नयी दिल्ली : सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने बुधवार को कहा कि सैन्य बलों का राजनीतिकरण हुआ है, लेकिन सेना को किसी न किसी तरह राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए. सेना प्रमुख ने यह भी कहा कि अच्छे पुराने दिनों में नियम ये थे कि सैन्य बलों में महिला और राजनीति को लेकर कभी चर्चा नहीं होती थी. बहरहाल, ये विषय धीरे-धीरे विमर्श में आते चले गये और इससे परहेज किया जाना चाहिए.
जनरल रावत ने कहा, सेना को राजनीति से किसी न किसी तरह दूर रखा जाना चाहिए. हाल फिलहाल हम यह देखते रहे हैं कि सेना का राजनीतिरण होता रहा है. मेरा मानना है कि हम बहुत ही धर्मनिरपेक्ष माहौल में काम करते हैं. हमारे यहां बहुत जीवंत लोकतंत्र है जहां सेना को राजनीतिक व्यवस्था से दूर रहना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह जरूरी है कि जीवंत लोकतंत्र के लिए सेना राजनीति से दूर रहे. वह यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूट की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे. रावत ने कहा, जब कभी किसी सैन्य प्रतिष्ठान या सैन्य कर्मी से जुड़े मुद्दे में राजनीतिक तत्व आ जाये, तो बेहतर है कि इसकी उपेक्षा की जाये. सेना प्रमुख ने बयान के बारे में विस्तार से कुछ कहने से इनकार कर दिया.
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि रक्षा बल सबसे अच्छा काम तब करते हैं जब वे देश के राजनीतिक मामलों में नहीं पड़ते. इस साल अक्तूबर में मुंबई के एल्फिंस्टन रेलवे स्टेशन पर भगदड़ की घटना के बाद में सेना से फुट ओवरब्रिज के निर्माण के लिए कहे जाने की आलोचना के बारे में रावत ने कहा कि नागरिकों की सहायता का चार्टर है जिसके तहत सैन्य बल बाढ़ और भूकंप जैसे संकटों के समय मदद के लिए आते हैं. उन्होंने कहा कि नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा ने शैक्षणिक सहयोग की सीमा तय किये जाने का मुद्दा रक्षा मंत्रालय के समक्ष उठाया है. दरअसल, रक्षा मंत्रालय ने शहीदों या विकलांग हो गये सैन्यकर्मियों के बच्चों को शैक्षणिक मदद की सीमा 10 हजार रुपये प्रति माह तय करने का फैसला किया.
रावत ने कहा कि इस मुद्दे पर गलतफहमी रही है और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने भरोसा दिया कि समस्या का समाधान करना एक प्राथमिकता है. सेना प्रमुख ने यह भी कहा कि आतंकवादी समूहों ने युवाओं के बीच कट्टरपंथ पैदा किया है और इस मुद्दे का समाधान किया जा रहा है.