गुजरात चुनाव : कांग्रेस के साथ क्यों संभल-संभल कर ”खेल” रहे हैं हार्दिक पटेल?

अहमदाबाद : कांग्रेस ने गुजरात विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आज पाटीदार समुदाय के युवा नेता हार्दिक पटेल को बड़ा ऑफर दिया. पार्टी ने उन्हें चुनाव लड़ने की पेशकश की, जिसे दस से पंद्रह मिनट के अंदर हार्दिक ने मीडिया में बयान देकर खारिज कर दिया. हार्दिक को यह प्रस्ताव कांग्रेस के गुजरात इकाई के अध्यक्ष […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 21, 2017 6:12 PM

अहमदाबाद : कांग्रेस ने गुजरात विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आज पाटीदार समुदाय के युवा नेता हार्दिक पटेल को बड़ा ऑफर दिया. पार्टी ने उन्हें चुनाव लड़ने की पेशकश की, जिसे दस से पंद्रह मिनट के अंदर हार्दिक ने मीडिया में बयान देकर खारिज कर दिया. हार्दिक को यह प्रस्ताव कांग्रेस के गुजरात इकाई के अध्यक्ष भरत सोलंकी दे दिया. निश्चित रूप से हाइकमान के निर्देश पर ही उन्होंने यह प्रस्ताव दिया होगा. गुजरात चुनाव में पूरी ऊर्जा झोंक चुकी कांग्रेस को उम्मीद है कि हार्दिक पटेल या अपने समुदाय के उनके जैसे दूसरे उभरे अन्य दो युवा नेता जिग्नेशमवानी व अल्पेश ठाकोर उसकी नैया को गुजरात में पार लगा सकते हैं. लेकिन, हार्दिक सहित ये तीनों कांग्रेस के साथ चतुराई भरा खेल खेल रहे हैं और अबतक अपने पत्ते नहीं खोले हैं.

हार्दिक पटेल ने आज जिस त्वरित ढंग से कांग्रेस के प्रस्ताव को संवैधानिक बाध्यताओं का हवाला देते हुए खारिज किया और साथ ही उसे चुनावी स्टंट भी बताया और फिर ऐसे प्रस्ताव पर आंदोलन के दूसरे नेताओं द्वारा विचार करने की बात कही, उससे उन्होंने एक साथ कई चीजें साधने की कोशिश की. पाटीदारों के प्रखर नेता की छवि अख्तियार कर चुके हार्दिक ने खुद को तो चुनाव से अलग कर लिया, लेकिन अपने साथियों के लिए ऐसी संभावनाओं को खारिज नहीं किया. साथ ही अपने छवि को बनाये रखने के लिए उन्होंने कांग्रेस के इस बयान को चुनावी स्टंट भी करार दिया और गुजरात के छह करोड़ लोगों की बात की. ऐसे में संभव है कि फ्रंट के बजाय कांग्रेस के साथ कोई बैकडोर वार्ता हो और कुछ राह निकले.


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हार्दिक पटेल को यह अंदाज है कि अगर वे एक बार सीधे तौर पर किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ जाते हैं तो उनका आभामंडल खत्म हो सकता है, और ऐसा नहीं होगा तो वह कम तो जरूर हो जायेगा. पटेलों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर हार्दिक ने अपना लक्ष्य भाजपा को सत्ता से बाहर करने का बनाया है और ऐसे में वे किसी पार्टी से सीधे तौर पर न जुड़कर ऐसी स्थितियां बनाना चाहते हैं जिससे ऐसी संभावनाएं मजबूत हो. अगर वे किसी पार्टी से जुड़ेंगे तो विरोधियों को यह कहने का मौका मिल जायेगा कि वे पहले से ही उनके एजेंट के रूप में भाजपा को अस्थिर कर रहे थे. आम आदमी पार्टी के साथ उनके कथित रिश्तों पर ऐसी बातें पहले कही जा चुकी है. इसलिए चुनाव के ऐन पहले हार्दिक ऐसी कोई भूल नहीं करना चाहते हैं.

पिछले महीने जब गुजरात के द्वारिकाधाम में पूजा-अर्चना कर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी मिशन गुजरात की शुरुआत करने वाले थे, तब भी हार्दिक पटेल ने राधे-राधे लिख व भगवान कृष्ण की भूमि पर उनका स्वागत किया था, लेकिन इस स्वागत भरे ट्वीट को गठजोड़ के रूप में देखे जाने की संभावनाओं कोकुछही घंटेके अंदर खारिज कर दिया था. तब उन्होंने मीडिया से कहा था कि ऐसी किसी भी बात के लिए जरूरी है कि दो कदम हम बढ़ें तो दो कदम वे भी बढ़ें. वे कुछ पहल करें तब हम इस पर विचार करेंगे. उनका आशय पटेलों के लिए आरक्षण सहित अन्य दूसरी मांगों के बारे में ठोस विश्वास दिलाने से था. गुजरात में 40 से अधिक सीटों पर पटेल समुदाय किसी की भी हार-जीत तय कर सकता है और राज्य में यह सबसे प्रभावी मतदाता वर्ग है. गुजरात के सबसे बड़े क्षेत्र सौराष्ट्र में इस समुदाय का दबादबा है. इसलिए सौराष्ट्र से राहुल गांधी व नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत की.

इस संपन्न राज्य में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है. अमीरी-गरीबी की खाई चौड़ी हुई है. राज्य में 10.4 लाख युवा बेरोजगार हैं. कुछ महीने पूर्व जब गुजरात परिवहन निगम ने 600 बस कंडक्टर की वेकैंसी निकाली तो12लाख आवेदनआये, इसी तरह विलेजएकाउंटेंटके1100 पदों के लिए 14 लाख आवेदन प्राप्त हुए थे. इससे स्थितिका अनुमान लगाया जा सकता है.ऐसे में नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की राजनीतिक लड़ाई में हार्दिक पटेल ऐसे खेलना चाहते हैं ताकि कोई जीते-हारे सेहरा उनके सिर बंधे.

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