नयी दिल्ली : भाजपा के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने 2जी मामले में सीबीआई की विशेष अदालत में सभी आरोपियों को बरी किये जाने पर नाराजगी जतायी है. उन्होंने कहा कि 2जी मामले में आरोपियों को बरी किये जाने के फैसले के खिलाफ सरकार को तुरंत दिल्ली उच्च न्यायालय में अपील करना चाहिए. सुब्रमण्यम स्वामी उन याचिकाकर्ताओं में शामिल हैं जिनकी याचिका पर 2जी मामले में सीबीआई जांच के आदेश दिये गये थे.
पूर्व दूरसंचार मंत्री और द्रमुक नेता ए. राजा, उनकी पार्टी की नेता और राज्यसभा सदस्य कनिमोझी को 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामला घोटाले में सीबीआई की विशेष अदालत ने गुरुवार को बरी कर दिया. स्वामी ने अदालत परिसर के बाहर कहा, सरकार को सभी आरोपियों को बरी किये जाने के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील करनी चाहिए.
बाद में स्वामी ने ट्वीट कर तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयलिलता के आय से अधिक मामले का हवाला दिया जिसमें जयललिता और उनकी निकट सहयोगी शशिकला को कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बरी कर दिया था, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने उस फैसले को पलट दिया.
दूसरी ओर सरकार की ओर से दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में निचली अदालत द्वारा सभी आरोपियों को बरी करने के मामले में अपील करने का फैसला जांच एजेंसी करेगी.
गौरतलब है कि स्वामी की जनहित याचिका के आधार पर ही उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई को इस मामले की जांच करने का आदेश दिया था. इस संबंध में सीबीआई का कहना है, हमें अभी तक पूरे फैसले की प्रति नहीं मिली है. हम इसका अध्ययन करेंगे, कानूनी सलाह लेंगे और फिर भविष्य के कदम तय करेंगे. प्रवर्तन निदेशालय के सूत्रों का कहना है कि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले पर विशेष अदालत के फैसले के खिलाफ अपील करेगी.
फैसला आने के तुरंत बाद कांग्रेस ने पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक विनोद राय पर निशाना साधा. कैग रहते हुए विनोद राय ने ही कहा था कि 2जी स्पेक्ट्रम के 122 लाइसेंसों के आवंटन के दौरान 1.76 लाख करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है. कांग्रेस प्रवक्ता टॉम वड्डकन ने टीवी चैनलों से कहा कि 2जी पर यह फैसला कैग के इतिहास पर काला धब्बा रहेगा और इसके लिए तत्कालीन कैग के खिलाफ मुकदमा चलाया जाना चाहिए.
2जी मामले में 21 अक्तूबर, 2009 को सीबीआई ने दूरसंचार विभाग के अज्ञात अधिकारियों, पांच अज्ञात लोगों और फर्मों आदि के खिलाफ शुरुआती प्राथमिकी दर्ज की थी. बाद में मामला उच्चतम न्यायालय पहुंचा जिसके बाद तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा का इस्तीफा देना पड़ा और उनकी गिरफ्तारी हुई. इस तथाकथित घोटाले ने तत्कालीन संप्रग सरकार की नींद उड़ा दी थी.