आबादी के चलते उत्तर भारत के लोगों के वोट की कीमत घट गयी

लोकतंत्र के विकेंद्रीकरण के लिए जरूरी है कि संसदीय सीटों की संख्या बढ़ायी जाये. अभी तो नौबत यह है कि नेता को जनता और उसकी समस्याओं से भेंट ही नहीं हो पाती. ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि लोग अपने कैसे जनप्रतिनिधि का चुनाव करते हैं. दूसरे राज्यों में जहां आबादी का घनत्व […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 20, 2014 9:40 AM

लोकतंत्र के विकेंद्रीकरण के लिए जरूरी है कि संसदीय सीटों की संख्या बढ़ायी जाये. अभी तो नौबत यह है कि नेता को जनता और उसकी समस्याओं से भेंट ही नहीं हो पाती. ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि लोग अपने कैसे जनप्रतिनिधि का चुनाव करते हैं. दूसरे राज्यों में जहां आबादी का घनत्व कम है, वहां नेता और जनता के बीच संवाद की स्थिति रहती है. पर हिन्दी पट्टी के राज्यों में ऐसी स्थिति नहीं है क्योंकि यहां आबादी का घनत्व ज्यादा है. अगर हम दूसरे देशों से तुलना करें तो एक सीट पर आबादी का दबाव कम है.

इस लिहाज से लोकसभा सीटों की तादाद बढ़नी चाहिए. संसदीय सीटों का क्षेत्रफल बड़ा होने के चलते लोगों को पता भी नहीं चलता कि वे अपने जनप्रतिनिधि का चुनाव कर रहे हैं. उन्हें यह भी पता नहीं चलता कि लोकसभा का चुनाव हो रहा है. अगर हमें इसे दूसरे तरीके से देंखे तो कह सकते हैं कि कम क्षेत्रफल वाली संसदीय सीटों वोटों का प्रतिशत बढ़ता है. नार्थ-इस्ट में मतदान का प्रतिशत ज्यादा होने का यह भी एक कारण है. मणिपुर में 80 फीसदी तक मतदान का औसत हो जाता है और हमारे यहां 52 फीसदी से आगे नहीं बढ़ पाया है. पश्चिम बंगाल में भी मतदान का औसत ज्यादा रहता है. दूसरी चिंता की बात है कि बिहार जैसे राज्यों में साक्षरता में वृद्धि के बावजूद मतदान का औसत नहीं बढ़ रहा है. इसका अर्थ सीधा है कि नेताओं की जनता तक पहुंच नहीं हो पा रही है. चुनाव आयोग के जगरुकता अभियान के बावजूद आखिर मतदान का औसत क्यों बढ़ नही रहा है. सीटों की संख्या इसलिए बढ़नी चाहिए कि इससे महिलाओं की राजनीति में भागीदारी बढ़ेगी.इससे पुरुष का वर्चस्व टूटेगा. दूसरी बड़ी बात है कि लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ने से लोकतंत्र का विकेंद्रीकरण होगा.

संजय कुमार
प्रोफेसर, सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवनपिंग सोसायटी

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