भारतीय राजनीति की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की कमान अब युवा नवनियुक्त अध्यक्ष राहुल गांधी के हाथों में जाने वाली है, वे कल अपना पदभार संभालेंगे. इससे पहले आज कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि वह राजनीति से रिटायर हो रही हूं. कांग्रेस पार्टी के लिए यह समय बहुत चुनौतियां भरा है. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी लगातार खोती ही जा रही है. भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनाव में अपने बूते 50 सीट भी नहीं जीत पायी और 44 पर पहुंच गयी. राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष तो बन गये हैं, लेकिन आज भी राजनीति में उनका कद बहुत बड़ा नहीं हो पाया है. उनके नेतृत्व में पार्टी अबतक 27 चुनाव हार चुकी है और अगर गुजरात और हिमाचल के परिणाम भी सकारात्मक नहीं हुए तो वे 29 चुनाव हारने वाले हो सकते हैं. ऐसे में सवाल यह है कि आखिर कांग्रेस पार्टी अपनी पुरानी छवि कैसे हासिल करेगी? क्या कांग्रेस का स्वर्णिम युग वापस आ सकता है. अगर कांग्रेस के करिश्माई नेताओं नेहरु, इंदिरा और राजीव को याद करें, तो राहुल के पास उनके जैसा व्यक्तित्व नहीं है. ऐसे में उनके पास जो खजाना है, वह है उनकी मां सोनिया गांधी जिनसे सीखकर वे राजनीति के शिखर पर जा सकते हैं. इस बात से हमसब वाकिफ हैं कि सोनिया गांधी को राजनीति में रुचि नहीं थी और वे राजीव गांधी के भी राजनीति में आने की विरोधी रहीं थीं, लेकिन जब वे राजनीति में आयीं, चाहे बेमन से ही, तो उन्होंने दिग्गज नेताओं को पछाड़ा और एक समय ऐसा भी आया कि कहा जाने लगा कि वह भारत की सबसे ताकतवर नेता हैं. तो ऐसी परिस्थिति में राहुल को सोनिया गांधी ही सफलता का मूलमंत्र बता सकती हैं. कुछ ऐसी बातें हैं, जो राहुल सोनिया से सीख सकते हैं-
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कल राहुल संभालेंगे पार्टी की कमान, अपनी मां सोनिया गांधी से सीख सकते हैं राजनीति के ये गुर…
भारतीय राजनीति की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की कमान अब युवा नवनियुक्त अध्यक्ष राहुल गांधी के हाथों में जाने वाली है, वे कल अपना पदभार संभालेंगे. इससे पहले आज कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि वह राजनीति से रिटायर हो रही हूं. कांग्रेस पार्टी के लिए यह समय बहुत चुनौतियां भरा है. 2014 के […]
परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालना
सोनिया गांधी एक विदेशी महिला हैं. इटली के छोटे से गांव की, परंपरागत रोमन कैथोलिक परिवार की. लेकिन उन्होंने शादी की एक हिंदू ब्राह्मण लड़के से, जिसका परिवार भारत का पहला परिवार माना जाता है. ऐसे में यहां के रीति-रिवाजों के अनुसार सोनिया गांधी ने खुद को जिस प्रकार ढाला और ऐसे रच-बस गयीं कि उन्हें विदेशी कहना एक भूल के समान मालूम होने लगा. चाहे साड़ी पहनने का उनका तरीका हो या ग्रामीण इलाकों में सिर पर पल्ला डालना या हाथों में बांधा गया मंगलसूत. सोनिया ने हर चीज को अपनाया. यहां की भाषा, संस्कृति सब कुछ. राहुल को परिस्थितियों के अनुसार ढलना सीखना होगा. उन्हें सिखना होगा कि परिस्थितियों के अनुसार ढलकर कोई व्यक्ति कैसे शिखर तक पहुंचता है.
निर्णय लेने की क्षमता
सोनिया गांधी में निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता है और वह अपने निर्णयों से पलटती भी नहीं है. यह उनका विशेष गुण है, जो राहुल उनसे सीख सकते हैं. वर्ष 2004 में जब कांग्रेस पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ चुनाव जीतकर सत्ता में आयी थी, तो सब यही सोच रहे थे कि सोनिया गांधी देश की प्रधानमंत्री होंगी, लेकिन उस वक्त सोनिया गांधी ने अपने पैर पीछे खींचे और मनमोहन सिंह को देश का प्रधानमंत्री बनवाया. उस वक्त सोनिया ने अंतरात्मा की आवाज का हवाला दिया था. कारण चाहे जो भी रहा हो, लेकिन इस निर्णय के बाद सोनिया गांधी का कद राजनीति में और बड़ा हो गया और जो लोग यह कह रहे थे कि सोनिया सत्ता की भूखी हैं उनके मुंह बंद हो गये थे.
अपने पत्ते नहीं खोलती हैं सोनिया
सोनिया गांधी एक ऐसी राजनेता हैं, जिनके बारे में यह कहा जाता है कि वे कब क्या निर्णय लेंगी, वह वहीं जानती हैं कोई दूसरा नहीं. उनके बयानों और बॉडीलैंग्वेंज से उन्हें ‘डिकोड’ नहीं किया जा सकता है. यह एक राजनीतिज्ञ का बड़ा गुण होता है कि लोग उसे ‘डिकोड’ ना कर पायें. शायद यही वजह है कि सोनिया गांधी बयानबाजी से बचती हैं.
भरोसे की राजनीति
सोनिया गांधी की एक खास विशेषता यह है कि जब वे किसी पर भरोसा करती हैं, तो पूरी तरह से करती हैं, फिर शक के लिए कोई गुजाइंश नहीं रहती. ऐसे में वह व्यक्ति चाहकर बगावत नहीं करता है. जनार्दन द्विवेदी जैसे नेता इस बात के उदाहरण हैं. 2014 के चुनाव में मोदी की जीत के बाद जब मीडिया में यह खबर आयी कि जनार्दन द्विवेदी ने मोदी की तारीफ करते हुए कह दिया है कि यह भारतीयता की जीत है और मोदी जी ने एक नयी शुरुआत की है, तो अजय माकन ने कहा था कि उनपर कार्रवाई होगी, लेकिन सोनिया गांधी से नजदीकी के कारण उनपर कोई कार्रवाई नहीं हुई.
नेतृत्व क्षमता
सोनिया गांधी एक ऐसी नेता हैं, जिनके नेतृत्व क्षमता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. उनमें एक विशेष गुण है कि वह हर तरह के लोगों को साथ लेकर चलती हैं. उन्होंने दिग्विजय सिंह जैसे बड़बोले नेता को साधा, तो प्रणव मुखर्जी और अर्जुन सिंह का भी पूरा समर्थन पाया. कांग्रेस पार्टी का हर नेता, चाहे वह किसी भी पंक्ति का हो, उसके लिए सोनिया स्वीकार्य थीं. राहुल को यह गुण खुद में विकसित करना होगा, क्योंकि उनके विरोध में स्वर उनकी पार्टी से ही फूटते रहते हैं.
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