देवभूमि में भी अच्छे दिन आयेंगे?

।।धनंजय सिंह।।हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है की कब कौन सा नेता किस पार्टी में घुस जाए पता नहीं चलता. कई बात नीतियां भी सभी दलों की एक सी ही लगती हैं लेकिन अगर उत्तराखंड की बात करें तो वहां भाजपा और कांग्रेस केवल नाम के दो दल हैं वर्ना आंख बंद करके भी आप कह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 20, 2014 9:24 AM

।।धनंजय सिंह।।

हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है की कब कौन सा नेता किस पार्टी में घुस जाए पता नहीं चलता. कई बात नीतियां भी सभी दलों की एक सी ही लगती हैं लेकिन अगर उत्तराखंड की बात करें तो वहां भाजपा और कांग्रेस केवल नाम के दो दल हैं वर्ना आंख बंद करके भी आप कह सकते हैं की एक ही पार्टी के दो नाम हैं.अब बताईये कहां है कैडर वाली राजनीति और लोकतंत्र की बातें? शायद ही कोई बड़ा फर्क हो जो इन दोनों को अलग करता हो, उसका कारण ये भी हो सकता है की छोटा राज्य होने के नाते सबकी आपस में रिश्तेदारी भी है और नहीं भी है तो सबमें आपस में बहुत ही मधुर रिश्ते हैं, इस नाते एक दूसरे से प्रभावित हो जाना स्वाभाविक ही है. अब देखिये हरिद्वार में बड़े-बड़े पोस्टर लगे हुए हैं जिनपर छपा है की बहुत हुआ भ्रष्टाचार, अबकी बार मोदी सरकार. पोस्टर चिपकाने वाले को तो कीमत मिली होगी, उसने लगा दिया लेकिन भाजपा वाले एकदम से शर्मिदा नहीं हैं जबकि हरिद्वार के उनके प्रत्याशी पूर्व मुख्यमंत्री निशंक जी हैं. बड़े काबिल आदमी हैं, शिशुमंदिर के अध्यापक के रूप में कैरियर शुरू करके राज्य के मुख्यमंत्री पद को प्राप्त किये, साहित्यकार के रूप में भी खूब ख्याति मिली लेकिन जब मुख्यमंत्री के रूप में उनकी ख्याति बढ़ने लगी तब पार्टी के अन्दर उनके विरोधी सक्रि य हो गए.

निशंक जी के गले हरिद्वार महाकुम्भ घोटाला, आर्केडिया घोटाला और न जाने कितने घोटालों के तमगे लटकने लगे, सब विरोधियों की चाल थी लेकिन आलाकमान चाल में फंस गया और एक सौम्य-सुशील से लगने वाले मुख्यमंत्री को गद्दी से बेदखल करना पड़ा. बताया जाता है की निशंक को हटाने के सिवाय पार्टी के पास कोई और चारा नहीं था क्योंकि छवि गिरती जा रही थी. कमाल देखिये की अब लहर पर सवार होकर वही निशंक जी बहुत हुआ भ्रष्टाचार के पोस्टर के साथ हरिद्वार लोकसभा से संसद पहुंचने की तैयारी में हैं. उसी सीट से कांग्रेस ने मुख्यमंत्री हरीश रावत की पत्नी रेणुका रावत को मैदान में उतारा है यानि कोई लोकल कैडर नहीं था पार्टी के पास, वो तो गनीमत है की अबकी किसी लहर की आहट है वरना अपने पुराने तिवारी जी ने फिर तेवर दिखाया होता और पुराने चुनाव की तरह अपनी ही पार्टी की रेणुका जी को धूल चटाने के लिए एड़ी-छोटी का जोर लगा दिया होता. तिवारी जी दूर अपने गृह क्षेत्र में अपनी संभावनाओं को तलाशते हुए फिलहाल बेटे के साथ ही खुश हैं क्योंकि उनको खड़ा होने से रोक कर पार्टी खुशी मना रही है, उधर समाजवादी पार्टी भी मायूस सी लगती है क्योंकि उसे लग रहा था की मुलायम सिंह की श्रद्धा का ध्यान रखते हुए तिवारी जी नैनीताल में सपा का झंडा थाम लेंगे. लेकिन कांग्रेस ने तिवारी जी को पुराने गौरव की कसम दिला कर उठने नहीं दिया.

लोग कह रहे हैं की कांग्रेस की तिवारी जी से कोई डील हो गयी है और चुनाव बाद उनके ताजा वैधानिक पुत्र बने रोहित जी को कहीं एडजस्ट कर दिया जायेगा. यानि तिवारी जी के उठने की खबर से कांग्रेस में घबड़ाहट होने लगी थी और उठने न पाए योद्धा इसा लिए तमाम रणनीतिकारों ने काफी घेराबंदी कर दी थी जो सफल ही रही. उनको बैठा कर कांग्रेस ने ठीक नहीं किया, बहुत पाप लगेगा वर्ना सोचिये जिसे अपना बेटा मानने से इंकार करते रहे, दुनिया भर में बेईज्जती करवा लेने के बाद गले लगाया और अपनाते ही उसे पैत्रिक इलाके में भेजा की गांव जाकर अभी जो बुजुर्ग जीवित बचे हैं और गांव छोड़कर जो युवक शहर भागे नहीं हैं उन सबसे आशीर्वाद लेकर आये. ऐसी मिशाल इतिहास में कहीं नहीं मिलती, कांग्रेस ही नहीं देश की एक नायब धरोहर हैं तिवारी जी. अच्छा हुआ जो तमाम कयासों के बाद भी वह बागी नहीं बने क्योंकि बागी बहुत खतरनाक होता है. तिवारी जी एक बार बागी हुए थे तब उन्होंने अपनी अलग तिवारी कांग्रेस बनाई थी, अर्जुन सिंह जैसे नामी लोग उसमें शामिल हो गए थे और शामिल हुए थे पहाड़ के नामी, संत और नेता की काकटेल से बने महापुरुष सतपाल महराज. महराज देवगौड़ा सरकार में रेल राज्यमंत्री बने. तिवारी जी बाद में कांग्रेस में वापस आ गये तब भी संत महराज ने तिवारी कांग्रेस का झंडा थामे रहा और कहा की जनता की सेवा करने के मिशन में वो छोटी-मोटी बाधाओं से नहीं घबराते और उन्होंने मंत्री पद का त्याग नहीं किया.

उस समय महराज ने पहाड़ में रेल चढ़ाने के भी तमाम वायदे किये. देखने की बात होगी की अब वो लहर पर सवार हो गए हैं. लहर के बारे में कहा जा रहा है की कुछ भी असंभव नहीं है, देखने वाली बात होगी की अब पहाड़ में रेल भी चढ़ती है या सब हवा हवाई है. सतपाल महराज के सेवा भाव से किसी को आश्चर्य नहीं होता,वो पति-पत्नी सेवा के लिए ही पैदा हुए हैं. बहुगुणा सरकार में बागवानी विभाग की मंत्री रहते हुए उनकी पत्नी के ऊपर जब घोटालों के आरोप लगे तो गुरु दंपति ने सीना ठोक कर भाजपा वालों को ललकारा कि अरबों के घोटाले करने वाले करोंड़ों के छोटे-मोटे घोटालों पर उंगली उठा रहे हैं. अब नया खेल देखिये की पौड़ी से सांसद महराज लहर पर सवार होकर भाजपा में चले आये हैं और प्रवचन दे रहे हैं की महायज्ञ में वो किसी लालच से नहीं वर्ना जूठे पत्तल उठा कर पुण्य कमाने आये हैं वहीं उनकी पत्नी माता अमृता रावत जी कांग्रेस सरकार में अपना मंत्री पद छोड़ नहीं सकतीं क्योंकि उन्होंने आजीवन जनता की सेवा करने का व्रत लिया हुआ है.

गजब लोकतंत्र हैं हमारे देश में, जिस किसी ने भी दुनिया में लोकतंत्र की अवधारणा को गढ़ा होगा वो आज जिंदा रहता तो टिहरी झील में कूद कर आत्महत्या कर लिया होता. टिहरी सीट की भी कहानी गजब है. देश की आजादी के लिए जब जंग चल रही थी तब टिहरी रियासत के खिलाफ भी कुछ रणबांकुरों ने आवाज उठायी थी लेकिन देश आजाद होते ही टिहरी की प्रजा भी सब कुछ भुला बैठी. सबसे अधिक बार राज परिवार के लोग ही चुनकर संसद पहुंचते रहे, पहले कांग्रेस से फिर भाजपा से. पिछले उपचुनाव के समय भाजपा ने महारानी टिहरी को खड़ा किया तो तमाम लोग सवाल उठाते थे की इनके पास भारत की नागरिकता है भी की अभी भी नेपाली ही हैं लेकिन मामला सलट गया था और महारानी संसद पहुंच गयीं.

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