एग्जिट पोल और चुनाव नतीजों के बीच राहुल गांधी की ताजपोशी, ये हैं चुनौतियां

राहुल गांधी कल कांग्रेसपार्टी के अध्यक्ष का कार्यभार संभालने जा रहे हैं. गुजरात व हिमाचल चुनाव के एग्जिट पोल से मिल रहे संकेतों के मुताबिक हिमाचल व गुजरात में पार्टी को भाजपा के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ सकता है. जब इन दोनों राज्यों के नतीजे आयेंगे तोराहुलगांधीअध्यक्षकी कुर्सी संभाल पार्टी की राजनीतिक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 15, 2017 5:49 PM

राहुल गांधी कल कांग्रेसपार्टी के अध्यक्ष का कार्यभार संभालने जा रहे हैं. गुजरात व हिमाचल चुनाव के एग्जिट पोल से मिल रहे संकेतों के मुताबिक हिमाचल व गुजरात में पार्टी को भाजपा के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ सकता है. जब इन दोनों राज्यों के नतीजे आयेंगे तोराहुलगांधीअध्यक्षकी कुर्सी संभाल पार्टी की राजनीतिक भविष्य के बारे में रणनीति बना रहे होंगे. कांग्रेस पार्टी सिर्फ चुनाव हार ही नहीं रही है बल्कि इस हार के साथ – साथ पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट रहा है.. अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी के सामने कई चुनौतियां है.

1.कांग्रेस पार्टी के लिए स्पेस की कमी नहीं है. किसी भी सरकार से शत प्रतिशतजनता समर्थक नहीं हो सकती. मोदी सरकार भी इस बात का अपवाद नहीं है. एक स्पेस है जहां सत्ताविरोध की लहर है, लेकिन कांग्रेस पार्टी ऐसे वर्गतक पहुंचने में नाकाम रही है. विपक्ष में होते हुए भी कांग्रेस पार्टी में आक्रमकता का आभाव है.केंद्रीयनेतृत्वअगर चुस्त – दुरूस्त न हो तो नीचेकेकार्यकर्ताभीहतोत्साहित महसूस करते हैं. ऐसे में राहुल गांधी में फिर से नया जान फूंकने की चुनौती है. चुनाव जीतकर ही नया उत्साह पैदा किया जा सकता है. कयासों से अनुमान लगा पाना कठिन है.

2. नयी पीढ़ीका नेतृत्वतैयारकरना – ट्वीटर और फेसबुक के जमाने में कांग्रेस के नेता यूथ से कनेक्ट नहीं हो पा रहे हैं. इसके उलट बीजेपी ने अपना नेतृृत्व युवा वर्ग को हस्तांरित कर दिया है. भाजपा ने 75 साल से ज्यादा उम्र के लोगों पर मंत्री बनने पर प्रतिबंध लगा दिया है. पुराने नेता अमूमन भारत के युवा पीढ़ी का मूड भांपने में विफल होते हैं. वह हमेशा युवा को जेपी के जमाने से जोड़कर देखते हैं. आज के जरूरतों के हिसाब से कांग्रेस की रणनीति फिट नहीं बैठती है. भाजपा ने महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस और असम में सर्वानांद सोनोवाल को मुख्यमंत्री बनाया. इनके उम्र पर निगाह डाले तो ये आने वाले दस बीस सालों तक राजनीति में सक्रिय रह सकते हैं. कांग्रेस के पास जो युवा नेता है, उन्हें आगे नहीं आने दिया जा रहा है.

3.क्षत्रपों को तैयार करना – जिन राज्यों में कांग्रेस का प्रादेशिक नेतृत्व मजबूत है वहां पार्टी की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है.पंजाबमें कैप्टन अमरिंदरसिंहनेजीत दर्ज की,क्योंकिवोटर्सके सामने अमरिंदर के रूप में मजबूत विकल्प था. कांग्रेस के प्रादेशिक नेतृत्व को देखे तो हर जगह एक टकराव की स्थिति है. राजस्थान में अशोक गहलोत बनाम राजेश पायलट, मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह बनाम माधव राव सिंधिया, बिहार में अशोक चौधरी बनाम सदानंद सिंह. नेतृत्व में भ्रम की स्थिति से जनता के बीच अच्छा संदेश नहीं जाता है. खासतौर से चुनाव के पहले यह स्थिति जनता को दिग्भ्रमित करती है.

4. क्या मोदी के विकल्प के रूप में खुद को पेश कर पायेंगे राहुल – राहुल के सामने नरेंद्र मोदी जैसे मजूबत नेता है, जो लगातार मेहनत करने के लिए जाने जाते हैं. मोदी को जनता के साथ संवाद में महारत हासिल है. वहीं हर मौके को भुनाना जानते हैं. मुद्दा चाहे कोई भी रहे, वह अपने हक में इसे भुनाते हैं. यही नहीं हमेशा कैंपेन मोड में रहने वाले प्रधानमंत्री के सामने राहुल गांधी किस तरह से खुद को प्रोजेक्ट करते हैं. यह देखा जाना भी अहम होगा.

5.कांग्रेस पार्टी के कामकाज की ढंग पुरानी पड़ती जा रही है और यह पार्टी कम ब्यूरोक्रेटिक मशीनरी की तरह काम कर रही है. हर फैसले के लिए लोग गांधी परिवार की ओर देखते हैं. वहीं बीजेपीनेपार्टीको कॉरपोरेट लुक दिया है. खबर यह है कि देशकेहर जिले में भाजपा का कार्यालयबनरहा है. जिसकेनिर्माणकाजिम्मालार्सन एंड टुब्रो कंपनी को है. भाजपा की छवि एक साधनसंपन्नपार्टी की है.

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