सुप्रीम कोर्ट का ”पद्मावती” की रिलीज पर प्रतिबंध लगाने से इनकार

नयी दिल्ली/लखनऊ : उच्चतम न्यायालय ने बॉलीवुड फिल्म पद्मावती की रिलीज पर रोक लगाने संबंधी याचिका को शुक्रवार को अस्वीकार करते हुए कहा कि सेंसर बोर्ड किसी भी फिल्म को प्रमाणपत्र देने से पहले सभी पहलूओं पर गौर करता है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाइ चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 10, 2017 5:17 PM

नयी दिल्ली/लखनऊ : उच्चतम न्यायालय ने बॉलीवुड फिल्म पद्मावती की रिलीज पर रोक लगाने संबंधी याचिका को शुक्रवार को अस्वीकार करते हुए कहा कि सेंसर बोर्ड किसी भी फिल्म को प्रमाणपत्र देने से पहले सभी पहलूओं पर गौर करता है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाइ चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि रिलीज से पहले फिल्म को प्रमाणपत्र देने के संबंध में सेंसर बोर्ड के पास अनुपालन के लिए पर्याप्त दिशा-निर्देश हैं.

पीठ सिद्धराजसिंह एम चूड़ासामा और 11 अन्य की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिका में प्रतिष्ठित इतिहासकारों की एक समिति बनाने का अनुरोध किया गया था जो फिल्म में रानी पद्मावती के फिल्मांकन में किसी गलती को रोकने के लिए पटकथा की जांच करे. याचिका में यह भी अनुरोध किया गया था कि निर्माता-निर्देशक द्वारा फिल्म से इतिहास संबंधी कथित गड़बड़ियां दूर होने तक इसकी रिलीज प्रतिबंधित कर दी जाये.

फिल्म पर सती प्रथा को बढ़ावा देने का आरोप

उधर, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में एक जनहित याचिका दायर कर पद्मावती फिल्म पर सती प्रथा को महिमांडित करने का आरोप लगाया गया है. याचिका पर गुरुवारको सुनवाई के बाद अदालत ने कहा कि याची अपनी बात सक्षम प्राधिकारी के समक्ष अपील के माध्यम से रख सकता है. यह आदेश न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन की पीठ ने कामता प्रसाद सिंघल की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर पारित किया. याची के अधिवक्ता विरेंद्र मिश्रा के मुताबिक याचिका में कहा गया था कि फिल्म मलिक मोहम्मद जायसी की रचना पद्मावत पर आधारित है जिसके अंत में रानी पद्मावती सती हो जाती हैं.

अधिवक्ता के अनुसार याचिका में कहा गया है कि इस बात को फिल्म में दिखाना सती प्रथा को बढ़ावा देना माना जाना चाहिए. सती प्रथा को किसी भी प्रकार से महिमामंडित करना सती प्रथा निवारण अधिनियम के विरुद्ध है और ऐसा करना दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है. लिहाजा ऐसी फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगायी जानी चाहिए. अदालत ने हालांकि कहा कि याची सिनेमेटोग्राफी एक्ट के प्रावधानों के तहत सेंसर बोर्ड के निर्णय के विरुद्ध सक्षम प्राधिकारी के समक्ष जा सकता है.

कमेटी बनाने पर विचार

इस बीच, राजस्थान के गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया ने कहा कि पद्मावती फिल्म को लेकर की गयी आपत्तियों और उनसे उपजे विवाद के मद्देनजर सरकार एक कमेटी बनाने पर विचार कर रही है. कटारिया ने कहा, मैं शुक्रवार को अधिकारियों के साथ एक बैठक करूंगा जिसमें हमलोग राजस्थान में पद्मावती फिल्म से संबंधित मामलों पर कमेटी बनाने के लिए विचार करेंगे. कमेटी में संभवत: इतिहासकारों को सदस्य के रूप में शामिल किया जायेगा. राजपूत समाज के नेताओं और कई संगठनों ने फिल्म में रानी पद्मावती से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ किये जाने का आरोप लगाते हुए इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है. भाजपा विधायक और जयपुर के पूर्व राजघराने की सदस्य दीया कुमारी, करणी सेना, बजरंगदल और अन्य का कहना है कि फिल्म में इतिहास के साथ की गयी छेड़छाड़ को स्वीकार नहीं किया जायेगा.

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