भाजपा गुजरात चुनाव में जातिवाद के मुद्दे व इसके खतरे को जोरशोर से उठा सकती है, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पहले ही इसे दूसरा बड़ा चुनावी मुद्दा बताया है
अहमदाबाद: गुजरात चुनाव के मद्देनजर पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने आखिरकार आज कांग्रेस को समर्थन देने का एलान कर दिया. हार्दिक ने आज एक प्रेस कान्फ्रेंस में कहा कि कांग्रेस ने हमें वादा किया है कि वह सत्ता में आने के बाद पटेलों की आर्थिक-सामाजिक हालतकासर्वे करायेगी और फिर उसके आधार पर आरक्षण के संबंध में फैसला लेगी. हार्दिक ने तमिलनाडु व राजस्थान का जिक्र करते हुए कहा कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण संभव है. हार्दिक ने अपनी लड़ाई को भाजपा के खिलाफ लड़ाई की संज्ञा दी. चुनाव के ठीक पहले हार्दिक के ऐसे एलानों की उम्मीद भारतीय जनता पार्टी लगाये हुए थी. इसलिए भाजपा ने अपने चुनावी एजेंडे में दो चीजों को सर्वोच्च स्तर पर रखा है – एक विकास, दूसरा जातिवाद काविरोध. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने गुजरात चुनाव को लेकर दिये अपनेपहलेइंटरव्यू में इसप्रमुख चुनावी एजेंडे के सवालपर स्पष्ट रूप से कहा था कि विकासऔर जातीयखेमाबाजी का सवाल हमारे एजेंडे मेंसबसेऊपर रहेगा.
दरअसल, अमित शाह कांग्रेस नेता माधव सिंह सोलंकी द्वारा 1985 में तैयार किये गये खाम समीकरण का संकेत कर रहे थे, जिसमें उन्होंने राजपूत, दलित, आदिवासी और मुसलिम वोटरों को मजबूत गठजोड़ तैयार किया था और ऐतिहासिक रूप से गुजरात में 149 सीटें हासिल कर ली थीं. सोलंकी के इस रिकार्ड को गुजरात की राजनीति में अबतक कोई तोड़ नहीं सका है. सोलंकी ने सत्ता में आने के बात जातीय आरक्षण के लिए जो कदम उठाये, उससे गुजरात में बड़े पैमाने पर हिंसा फैली थी और दर्जनों लोगों की मौत हो गयी थी.
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सीएसडीएस के डायरेक्टर व चुनाव विश्लेषक संजय कुमार का मानना है कि हार्दिक के कांग्रेस में समर्थन में आने से पाटीदार समुदाय के युवा वोटरों का पार्टी को लाभ होगा, लेकिन यह कहना मुश्किल है कि इस समुदाय के सभी वोट कांग्रेस की ओर जायेंगे. वे कहते हैं कि सिर्फ फॉर्मूले पर वोट आने लगे इसकी गुंजाइश कम है. वे आरक्षण लागू करने में आने वाली दिक्कतों को चिह्नित करते हुए कहते हैं कि सिर्फ समझौते से आरक्षण लागू हो जाये, ऐसा नहीं है. वे कहते हैं कि हमेशा पाटीदारों का बड़ा वर्ग बीजेपी को वोट करता रहा है, लेकिन अनुमान है कि इस बार वैसा नहीं होगा और वे कांग्रेस की ओर जायेंगे. ध्यान रहे कि गुजरात में 14 प्रतिशत पाटीदार वोटर हैं और बीते चुनाव में भाजपा व कांग्रेस के वोटों का अंतर नौ प्रतिशत के आसपास था.
अमित शाह मंझे हुए नेता हैं और वे कांग्रेस के द्वारा फिर से तैयार किये जा रहे समीकरण के मुद्दे को जनता के बीच मजबूती से लेकर जा सकते हैं और यह बताने की कोशिश कर सकते हैं कि कैसे तीन दशक पूर्व कांग्रेस की जातीय राजनीति ने राज्य को अस्थिर कर दिया था. भाजपा पाटीदार नेताओं में फूट डालने में बहुत हद तक सफल रही है. अमित शाह ने गुजरात के गौरव को भी एक बड़ा मुद्दा चुनाव के लिए बनाया है. भाजपा यह बार-बार कहती है कि सरदार पटेल को कांग्रेस में नेहरू-गांधी परिवार के कारण उपेक्षित रखा गया था. पटेल गुजरात से आते थे और वे गुजरात के लिए एक गौरव की तरह हैं. राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी जिस प्रभावशाली ढंग से स्थापित हुए हैं, वैसे में उन्हें भी पार्टी गुजरात के गौरव के रूप में इंगित करेगी और यह जतायेगी कि अगर भाजपा यहां हारेगी तो राष्ट्रीय स्तर पर इस राज्य के गौरव को ही क्षति होगी, क्योंकि इस राज्य से आने वाले उसके शीर्ष नेता पर लोग सवाल उठायेंगे.
कांग्रेस अध्यक्ष बनने जा रहे राहुल गांधी ने इस बार गुजरात चुनाव के लिए जातीय वर्ग के तीन नेताओं को कांग्रेस से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जोड़ लिया हैं. पटेलों के नेता हार्दिक पटेल, ठाकोर समुदाय व पिछड़ों के नेता अल्पेश ठाकोर एवं दलितों के नेता जिग्नेश मेवाणी हैं जो कांग्रेस के पक्ष में खड़े हैं. राहुल गांधी को लगता है कि ये तीन युवा गुजरात में उन्हें जीत दिलाकर कांग्रेस के फिर से उदय का मार्ग खोल देंगे. कांग्रेस के टिकट बंटवारे में भी इनकी चली है. भाजपा को राहुल गांधी के सभी जाति को साधने की कोशिशों में हितों के टकराव के कारण फूट पड़ने की उम्मीद है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी का जातीय समीकरण चुनाव में काम आता है या फिर अमित शाह का विकास व जातिवाद के खिलाफ नारा.
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