17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

महात्मा गांधी की हत्या का मामला फिर से खाेले जाने के विरोध में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे तुषार गांधी

नयी दिल्लीः करीब 70 साल पहले महात्मा गांधी की हुर्इ हत्या के मामले को दोबारा खोले जाने की मांग करने वाली याचिका के विरोध में उनके पड़पोते तुषार गांधी ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एमएम शांतानागौदर की पीठ ने यह जानना चाहा कि तुषार किस हैसियत […]

नयी दिल्लीः करीब 70 साल पहले महात्मा गांधी की हुर्इ हत्या के मामले को दोबारा खोले जाने की मांग करने वाली याचिका के विरोध में उनके पड़पोते तुषार गांधी ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एमएम शांतानागौदर की पीठ ने यह जानना चाहा कि तुषार किस हैसियत से इस याचिका का विरोध कर रहे हैं.

अदालत के इस सवाल पर तुषार गांधी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि अगर अदालत इस मामले पर आगे बढ़ती है और नोटिस जारी करती है, तो वह स्थिति के बारे में समझा सकेंगी.पीठ ने कहा कि इस मामले में कई सारे किंतु-परंतु हैं और अदालत न्यायमित्र अमरेंद्र शरण की रिपोर्ट का इंतजार करना चाहेगी.

इसे भी पढ़ेंः गोडसे के रिश्तेदार ने कहा, गांधी की हत्या के बाद RSS ने नाथूराम गोडसे का किया था बहिष्कार

अमरेंद्र शरण ने रिपोर्ट दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय मांगते हुए कहा था कि उन्हें राष्ट्रीय अभिलेखागार से दस्तावेज अभी नहीं मिले हैं. जयसिंह ने कहा कि वह महात्मा गांधी की हत्या के 70 साल पुराने मामले को फिर से खोले जाने का विरोध कर रही हैं और याचिकाकर्ता के याचिका दायर करने के अधिकार पर भी सवाल उठा रही हैं. याचिकाकर्ता मुंबई के रहने वाले पंकज फडनीस हैं. वह अभिनव भारत के न्यासी और शोधकर्ता हैं.

इस मामले को पीठ ने चार सप्ताह बाद के लिए सूचीबद्ध किया. शीर्ष अदालत ने इस मामले में सहयोग के लिए छह अक्टूबर को वरिष्ठ अधिवक्ता शरण को न्यायमित्र नियुक्त किया था. इस मामले में पीठ ने कई सवाल उठाये मसलन मामले में आगे की जांच के आदेश के लिए अब साक्ष्य किस तरह जुटाये जा सकेंगे.

गौरतलब है कि मामले में दोषी करार दिये गये नाथूराम विनायक गोडसे और नारायण आप्टे को 15 नवंबर, 1949 को फांसी दे दी गयी थी. महात्मा गांधी की 30 जनवरी, 1948 को नयी दिल्ली में हिंदू राष्ट्रवाद के दक्षिणपंथी समर्थक गोडसे ने बेहद नजदीक से गोली मारकर हत्या कर दी थी.

फडनीस ने कई आधारों पर जांच को फिर से शुरू करने की मांग की थी. उन्होंने दावा किया था कि यह इतिहास का सबसे बड़ा कवर-अप (लीपापोती) है. उन्होंने तीन गोलियों वाली थ्योरी पर भी सवाल उठाया. इसी थ्योरी के आधार पर विभिन्न अदालतों ने आरोपी गोडसे और आप्टे को दोषी करार दिया था. उन्हें फांसी दे दी गयी थी, जबकि विनायक दामोदर सावरकर को साक्ष्यों के अभाव में संदेह का लाभ दिया गया था.

फडनीस ने दावा किया कि दो दोषी व्यक्तियों के अलावा कोई तीसरा हमलावर भी हो सकता है. उन्होंने कहा कि यह जांच का विषय है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका की खुफिया एजेंसी और सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) की पूर्ववर्ती ऑफिस ऑफ स्ट्रेटेजिक सर्विसेस (ओएसएस) ने महात्मा गांधी को बचाने की कोशिश की थी या नहीं.

उन्होंने बंबई हार्इकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें छह जून, 2016 को दो आधारों पर उनकी जनहित याचिका रद्द कर दी गयी थी. पहला यह कि तथ्यों की जांच-पड़ताल एक सक्षम अदालत ने की है और इसकी पुष्टि शीर्ष अदालत तक हुई है. दूसरा यह कि कपूर आयोग ने अपनी रिपोर्ट जांच-पड़ताल पूरी करके वर्ष 1969 में सौंपी थी, जबकि वर्तमान याचिका 46 वर्ष बाद दायर की गयी.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें