सुप्रीम कोर्ट ने कहा-राष्ट्रहित में नेताओं के आपराधिक मुकदमों की सुनवाई विशेष अदलतों में होनी चाहिए

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने नेताओं की संलिप्ततावाले आपराधिक मामलों की सुनवाई और उनके तेजी से निबटारे के लिए विशेष अदालतों के गठन की हिमायत करते हुए बुधवार को कहा कि इस तरह की पहल राष्ट्र हित में होगी. न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की दो सदस्यीय खंडपीठ ने केंद्र को इस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 1, 2017 9:54 PM

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने नेताओं की संलिप्ततावाले आपराधिक मामलों की सुनवाई और उनके तेजी से निबटारे के लिए विशेष अदालतों के गठन की हिमायत करते हुए बुधवार को कहा कि इस तरह की पहल राष्ट्र हित में होगी. न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की दो सदस्यीय खंडपीठ ने केंद्र को इस बारे में एक योजना पेश करने का निर्देश दिया और उससे सांसदों तथा विधायकों की संलिप्ततावाले 1581 आपराधिक मामलों के बारे में जानकारी मांगी. 2014 के चुनावों के दौरान नेताओं ने नामांकन पत्र के साथ उनके खिलाफ लंबित इन आपराधिक मामलों की जानकारी दी थी. न्यायालय यह भी जानना चाहता है कि 2014 के उसके निर्देशों के अनुरूप इनमें से कितने मामलों का एक साल के भीतर निबटारा किया गया है.

केंद्र सरकार को यह सारी जानकारी छह सप्ताह के भीतर पेश करनी है. इस मामले में अब 13 दिसंबर को आगे सुनवाई होगी. न्यायालय यह भी जानना चाहता है कि 1581 आपराधिक मामलों में से कितने मामलों की परिणति दोषसिद्धि अथवा उन्हें बरी करने के रूप में हुई. इसके अलावा न्यायालय ने 2014 से अब तक नेताओं के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों तथा उनके निष्पादन का विवरण भी मांगा है. पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब केंद्र ने कहा कि राजनीति का अपराधीकरण खत्म करना होगा ओर वह नेताओं की संलिप्ततावाले आपराधिक मुकदमों की सुनवाई और उनके तेजी से निबटारे के लिए विशेष अदालतें गठित करने के खिलाफ नहीं है.

केंद्र की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल आत्माराम नाडकर्णी ने पीठ से कहा कि सरकार विशेष अदालतें गठित करने और नेताओं की संलिप्ततावाले मुकदमों के तेजी से निबटारे के खिलाफ नहीं है. उन्होंने कहा कि आपराधिक मामलों में दोषी ठहराये गये नेताओं को उम्र भर चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित करने की हिमायत करनेवाली निर्वाचन आयोग और विधि आयोग की सिफारिशें केंद्र के पास विचाराधीन हैं.

नाडकर्णी ने जब यह कहा कि केंद्र राजनीति के अपराधीकरण को खत्म करने के पक्ष में है तो पीठ ने सवाल किया, क्या इसके अलावा कोई अन्य दृष्टिकोण भी हो सकता है? शीर्ष अदालत ने इसके बाद पक्षकारों में से एक के द्वारा पेश एक रिपोर्ट का जिक्र किया और केंद्र से कहा कि 2014 के चुनावों के दौरान नेताओं द्वारा दाखिल नामांकन पत्रों के विवरण के अनुसार उनके खिलाफ 1581 मामले लंबित थे. केंद्र ने कहा कि वह न्यायालय द्वारा मांगा गया विवरण पेश करेगा.

पीठ ने जब यह कहा कि यह विशेष अदालते सिर्फ नेताओं की संलिप्तता वाले आपराधिक मुकदमों की ही सुनवाई करेंगी तो केंद्र ने जानना चाहा कि क्या इन अदालतों को विशेष सीबीआइ अदालतों के साथ मिलाया जा सकता है जो पहले से ही काम कर रही हैं. इस पर पीठ ने कहा, नहीं, इन्हें किसी भी अन्य के साथ मिलाया नहीं जाये. यह राष्ट्र हित में है. न्यायाधीशों ने टिप्पणी की कि देश में अधीनस्थ न्यायपालिका में प्रत्येक अदालत औसतन चार हजार मुकदमों को देख रही है और यदि सिर्फ नेताओं से संबंधित मुकदमों की न्यायिक अधिकारी सुनवाई नहीं करेंगे, तो मुकदमे की सुनवाई एक साल के भीतर पूरा करना मुश्किल होगा.

इसके साथ ही पीठ ने कहा, हम केंद्र सरकार के सक्षम प्राधिकारी को निर्देश देते हैं कि वह न्यायालय में निम्न जानकारी पेश करे. सांसदों और विधायकों से संबंधित 1581 आपराधिक मामलों में से कितने शीर्ष अदालत के 10 मार्च, 2014 के आदेश के अनुरूप एक साल के भीतर निबटाये गये. न्यायालय ने यह भी जानना चाहा इनमे से कितने मामलों का सांसदों और विधायकों को बरी करने या दोषी ठहराने के रूप में अंतिम निबटारा हुआ. शीर्ष अदालत वकील अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस याचिका में जनप्रतिनिधत्व कानून के उन प्रावधानों को असंवैधानिक करार देने का अनुरोध किया गया है जिनमें दोषी व्यक्ति के सजा पूरी करने के बाद उसे छह साल की अवधि तक चुनाव लडने के अयोग्य घोषित किया गया है.

Next Article

Exit mobile version