. कई सामाजिक संस्थाएं इसे काला अध्यादेश बता रही हैं. मीडिया में इसके बारे में प्रमुखता से खबरे चलायी जा रही हैं. कई मीडिया घरानों ने सवाल उठाये हैं कि तो क्या कोर्ट भी बिना सरकार की इजाजत के किसी भी केस दर्ज नहीं कर सकता. इसे साफ-साफ मीडिया पर अंकुश के तौर पर देखा जा रहा है.