दंबग नहीं गुरूजी कहिये

कहते हैं कि राजनीति समाज का ही प्रतिबिंब है. समाज में ताकतवर हैं. बाहुबली हैं. जैसे-तैसे कमाया हुआ पैसा है. ऐसे लोग पहले मैदान से बाहर रहकर राजनीति का खेल खेलते थे. बाद में राजनीतिक दलों ने उन्हें गले लगाना शुरू किया. हर दल में ऐसे बाहुबली बिराजते हैं. कई ऐसे हैं जिन्होंने सामाजिक काम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 27, 2014 9:26 AM

कहते हैं कि राजनीति समाज का ही प्रतिबिंब है. समाज में ताकतवर हैं. बाहुबली हैं. जैसे-तैसे कमाया हुआ पैसा है. ऐसे लोग पहले मैदान से बाहर रहकर राजनीति का खेल खेलते थे. बाद में राजनीतिक दलों ने उन्हें गले लगाना शुरू किया. हर दल में ऐसे बाहुबली बिराजते हैं. कई ऐसे हैं जिन्होंने सामाजिक काम के नाम पर स्कूल-कॉलेज खोले तो कई ने डॉक्टरों की फीस या बसों में छात्रों के लिए टिकट के दाम कम करा दिये. ऐसे बाहुबली और उनकी सेवाओं के कई किस्से हैं. हिंदी पट्टी के राज्यों में सामाजिक स्तर कायम जड़ता इन बाहुबलियों के लिए उपजाऊ जमीन की तरह है. कैसे यह समाज दवा और शिक्षा के बदले जाति के मोह से बाहर नहीं निकल पा रहा है. स्क्रॉल डॉट इन के लिये सुप्रिया शर्मा ने इन्हीं मसलों पर तीन रिपोर्ट्स पेश की हैं. हम इन्हें साभार अपनी कवर स्टोरी में यहां प्रस्तुत कर रहे हैं.

लोगों के बीच रोने से परहेज नहीं यहां के बाहुबलियों को
लोकलाज न रहे तो राजनीति कैसी? कहते हैं कि इसी लोकलाज के बल पर राजनीति चलती है. पर जब इसका विलोप हुआ तो राजनीतिज्ञों ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को धूल चटाने के लिए गुंडा-बदमाशों और लठैतों की मदद लेनी शुरू की. हिंदी पट्टी में सत्तर और अस्सी के दशक की राजनीति का यह जाना पहचाना चेहरा बन गया. बाद में ऐसे लोग खुद राजनीति में दखल देने लगे. उनके पास हरवे-हथियार थे, पैसा था और साथ में थी उनकी छवि. राजनीति में आने के बाद इन बाहुबलियों ने समाज के लिए काम करना शुरू किया. जैसे, स्कूल-कॉलेज खोलना, अपने इलाके में बिजली की अबाध आपूर्ति सुनिश्चित कराना, डॉक्टरों की फीस कम कराना वगैरह. तब राजनीति का चेहरा और उसकी छवि कै सी होती है? इसी पर आधारित है इस बार की कवर स्टोरी

सुप्रिया शर्मा

लोगों के बीच रोने की अपनी कहानी सुनाने से पहले वह दिल खोल कर हंसते हैं. इसके बाद कहते हैं, मैंने कहा, मैंने नहीं सोचा था कि इतने लोग आएंगे. मैंने आप लोगों के लिए कोई काम नहीं किया है. मेरे पिता और दादा ने आपकी सेवा की है, इसलिए आपलोग मुङो देखने आएं हैं. मैं इसके लिए आपका आभारी हूं. मैं गोंडा में रहता हूं लेकिन आपके गांव में नहीं आता हूं. फिर भी आपलोग मुङो देखने आए हैं. इतना कहने के बाद मैं रोने लगा. मुङो रोता देख वहां आए लोग भी रोने लगे. इतना कहते ही जोर से ठहाका लगाने लगे. फिर थोड़ा शांत होकर कहते हैं, हम अपना काम बना लेते हैं. ये 47 वर्षीय विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित हैं, गोंडा से समाजवादी पार्टी के विधायक हैं और उत्तर प्रदेश के सेकेंडरी एजुकेशन मंत्री हैं.

पिछले हफ्ते मैं उनसे उनके घर गोंडा में मिली थी. उनसे मिलने जाने के लिए मैं उनके समर्थकों से भरे आंगन को पार कर लिविंग रूम में पहुंची जहां बढ़िया गद्देदार चमड़े का सोफा था.

सिंह एकाएक 2012 में सुर्खियों में आए थे. उस समय उनपर चीफ मेडिकल आफिसर को मारने और अगवा करने का आरोप लगा था. इस वजह से उन्हें अखिलेश मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था. कुछ महीने बाद ही उन्हें मंत्रिमंडल में वापस ले लिया गया था. इस समय समाजवादी पार्टी ने उन्हें कैसरगंज से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया है. सिंह दावा करते हैं कि उस केस में मुङो विरोधियों के साथ मिलकर अधिकारियों ने फंसा दिया था. कहते हैं, मैने हेल्थ मिशन के तहत हो रही बहाली के लिए कुछ स्थानीय लड़कों के नाम की सिफारिश की थी. जब लिस्ट निकला तो उसमें उनके नाम नहीं थे. मैं सीएमओ के घर गया. वह पुरानी लिस्ट को फाड़ने और नया लिस्ट बनाने को तैयार हो गये. लेकिन कुछ अधिकारियों ने मेरे खिलाफ साजिश की और उन्हें लखनऊ बुलाकर गायब कर दिया और मेरे खिलाफ अपहरण का झूठा आरोप लगा दिया. उन्होंने कहा, मैने डांटा था, गाली दी थी, लेकिन मारा नहीं था. इस पर उनका एक समर्थक कहता है, सही है, गाली दिए थे कि काटेंगे तुमको.

दाऊद के लोगों से नाता

आपकी छवि बाहुबली की है. इस पर आपको कुछ कहना है. केसरगंज से भाजपा के उम्मीदवार ब्रजभूषण शरण सिंह से मैंने पूछा. बड़े ही करीने से धोती-कुर्ता पहने 57 साल के ब्रजभूषण नपे-तुले शब्दों का प्रयोग करते हुए कहते हैं, मैं इसपर कुछ नहीं बोलूगा. मैं सिर्फ इतना ही कहूंगा कि किसी गरीब को, किसी शरीफ को तंग नहीं किया है. और जो अतातायी है, उसके खिलाफ संघर्ष से मैंने कदम कभी पीछे नहीं हटाए. ब्रजभूषण चार बार सांसद रहे हैं. उनके पास पंडित सिंह से ज्यादा राजनीतिक अनुभव है और गंभीर आपराधिक आरोप भी. जैसे दंगा फैलाना, हथियार ले जाना और हत्या. 90 के दशक में दाऊद इब्राहिम के लोगों को अश्रय देने के आरोप में वह कई महीने तिहाड़ जेल भी रहे. एक पूर्व भाजपा सांसद इस मामले में आरोपित हो गए थे जबकि ब्रजभूषण सबूतों के अभाव में बरी हो गए थे.

2008 में वह सबसे अधिक चर्चा में आए थे जब उन्होंने अपनी पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर संप्रग सरकार के समर्थन में वोट दिया था. इसके बाद भाजपा ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया लेकिन समाजवादी पार्टी ने उन्हें अपने यहां जगह दी. 2009 में सपा की टिकट पर केसरगंज से वह जीत गए. 2014 में वह फिर भाजपा की टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं.

मैंने उनसे पूछा कि इस तरह पार्टी बदलने पर आप क्या कहेंगे? देखिए, 1989 में रामजन्मभूमि आंदोलन शुरू हुआ था. मैं इलाके में पहला व्यक्ति था जिसे मुलायम सिंह ने गिरफ्तार किया था. 1993 में विवादित ढांचे को ढहाया गया. मैं पहला व्यक्ति था जिसे सीबीआइ ने गिरफ्तार किया. 1991 में मैं भाजपा की टिकट पर गोंडा से जीता था. 1996 में मैं जेल में था. मेरे स्थान पर मेरी श्रीमती ने चुनाव लड़ा और वह जीत गयीं. 1999 में मैं फिर जीता. 2004 में मैं बलरामपुर चला गया और वहां से फिर जीत गया. लेकिन 2009 में मैं मुलायम सिंह के साथ आ गया.

कुछ देर रुकने के बाद कहते हैं, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता, कुछ रुसवाइयां भी रही होंगी. भाजपा से उनके रुसवा होने की कहानी घनश्याम शुक्ला के मौत के इर्द गिर्द घूमती है. घनश्याम शुक्ला को 2004 में पार्टी ने ब्रजभूषण की जगह गोंडा से टिकट दिया था. चुनाव के दिन ही एक सड़क दुर्घटना में शुक्ला की मौत हो गयी. मेरे विरोधियों ने यह अफवाह फैला दी कि यह दुर्घटना नहीं, हत्या है. अटलजी ने बुलवाया और कहा, मरवा दिया? उसी दिन से भाजपा के साथ मेरे मतभेद शुरू हो गए.

हमारे नेता हैं, भोले बाबा

मैंने पंडित सिंह से पूछा, समाजवादी पार्टी ने ब्रजभूषण शरण को क्यों स्वीकार किया?

उन्होंने कहा, हमारे नेता भोले बाबा संत जी हैं. जो पांव शाव पकड़ा, उसे ले लिया.

मैने कहा, ब्रजभूषण मजबूत नेता हैं, इसलिए मुलायम सिंह ने उन्हें अपनी पार्टी में लिया है? माफिया सरगना है. मजबूत है ही. उसने मुङो भी गोली मारी है. इसके बाद सोफा पर झुकते हुए बांह पर के निशान दिखाते हैं. फिर कहते हैं, एक नहीं 20 बुलेट लगी थी. 14 माह तक मैं अस्पताल में था. यह बात 1993 की है. इसके पहले फिल्मी कहानी की तरह दोनों जुर्म की दुनिया में दोस्त थे, साझीदार थे. गोंडा के एक वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि 80 के दशक में मोटरसाइकिल छीनने से लेकर अवैध शराब के धंधे तक में उनका हाथ रहा है. मंदिर के तालाब में फेंके जाने वाले सिक्कों को भी वे लड़कों से निकलवाया करते थे. जिले में आयी बाढ़ ने उनके लिए असीम संभावनाओं के द्वार खोल दिये. दोनों ठेकेदार बन गए. एक बार पैसे को लेकर हुए विवाद में दोनों के बीच गोलीबारी भी हुई थी. इस संबंध में ब्रजभूषण शरण से पूछने पर वह कहते हैं, उस समय मैं दिल्ली में था, फिर भी उसने मेरा नाम डाल दिया.

चार बार सांसद रहे ब्रजभूषण शरण कहते हैं, मेरे खिलाफ सारे मुकदमें राजनीति से प्रेरित हैं. यह सब तभी से शुरू हुआ जब मैं इंटर कॉलेज में था. उस समय स्थानीय राजा का यहां की राजनीति पर एकक्षत्र राज था. उनकी इजाजद के बिना कोई चुनाव नहीं लड़ सकता था. मैंने उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत दिखाई और इस तरह गोंडा में मैंने लोकतंत्र की स्थापना की. इसी दौरान सारे केस मेरे ऊपर हुए.

छात्रों के गुरुजी हैं ये नेता
पूर्वी उत्तर प्रदेश का कुछ हिस्सा हमेशा सुखाड़ की चपेट में रहता है. गोंडा में कुछ पुरानी चीनी मिलों को छोड़ दें तो उद्योग-कारोबार के नाम पर कुछ नहीं है. सिर्फ कुछ बड़े भूपति हैं. फिर भी बड़ी गाड़ियों के शोरूम और होटलों की कमी नहीं है जिसके मालिक नेता हैं.

जेपी पैलेस होटल में, जिसकी लॉबी को झाड़-फानुस और मुगल प्रिंट से सजाया गया है, रिसेप्शन पर बैठे 23 साल के लड़के ने बताया कि उसने स्कूल के बाद ही गोंडा छोड़ दिया क्योंकि उस जिले के कॉलेज से मिली डिग्री का कोई वैल्यू नहीं है. वह गै्रजुएशन करने के लिए लखनऊ आ गया.

स्थानीय सांसद और विधायक दोनों कॉलेज चलाते हैं जिसकी खासियत चोरी की बदौतल छात्रों को पास कराना है. इसने गोंडा के इमेज को खराब कर दिया है.

मैंने पूछा, छात्र वैसे कॉलेजों में नामांकन ही क्यों कराते हैं? लड़के ने जवाब दिया,

क्योंकि सभी चाहते हैं कि इतने नंबर आ जाएं कि सरकारी नौकरियों के लिए अप्लाइ करने में सुविधा हो.

इस संबंध में लाल बहादुर शास्त्री कॉलेज के सचिव कहते हैं, आसानी से डिग्री लेने का इतना क्रेज है कि 50 साल पुराने इस कॉलेज में करीब 6000 हजार छात्र हैं जहां शिक्षकों का वेतन 1.5 लाख रुपए महीना है. वहीं ब्रजभूषण के कॉलेज नंदिनी नगर महाविद्यालय में जहां शिक्षकों को पांच हजार रुपए तनख्वाह मिलती है, छात्रों की संख्या तीस हजार से अधिक है.

कॉलेजों के बनाने के पीछे की राजनीति बताते हैं पंडित ठाकुर. उनके मुताबिक, एक कॉलेज में 100-200 स्टाफ होते हैं. वो आप से तनख्वाह लेते हैं इसलिए आपके प्रति वो वफादार होंगे. चुनाव के समय सिर्फ उनका पूरा परिवार ही आपको वोट नहीं देगा बल्कि आपके लिए वे लोग प्रचार भी करेंगे.

गांवों में मैंने ब्रजभूषण सिंह के नाम पर चलने वाले कई कॉलेजों को देखा. दुकानों की कतार में भी एक कॉलेज था. उसमें कोई छात्र नही था. पूछने पर मुङो बताया गया कि सिर्फ परीक्षा के समय ही बच्चे क्लास करने आते हैं.

जब मैने ब्रजभूषण से उनके कॉलेजों के बारे में पूछा, तब उन्होंने बड़े गर्व के साथ बताया, मैंने 48 शिक्षण संस्थान खोले हैं. लेकिन उनकी गुणवत्ता बहुत खराब है और परीक्षा में चोरी आम बात हो गई है, मैने कहा.

जवाब में उन्होंने कहा, यह मुलायम सिंह का राज्य को तोहफा है. जिस दिन वो सत्ता में आए और भाजपा सरकार की चोरी के खिलाफ वाले आदेश को पलट दिया, उसी दिन यूपी से शिक्षा ने पलायन कर लिया. आज सिर्फ 15 फीसदी छात्र ही पढ़ते हैं बाकी चोरी करते हैं. अपने कॉलेजों के माध्यम से बनाई गई राजनीतिक संपत्ति के बारे में क्या कहेंगे, मैने पूछा. जवाब में वो कहते हैं, किसी राजनीतिक फायदे के लिए मैंने उनको नहीं शुरू किया. लेकिन हां, आज लड़के मेरे इर्द-गिर्द घूमते हैं. कुछ लोग मुङो माफिया कह सकते हैं लेकिन मेरे छात्र मुङो आदर्श मानते हैं. जिसको माफिया मानना है माने. मैं ब्राह्मणों का पांव छूता था. आज कई ब्राह्मण लड़के मेरा पांव छूते हैं और गुरुजी कहते हैं.

उन्होंने ब्राह्मणों का हवाला अचानक ही नहीं दिया. इस समय ब्रजभूषण को सबसे बड़ा राजनीतिक खतरा ब्राह्मणों से ही है. वे और पंडित सिंह दोनों ठाकुर हैं. दोनों के बीच कैसरगंज का ठाकुर वोट बंटेगा. वैसे तो भाजपा को शुरू से ब्राह्मणों का वोट मिलता रहा है लेकिन इसबार ब्राह्मण पार्टी से गुस्से में हैं. और इस पर कैसरगंज से बसपा उम्मीदवार केके ओझा हैं जो ब्राह्मण हैं.

एमएलए फंड से कॉलेज को दिये 25 लाख
ब्रजभूषण शरण के दोस्त से दुश्मन बने पंडित भी कॉलेज खोलने में पीछे नहीं हैं. उन्होंने जिले में 12 कॉलेज खोले हैं. पंडित बताते हैं, मैंने अपने एमएलए फंड से ब्रजभूषण के कॉलेज को 25 लाख रुपए दिया. उन्होंने ने भी अपने एमपी फंड से मेरे कॉलेज को दिए.

दोनों के बीच पैसों की अदला बदली क्या गुप्त समझौते की ओर इशारा नहीं करती है, मैने पूछा. पंडित हंसते हुए कहते हैं, अगर मैं 1993 गोलीकांड में उनके खिलाफ गवाही देने के लिए तैयार हो जाऊं तो उन्हें तुरंत जेल हो सकती है. लेकिन मैने ऐसा नहीं किया क्योंकि मैं उन्हें जिंदा रखना चाहता हूं. मजबूत आदमी से कुश्ती लड़ने में मजा आता है. आप चौकन्ने रहते हैं, गलतियां नहीं करते हैं.

जवानी के दिनों में ब्रजभूषण नामी पहलवान रहे हैं. आज वह भारतीय रेसलिंग फेडरेशन के प्रमुख हैं. पंडित कहते हैं, ब्रजभूषण से हल्का नहीं हूं. मैं हर चीज में उनको टक्कर दे सकता हूं, मारपीट में भी.

दोनों बाहुबलियों के बीच पब्लिक में रोने की भी प्रतियोगिता है. लोगों के बीच पंडित के रोने के बाद एक सभा में ब्रजभूषण की आंखें भी गिली हो गईं थीं. इस बाबत पूछने पर ब्रजभूषण ने बताया, मै रोता नहीं, मैं सिर्फ भावुक हो गया था. यह उन लोगों के साथ होता है जिनका हृदय मुलायम होता है.

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