मनाेज कुमार सिन्हा
गुजरात विधानसभा के चुनाव में राज्य के सबसे बड़े शहर अहमदाबाद क्षेत्र पर पूरे देश की नजर है़ इसका कारण यह है किइस शहर में विधानसभा की दो हाइप्रोफाइल सीटें हैं,जो इस चुनाव से पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपाअध्यक्ष अमित शाह की सीट थी.अहमदाबादमेंकुल 16 विधानसभा सीटों हैं, इनमेंमणिनगरसीट का पिछली विधानसभा चुनाव तक नरेंद्र मोदी प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. दूसरी सीट नारणपुरा, जिसका प्रतिनिधित्व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पिछली बार कर चुके हैं. अहमदाबाद की 16 विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं की कुल संख्या करीब 39 लाख है. 1990 के दशक से इस क्षेत्र को भाजपा का गढ़ माना जाता है. पिछले चुनाव में भाजपा ने यहां 16 में 14 सीटें जीत ली थी.पर,इस बार चुनाव में दोनों हाइप्रोफाइल सीटोंसहितशहर की अन्य सीटों पर कड़ी चुनावी टक्कर मानी जा रही है. इसका कारण है शहर की कई सीटों पर पाटीदारों की बहुलता. पाटीदारों का वोट अबतक भाजपा को मिलता रहेगा, लेकिन इस बार हार्दिक पटेल फैक्टर क्या असर दिखायेगा यह सिर्फ चुनाव परिणाम ही बता सकता है. कांग्रेसहार्दिक पटेल का साथ पाकरउत्साहित है औरउसेलग रहा है कि वह दो दशक बाद भाजपा को मजबूतटक्कर देने कीस्थितिमें आ गयी है.ऐसे में यह सवाल मौजूं है कि इन दोनों सीटों से विजयश्री का ताज किसे मिलेगा?
वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में मोदी मैजिक में अहमदाबादमें भाजपा नेकुल 14 विधानसभा क्षेत्रों में जीत दर्ज की थी. जिन सीटों पर भाजपा ने जीत का परचम लहराया था, उनमें घटलोडिया, जमालपुर-खाड़िया, वेजलपुर, वाटवा, एलिसब्रिज, नारणपुरा, निकोल और नरोदा जैसी सीट शामिल हैं. लेकिन, इस बार के चुनाव में इस क्षेत्र में भाजपा को कांग्रेस और उसकी सहयोगियों से कड़ी टक्कर मिल रही है. कांग्रेस को इस क्षेत्र में 2012 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ दो सीटों साबरमती और असरवा (एससी) पर जीत मिल सकी थी. गुजरात के अन्य शहरों की तरह ही इस शहरी इलाके के लोग भाजपा का समर्थन 90 दशक की शुरुआत से ही कर रहे हैं. कम से कम यहां की पांच सीटों घटलोदिया, निकोल, मणिनगर, साबरमती और ठक्करबापा नगर में पाटीदार समुदाय बड़ी संख्या में हैं. यहां की चार सीटों जमालपुर-खाड़िया, दरियापुर, दनीलीमादा और वेजलपुर सीटें मुस्लिम बहुल हैं.
पीएम मोदी की सीट रही मणिनगर पर टक्कर दे रही हैं कांग्रेस की श्वेता ब्रह्मभट्ट
बात मणिनगर विधानसभा की करें, तो इसका प्रतिनिधित्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्कालीन विधायक और मुख्यमंत्री के रूप में साल 2002 से 2014 तक किया है. इस सीट को शहर की सबसेहाइप्रोफाइल सीट और भाजपा का गढ़ माना जाता है. साल 2012 में यहां प्रधानमंत्री मोदी को 86,000 मतों से जीत मिली थी. साल 2014 के आम चुनाव में भाजपा को मिली प्रचंड जीत के बाद प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने इस सीट से इस्तीफा दे दिया. उनके इस्तीफा देने के बाद भाजपा ने इस सीट पर हुए उपचुनाव में सुरेश पटेल को उम्मीदवार बनाया. भाजपा उम्मीदवार सुरेश पटेल ने यहां 52,000 पाटीदारों का वोट पाकर 49,000 मतों से जीत हासिल की थी. इस सीट से भाजपानेफिर सुरेश पटेल को उम्मीदवार बनाया है और उनका मुकाबला कांग्रेस की युवा चेहरे श्वेता ब्रह्मभट्ट से है. श्वेता आइआइएम से पढ़ी हुई हैं. पटेल उम्मीदवार होने के कारण भाजपा को यह उम्मीद है कि वह पाटीदारों की नाराजगी को यहां मैनेज कर लेगी और अपने शीर्ष नेता के इस पुराने गढ़ में फिर भगवा झंडा लहरायेगा.
जानिये कौन हैं श्वेता ब्रह्मभट्ट?
मणिनगर से कांग्रेस उम्मीदवार श्वेताब्रह्मभट्ट ने लंदन में वेस्टमिंस्टर यूनिवर्सिटी से वर्ष 2005 में इंटरनेशनल फाइनेंस की पढ़ाई की थी. भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों में वह निवेश बैंकर के रूप में काम कर चुकी हैं. वर्ष 2012 में उन्होंने आइआइएम बेंगलुरु से इंडिया-वुमन इन लीडरशिप का कोर्स किया. वह मानती हैं कि सिस्टम बदलने की खातिर सिस्टम का हिस्सा बनना जरूरी है. दूसरी ओर 57 वर्षीय सुरेश पटेल पार्टी के गढ़ में जीत को लेकर आत्मविश्वास से भरे हैं.
ट्रेनिंग लेकर चुनाव लड़ने वाली पहली नेता हैं श्वेता
इस विधानसभा चुनाव में 34 वर्षीया श्वेता संभवत: इकलौती ऐसी उम्मीदवार हैं, जिन्होंने राजनेता बनने का प्रशिक्षण लिया है और वह भी प्रतिष्ठित भारतीय प्रबंधन संस्थान (आइआइएम) से. उनके पिता नरेंद्र ब्रह्मभट्ट शहर के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता हैं. फिर भी श्वेता के चयन से कई लोग हैरान हैं. श्वेता को उम्मीद है कि अपने विचारों और दृढ़ संकल्प के बल पर वह मतदाताओं के दिल जीत लेंगी. लेकिन, मणिनगर में भाजपा के उम्मीदवार को पछाड़ना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि यहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का राज्य मुख्यालय भी है. वर्ष 1990केदशक से इसे भाजपा का ऐसा गढ़ माना जाता है, जिसमें सेंध लगाना लगभग असंभव है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए वर्ष 2002, 2007 और 2012 में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था. इससे पहले वर्ष 1990 से 1998 तक भाजपा नेता कमलेश पटेल इस सीट पर काबिज थे. वर्ष 2012 में मोदी ने अपनी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेसी उम्मीदवार श्वेता भट्ट को 86,000 मतों के अंतर से हराया था. वह आइपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की पत्नी हैं, जो मोदी के नेतृत्ववाली राज्य सरकार के कट्टर आलोचक थे.
नारणपुरा सीट पर पाटीदार मतदाता तय करेंगे चुनावी हवा का रुख
अहमदाबादशहर कीदूसरीहाइप्रोफाइल सीट नारणपुरा जीतना भाजपा के लिए इसलिए प्रतिष्ठा कीलड़ाई है, क्योंकि यहां से उसके अध्यक्ष अमित शाह चुनाव लड़ते रहे हैं. यहां करीब 40,000 पाटीदार मतदाता हैं. अमित शाह ने राज्यसभाकेलिए चुने जाने के बादइससाल अगस्त में इस सीट से इस्तीफा दे दिया. भारतीय जनता पार्टी ने यहां से पूर्व मंत्री कौशिक पटेल को टिकट दिया है. ऐसा माना जाता है कि पटेल अमित शाह के करीबी हैं. यानी यहां भी भाजपा के पास पाटीदार चेहरा है. पाटीदार समुदाय पिछले दो दशक से भाजपा का कट्टर समर्थक माने जाते रहे हैं,लेकिनहार्दिक पटेल के विरोध के कारण युवापाटीदारक्या करेंगे यह कहना मुश्किल है. ध्यान रहेकिअहमदाबादशहरमें पाटीदारों का व्यापक आंदोलन हुआ था. आरक्षण की मांग को लेकर पटेल समुदाय के आंदोलन और भाजपा को इस बार सत्ता से बाहर करने की हार्दिक पटेल की अपील के बाद चुनावी समीकरण बदले हैं.
अमित शाह के पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उनकी जिम्मेदारी काफी बढ़ गयीं. लिहाजा, पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजक उनके करीबी कौशिक पटेल को चुनाव मैदान में उतारा है. लेकिन, इस सीट पर भाजपा के पटेल का मुकाबला भी कांग्रेस के एक पटेल से है. कांग्रेस ने यहां से नितिन के पटेल को मैदान में उतारा है.
ध्यान रहे कि अमित शाह पहली बार 1997 में सरखेज विधानसभा सीट से उप चुनाव जीतकर विधायक बने थे. इसके बाद 1998, 2002 और 2007 में भी यहां से विधायक चुने गये थे. 2012 के चुनाव में अमित शाह ने नारणपुरा सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की थी.
अपने ही गढ़ में कर्इ चुनौतियों का सामना कर रही है भाजपा
इस बार के चुनाव में भाजपा को अपने इस गढ़ में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. इसमें सबसे अहम पटेल आरक्षण का मुद्दा है. पटेल समुदाय के लोग राज्य में ओबीसी का दर्जा चाहते हैं. यह समुदाय लंबे समय से इसके लिए आंदोलन कर रहा है. दूसरी ओर, दलित समुदाय पर हमले का मुद्दा भी भाजपा के लिए काफी समस्याएं पैदा कर सकता है. तीसरे भाजपा गुजरात में लगातार 22 साल से सत्ता में है. यहां के लोगों को सरकार से काफी अपेक्षाएं भी हैं, जो उसके लिए परेशानी का सबब बन सकता है. प्रधानमंत्री मोदी के दिल्ली जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी राज्य स्तर पर एक ताकतवर नेता की कमी से भी जूझ रही है.