पुण्यतिथि: तीन बड़े फैसलों से इंदिरा बनीं थीं ‘आयरन लेडी’, मशीनगन से उनपर चलायी गयी थी गोलियां
आज 31 अक्तूबर को भारत की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 33वीं पुण्यतिथि है. मजबूत इच्छाशक्ति और दृढ़संकल्प के कारण वे आजाद भारत की आयरन लेडी के नाम से मशहूर थीं. 31 अक्तूबर, 1984 को उनकी हत्या सतवंत और बेअंत सिंह नामक दो कांस्टेबल ने कर दी थी. जिस दिन हत्या हुई, […]
आज 31 अक्तूबर को भारत की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 33वीं पुण्यतिथि है. मजबूत इच्छाशक्ति और दृढ़संकल्प के कारण वे आजाद भारत की आयरन लेडी के नाम से मशहूर थीं. 31 अक्तूबर, 1984 को उनकी हत्या सतवंत और बेअंत सिंह नामक दो कांस्टेबल ने कर दी थी. जिस दिन हत्या हुई, वहां ब्रिटेन के अभिनेता पीटर उस्तीनोव भी मौजूद थे. वह डाक्यूमेंट्री के सिलसिले में उनसे मिलने आये थे. पीटर बताते हैं कि शुरू में गोलियों की तीन आवाजें आयीं तो कैमरामैन ने कहा कि लगता है कोई पटाखे छोड़ रहा है. जब मशीनगन की आवाज आयी, तब समझा कि गोलियां इंदिरा गांधी पर चलायी गयीं.
बैंकों का राष्ट्रीयकरण
1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश के 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण का बड़ा कदम उठाया था. तब मोरारजी देसाई वित्त मंत्री थे. उन्होंने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था. इसके बावजूद 19 जुलाई, 1969 को एक अध्यादेश के जरिये 14 बैंकों का स्वामित्व राज्य के हवाले कर दिया गया. तब इन बैंकों के पास देश का 70 प्रतिशत जमापूंजी थी. 40 फीसदी पूंजी को कृषि और लघु व मध्यम उद्योगों की साख के लिए रखा गया. 1980 में छह और बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया. इंदिरा ने यह कदम तब उठाया था, जब उन पर अपनी ही पार्टियों के विरोधी धड़े के विरोध का सामना करना पड़ा था.
राजा-महाराजाओं के प्रिवीपर्स की समाप्ति
1970 में संविधान के 24वें संशोधन के जरिये जमींदारी प्रथा का उनमूलन किया गया. 23 जून, 1967 को ऑल इंडिया कांग्रेस ने प्रिवीपर्स की समाप्ति का प्रस्ताव पारित किया. 1970 में लोकसभा में 332-154 वोट से यह प्रस्ताव पारित हुआ, लेकिन राज्य सभा में यह 149-75 से पराजित हो गया. राज्यसभा में हारने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी ने अध्यादेश जारी किया. इस तरह राजे-महाराजों के सारे अधिकार और सहूलियतें वापस ले ली गयीं.
बांग्लादेश का उदय
पाकिस्तान की सेना के शासन में घुटन महसूस कर रही पूर्वी पाकिस्तान की जनता को इंदिरा का साथ मिला. शेख मुजीबुर रहमान की अगुआई में मुक्ति वाहिनी ने पाकिस्तान की सेना से गृहयुद्ध शुरू कर दिया. भारत ने मुक्ति वाहिनी को संगठित करने के लिए उसने अपनी फौज भेजा. प्रतिशोध में पाकिस्तान की हवाई सेना ने भारतीय एयर बेस पर हमले शुरू कर दिये. 1971 के युद्ध में पाकिस्तान कमजोर पड़ने लगा. 16 दिसंबर को भरातीय सेना ढाका पहुंच गयी.