नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने गुरुवारको निर्देश दिया कि विधि निर्माताओं के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए गठित होनेवाली 12 विशेष अदालतों को अगले साल एक मार्च से काम शुरू कर देना चाहिए. न्यायालय ने केंद्र से कहा कि इन अदालतों के गठन के लिए संबंधित राज्यों को तत्काल 7.80 करोड़ रुपये में से आनुपातिक आधार पर धन आवंटित किया जाये.
शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र द्वारा धन आवंटन के तुरंत बाद संबंधित राज्य सरकाों को उच्च न्यायालयों से परामर्श करके विशेष अदालतें गठित करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ये एक मार्च से काम करना शुरू कर दें. न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने केंद्र को सांसदों और विधायकों की संलिप्ततावाले लंबित आपराधिक मामलों का विवरण एकत्र करने के लिए दो महीने का समय प्रदान किया. पीठ ने टिप्पणी की कि उसके द्वारा मांगी गयी जानकारी तत्काल उपलब्ध नहीं थी.
न्यायालय ने इस मामले में केंद्र के अतिरिक्त हलफनामे का अवलोकन किया जिसमें सरकार ने नेताओं की संलिप्ततावाले मामलों के लिए इस समय 12 विशेष अदालतें गठित करने का प्रस्ताव किया है. हलफनामे में यह भी कहा गया है कि इसके लिए 7.8 करोड़ रुपये आवटित किये जायेंगे. पीठ ने कहा, मामले पर विचार के बाद, हम केंद्र सरकार को निर्देश देते हैं कि आनुपातिक आधार पर 7.80 करोड़ रुपये की राशि उन राज्यों को आवंटित की जायें जहां विशेष अदालतें स्थापित करने का प्रस्ताव है. यह काम तुरंत करना चाहिए.
पीठ ने कहा, इस तरह का आवंटन होने और संबंधित राज्य सरकारों को सूचित किये जाने के तुरंत बाद, राज्य सरकारें उच्च न्यायालयों से परामर्श करके त्वरित अदालतें गठित करेंगी और यह सुनिश्चित करेंगी कि ये अदालतें एक मार्च 2018 से काम करना शुरू कर दें. शीर्ष अदालत ने कहा कि दोषी नेताओं पर चुनाव लड़ने के लिए उम्र भर का प्रतिबंध लगाने के मुख्य मुद्दे पर मार्च के महीने में सुनवाई की जायेगी. याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने जब यह दलील दी कि केंद्र को और अधिक विशेष अदालतें गठित करनी चाहिए तो पीठ ने टिप्पणी की कि पहले 12 ही रहने दें जिनके गठन का उन्होंने प्रस्ताव किया है. इसे अवरुद्ध मत कीजिये. यह अंत नहीं है.
पीठ ने कहा, गलती निकालना बहुत आसान है. ऐसा करना सबसे सरल है. पहले इन अदालतों को शुरू होने दीजिये. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि संबंधित उच्च न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्रों के अंतर्गत मुकदमों के रिकाॅर्ड से विधिनिर्माताओं के खिलाफ लंबित मुकदमों को खोज निकालेंगे और उन्हें विशेष अदालतों को सौंपेंगे. पीठ ने कहा, हम यह भी स्पष्ट करते हैं कि ये निर्देश फिलहाल अस्थायी हैं और ये इन अदालतों में काम शुरू होने के इरादे से दिये गये हैं. जब कभी इन निर्देशो में आवश्यक बदलाव की जरूरत होगी या फिर अतिरिक्त निर्देशों की जरुरत होगी तो उन्हें जारी किया जायेगा.
न्यायालय ने इसके साथ ही इस मामले की सुनवाई सात मार्च के लिए निर्धारित कर दी. सुनवाई के अंतिम क्षणों में पीठ ने कहा, सभी उम्र भर के प्रतिबंध के मुख्य मुद्दे को भूल गये हैं. कोई भी नहीं चाहता कि उस पर सुनवाई हो? इस पर याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि इस मुद्दे पर बहस के लिए वे तैयार हैं. हालांकि, पीठ ने कहा कि इस पर मार्च में सुनवाई की जायेगी. सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल एएनएस नाडकर्णी ने कहा कि उन्होंने सभी राज्य सरकारों और उच्च न्यायालयों को सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मुकदमों की संख्या और स्थिति की जानकारी मुहैया कराने के लिए लिखा है. उन्होंने कहा कि इन आंकड़ों को एकत्र करने में कुछ वक्त लगेगा. उन्होंने इस संबंध मे केंद्र के अतिरिक्त हलफनामे का भी जिक्र किया.
इस मामले में हस्तक्षेपकर्ताओं में से एक के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि वर्तमान सांसदों और विधायकों से कहना चाहिए कि वे अपने खिलाफ लंबित मामलों का विवरण पेश करें. इस पर पीठ ने ऐसा कोई निर्देश देने से इनकार करते हुए सवाल किया, हमें क्यों करना चाहिए? क्या आप यह सुझाव दे रहे हैं कि हमें इसके लिये निर्वाचन आयोग को देश के हजार दो हजार सांसदों और विधायकों को नोटिस जारी करने के लिए कहना चाहिए? पीठ के समक्ष इस दौर में गुजरात और छत्तीसगढ जैसे राज्यों में भी विशेष अदालतें गठित नहीं किये जाने का भी मुद्दा उठा. शीर्ष अदालत ने एक नवंबर को केंद्र को 2014 के आम चुनाव के दौरान नामांकन पत्र के साथ आपराधिक मामलों की घोषणा करनेवाले सांसदों और विधायकों की संलिप्ततावाले 1581 मुकदमों का विवरण पेश करने का निर्देश दिया था.