अब भारत में प्लास्टिक से नहीं होगा पर्यावरण को नुकसान, बनेगी बिजली

नयी दिल्ली : देश में पर्यावरण के लिए खतरा बन चुके प्लास्टिक जल्दी ही ऊर्जा का स्रोत बनने जा रहे हैं. जी हां. प्लास्टिक से अब बिजली बनेगी. चिप्स, बिस्कुट, केक और चाॅकलेट जैसे खाद्य पदार्थों की पैकिंग में इस्तेमाल होने वाले चमकीले प्लास्टिक का इस्तेमाल अब बिजली घर में ईंधन के तौर पर किया […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 25, 2017 2:31 PM

नयी दिल्ली : देश में पर्यावरण के लिए खतरा बन चुके प्लास्टिक जल्दी ही ऊर्जा का स्रोत बनने जा रहे हैं. जी हां. प्लास्टिक से अब बिजली बनेगी. चिप्स, बिस्कुट, केक और चाॅकलेट जैसे खाद्य पदार्थों की पैकिंग में इस्तेमाल होने वाले चमकीले प्लास्टिक का इस्तेमाल अब बिजली घर में ईंधन के तौर पर किया जायेगा. देश में अपनी तरह का ऐसा पहला प्रयोग दिल्ली-उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित गाजीपुर स्थित कूड़े से बिजली बनाने वाले संयंत्र में शुरू हो गया है. चंडीगढ़, मुंबई व देहरादून सहित आठ और शहरों में भी यह काम जल्द शुरू होने की उम्मीद है.

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गैर-सरकारी संगठन भारतीय प्रदूषण नियंत्रण संस्थान (आईपीसीए) के निदेशक आशीष जैन ने बताया कि इस तरह के प्लास्टिक का इस्तेमाल यहां गाजीपुर स्थित बिजलीघर में किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि भारत में दुनिया में सबसे अधिक प्लास्टिक के सामान का इस्तेमाल होता है. इस लिहाज से इस तरह के प्लास्टिक के निस्तारण की शुरुआत महत्वपूर्ण है.

उन्होंने बताया कि बिस्कुट, नमकीन, केक, चिप्स सहित कई अन्य खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग के लिए एक विशेष चमकीले प्लास्टिक मल्टी लेयर्ड प्लास्टिक (एमएलपी) का इस्तेमाल होता है. इस प्लास्टिक में खाद्य पदार्थ तो सुरक्षित रहते हैं, लेकिन इसका निपटान टेढ़ी खीर है. यह न तो गलता है, न ही किसी रूप में नष्ट होता है. इसलिए ऐसा एमएलपी कचरा दिन-ब-दिन बड़ी समस्या बनता जा रहा है.

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कूड़ा बीनने वाले भी इसे नहीं उठाते, क्योंकि इसका आगे इस्तेमाल नहीं होता. आईपीसीए ने ऐसे नॉन-रिसाइक्लेबल प्लास्टिक कूड़े को एकत्रित करने और उसे बिजली घर तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है. दिल्ली एनसीआर में यह संस्थान इस तरह के 6-7 टन प्लास्टिक को एकत्रित कर बिजली घर तक पहुंचा रहा है.

एक अध्ययन के अनुसार, प्लास्टिक का सबसे अधिक इस्तेमाल करने वाले देशों मेंशुमार भारत में हर दिन 25,490 टन (वर्ष 2011-12) प्लास्टिक कचरा निकलता है. इसमें एमएलपी का हिस्सा 1200 टन है. जैन ने कहा कि मानव स्वास्थ्य व पारिस्थितिकी को हो रहे भारी नुकसान को देखते हुए आईपीसीए ने ऐसे प्लास्टिक कचरे के समुचित संग्रहण और निपटान की एक परियोजना वीकेयर शुरू की है.

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परियोजना मुख्य रूप से एमएलपी कचरे के निपटान पर केंद्रित हैं. पेप्सीको इंडिया, नेस्ले, डाबर, परफैटी वान मेलेप्राईवेट लिमिटेड व धर्मपाल सत्यपाल जैसी प्रमुख कंपनियां इस परियोजना को चलाने में मदद के लिए आगे आयीं. उन्होंने कहा कि वीकेयर परियोजना के तहत आईपीसीए कचरा बीनने वालों के साथ-साथ बड़े कचरा स्थलों के प्रबंधकों के साथ गठजोड़ कर रही है, ताकि एमएलपी को वहीं से अलग कर संयंत्र तक लाया जा सके. गाजीपुर में संयंत्र के लिए पूर्वी दिल्ली नगर निगम के साथ गठजोड़ किया गया है.

उन्होंने बताया कि गुड़गांव, फरीदाबाद, गाजियाबाद, चंडीगढ़, मुंबई व देहरादून में भी इस तरह के संयंत्र लगाने की कोशिश है. इसके लिए स्थानीय निकायों व विभिन्न कंपनियों से बातचीत चल रही है और अगले कुछ दिनों में इन शहरों में भी कोई पहल हो सकती है. विशेषज्ञों का कहना है कि शहरीकरण व बदलती जीवन शैली के चलते प्लास्टिक व इसके विभिन्न उत्पादों का उपयोग बढ़ा, तो इससे पैदा होने वाले कचरा भी उसी अनुपात में बढ़ रहा है.

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