दिनाकरण ने हर मुश्किल से पार पाकर विरोधियों को पीछे छोड़ा
चेन्नई : हाशिये पर चल रहे अन्नाद्रमुक नेता टीटीवी दिनाकरण ने आर के नगर विधानसभा सीट पर हुये उपचुनाव में जीत हासिल कर अपने प्रचार की मुख्य बात को एक बार फिर साबित किया कि उन्हें अम्मा (दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता) की जगह लेने के लिये लोगों द्वारा चुना जायेगा. जयललिता दो बार इस सीट का […]
By Prabhat Khabar Digital Desk |
December 24, 2017 9:45 PM
चेन्नई : हाशिये पर चल रहे अन्नाद्रमुक नेता टीटीवी दिनाकरण ने आर के नगर विधानसभा सीट पर हुये उपचुनाव में जीत हासिल कर अपने प्रचार की मुख्य बात को एक बार फिर साबित किया कि उन्हें अम्मा (दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता) की जगह लेने के लिये लोगों द्वारा चुना जायेगा.
जयललिता दो बार इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. दो पत्तियों वाले चुनाव चिन्ह नहीं मिलने, अपने खिलाफ कई मामले दर्ज होने जैसे तमाम मुश्किलों के बावजूद दिनाकरण की जीत को अन्नाद्रमुक और मुख्य विपक्षी दल द्रमुक दोनों के लिये चिंता की बात के तौर पर देखा जा रहा है. द्रमुक इस चुनाव में सत्ताधारी दल के बाद तीसरे नंबर पर रही. मुख्यमंत्री के पलानीस्वामी द्वारा विद्रोह करने के बाद दिनाकरण ने मौजूदा सरकार को हटाने की शपथ ली थी. उन्होंने पलानीस्वामी पर अपनी बुआ और जेल में बंद नेता वी के शशिकला द्वारा जताये गये विश्वास को तोडने का आरोप लगाया था.
इस साल फरवरी में आय से अधिक संपत्ति के मामले में चार साल कैद की सजा काटने के लिये बेंगलुरु जेल भेजी गयी शशिकला ने दिनाकरण को पार्टी का नेतृत्व करने के लिये चुना था. दिनाकरण के लिये चुनावी सियासत नई नहीं है. वह 1999 में पेरियाकुलम सीट से लोकसभा के लिये निर्वाचित हुये थे और 2004 में वह राज्यसभा के लिये चुने गये थे. अपने शानदार सांगठनिक कौशल के लिये जाने जाने वाले दिनाकरण चुनावों के समय सहयोगियों के साथ चर्चा में पार्टी की तरफ से नियुक्त किये जाने वाले प्रमुख लोगों में रहते थे हालांकि वह पर्दे के पीछे से भूमिका निभाते थे. हालांकि पार्टी के उप महासचिव के तौर पर उनके अचानक उभरने से कुछ लोग नाखुश थे.
पलानीस्वामी ने विरोधी नेता और अब उप मुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेलवम के साथ मिलकर अन्नाद्रमुक का मुख्य धड़ा बनाया जिसके पास अभी दो पत्तियों का चुनाव चिन्ह है. बीती अप्रैल-मई में दिनाकरण उस समय मुश्किल दौर से गुजरे जब दिल्ली पुलिस ने उन्हें दो पत्ती चुनाव चिन्ह हासिल करने के लिये चुनाव अधिकारियों को कथित तौर पर घूस देने की कोशिश में गिरफ्तार किया. इसके अलावा उन पर फेरा का भी एक मामला है.
उनके समर्थक 18 विधायकों को अयोग्य ठहरा दिया गया था. तमाम मुश्किलों के बावजूद दिनाकरण की यह जीत तमिलनाडु की सियासत में नये समीकरण की नींव रख सकती है.