वतनपरस्त मौलाना मदनी

इन दिनों कई मौकों पर भारतीय जनता पार्टी के पीएम प्रत्याशी नरेंद्र मोदी की कई मान्यताओं के प्रति अपनी सहमति जाहिर करने वाले मौलाना मदनी के बारे में आम लोगों के पास बहुत कम जानकारियां है. सामान्यत: मदनी को लोग इस्लामिक फतवा जारी करने वाले दूसरे मौलानाओं की तरह देखते हैं, जबकि वे एक ऐसे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 27, 2014 9:13 AM

इन दिनों कई मौकों पर भारतीय जनता पार्टी के पीएम प्रत्याशी नरेंद्र मोदी की कई मान्यताओं के प्रति अपनी सहमति जाहिर करने वाले मौलाना मदनी के बारे में आम लोगों के पास बहुत कम जानकारियां है. सामान्यत: मदनी को लोग इस्लामिक फतवा जारी करने वाले दूसरे मौलानाओं की तरह देखते हैं, जबकि वे एक ऐसे संगठन के प्रमुख हैं जो आजादी के आंदोलन की अगुवाई करता रहा है. यह संगठन मुसलिम समाज में आतंकवाद के प्रसार को रोकने में जुटा है. खुद मदनी का परिचय हमें उनके उस बयान से मिलता है, जब उन्होंने 2009 में इंडिया टुडे कॉनक्लेव में तत्कालीन पाक राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को साफ कह दिया था कि भारतीय मुसलमान अपनी समस्याओं से निपटने में खुद सक्षम हैं.

वतनपरस्ती जमीयत-उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी के खून में शामिल है. उनके दादा ने 1919 में इस संगठन की नींव डाली थी और तब से आजादी के आंदोलन के पूरे दौर में यह संगठन महात्मा गांधी के आंदोलनों से कदम से कदम मिलाकर चलता रहा. चाहे खिलाफत आंदोलन हो, असहयोग हो, सविन् ाय अवज्ञा हो या 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन जमीयत ने हर आंदोलन में गांधी और कांग्रेस का कदम-कदम पर साथ दिया. आजादी के बाद भी इस संस्था ने भारतीय संविधान में आस्था जताते हुए यह तय किया कि इस देश में हिंदुओं और मुसलमानों को साथ मिलकर रहना चाहिए.

जमीयत के इस सिद्धांत का अनुसरण करते हुए 2008 में मदनी ने देश भर में आतंकवाद विरोधी अभियान चलाया था. उन्होंने इसके लिए 40 से अधिक सभाएं की और दिल्ली के रामलीला मैदान में एक बड़ा आयोजन कर लोगों को बताया कि आतंकवाद कैसे हिंदुस्तान की कौमी तहजीब के लिए घातक है. वे मुसलमानों के लिए आरक्षण, सांप्रदायिकता निरोधक कानून और वक्फ की संपत्तियों की सुरक्षा के लिए भी संघर्षरत रहे हैं. इसके अलावा उन्होंने दुनिया को यह बताने के लिए कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, कई सभाएं और सेमिनार आयोजित करवाये. ये संदर्भ बताते हैं कि मौलाना मदनी के लिए कौम के साथ-साथ देश भी उतना ही महत्वपूर्ण रहा है और वे मानते रहे हैं कि भारतीय संविधान यहां के मुसलमानों को सम्मानपूर्वक जीवन जीने की गारंटी देता है, लिहाजा सबसे जरूरी इस संविधान की मान्यताओं की सुरक्षा करना है.

3 मार्च 1964 को दिल्ली में पैदा हुए महमूद का नामांकरण उनके दादा मौलाना महमूद हसन देवबंदी के नाम पर हुआ, जो जमीयत के संस्थापक थे. उनकी प्रारंभिक शिक्षा अमरोहा में हुई और स्नातक की पढ़ाई दारूल उलूम देवबंद से 1992 में पूरी की. देवबंद में फाइनल इयर की पढ़ाई के दौरान बाबरी मसजिद के ढहाये जाने के हादसे ने उनके मन को अंदर तक हिला दिया. उस दौरान हुए दंगों के बाद सड़कों पर उतर कर उन्होंने पीड़ित समुदाय की मदद के लिए अभियान चलाया. यह उनके जीवन का पहला सार्वजनिक अभियान था. उन्होंने बिजनेस को कैरियर बनाने की कोशिश की, मगर वहां उनका मन नहीं लगा और बाद में वे राजनीति में उतर आये.

मौलाना महमूद मदनी

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