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Medical centres की मदद से डॉक्टर करते थे कालेधन को जमा करने का गोरखधंधा, इनकम टैक्स ने किया पर्दाफाश

बेंगलुरु : आयकर विभाग के अधिकारियों ने शनिवार को यहां कुछ आईवीएफ क्लीनिकों और डायग्नॉस्टिक सेंटरों में तलाशी के बाद मेडिकल सेंटरों और डॉक्टरों के बीच एक बड़े बहुस्तरीय गठजोड़ का पर्दाफाश किया है और 100 करोड़ रुपये के कथित कालेधन का पर्दाफाश किया. आयकर विभाग ने दावा किया कि मेडिकल जांचों की खातिर मरीजों […]

बेंगलुरु : आयकर विभाग के अधिकारियों ने शनिवार को यहां कुछ आईवीएफ क्लीनिकों और डायग्नॉस्टिक सेंटरों में तलाशी के बाद मेडिकल सेंटरों और डॉक्टरों के बीच एक बड़े बहुस्तरीय गठजोड़ का पर्दाफाश किया है और 100 करोड़ रुपये के कथित कालेधन का पर्दाफाश किया. आयकर विभाग ने दावा किया कि मेडिकल जांचों की खातिर मरीजों को भेजने के लिए डॉक्टरों को पैसे दिये जा रहे थे.

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विभाग ने कहा कि आयकर अधिकारियों ने दो इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) सेंटरों एवं पांच डायग्नॉस्टिक सेंटरों के खिलाफ अपनी तीन दिन की कार्रवाई के दौरान 1.4 करोड़ रुपये नगद और 3.5 किलोग्राम आभूषण एवं सोना-चांदी बरामद किये. उन्होंने विदेशी मुद्रा जब्त की और विदेशी बैंक खातों का पता लगाया जिनमें करोड़ों रुपये जमा थे.

विभाग ने एक बयान में कहा कि जिन लैबों की तलाशी ली गयी, उन्होंने 100 करोड़ रुपये से ज्यादा की ऐसी धनराशि घोषित की है, जिन्हें कहीं दिखाया नहीं गया है, जबकि एक ही लैब के मामले में रेफरल फीस यानी मरीजों को लैब जांच के लिए भेजने की एवज में डॉक्टरों को दी जाने वाली रकम 200 करोड़ रुपये से ज्यादा है.

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि डायग्नॉस्टिक सेंटरों में तलाशी से ऐसे विभिन्न तौर-तरीकों का पता चला, जिससे डॉक्टरों को मेडिकल जांचों के लिए मरीजों को भेजने की एवज में पैसे दिये जा रहे थे.

बयान के मुताबिक, कमीशन लैब दर लैब बदलता है, लेकिन डॉक्टरों के लिए सामान्य हिस्सा कमीशन की मध्यम रेंज एमआरआई के मामलों में 35 फीसदी और सीटी स्कैन एवं लैब जांचों के मामले में 20 फीसदी है. पाया गया कि इन भुगतानों को विपणन खर्चों के तौर पर पेश किया जाता है.

विभाग ने कहा कि डॉक्टरों को रेफरल फीस का कम से कम चार तरीकों से भुगतान किया जाता था. इसमें हर पखवाड़े नगद भुगतान और अग्रिम नगद भुगतान भी शामिल था. कुछ मामलों में डॉक्टरों को चेक के जरिये भुगतान की जाने वाली रेफरल फीस को खाता-पुस्तिकाओं में पेशेवर फीस लिखा जाता था.

बयान के मुताबिक, एक करार के अनुसार डॉक्टरों को आंतरिक परामर्शदाता के तौर पर नियुक्त किया गया था. हालांकि, न तो वे डायग्नॉस्टिक सेंटर आते थे, न मरीजों को देखते थे और न ही रिपोर्ट लिखते थे. इस भुगतान को रेफरल फीस के तौर पर अंकित किया जाता था.

विभाग ने दावा किया कि राजस्व साझेदारी समझौतौ के तहत डॉक्टरों को चेक के जरिए रेफरल फीस का भुगतान किया जाता था. कुछ लैबों ने कमीशन एजेंट नियुक्त कर रखे थे, जिनका काम लिफाफों में डॉक्टरों को पैसे वितरित करना था.

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