हिमाचल में धूमल को बेअसर करने जयराम ठाकुर बने मोदी-शाह की पसंद, जेपी नड्डा ने दिया साथ

नयी दिल्ली : हिमाचल प्रदेश में भाजपा के दो नेताओं शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल का सबसे ज्यादा प्रभाव रहा है. सुलझे व्यक्तित्व वाले शांत कुमार जहां पार्टी के मार्गदर्शक मंडल में शामिल होकर सक्रिय राजनीति से बहुत हद तक अलग हैं, वहीं 73 साल के प्रेम कुमार धूमल अब भी हिमाचल और भाजपा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 27, 2017 1:31 PM

नयी दिल्ली : हिमाचल प्रदेश में भाजपा के दो नेताओं शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल का सबसे ज्यादा प्रभाव रहा है. सुलझे व्यक्तित्व वाले शांत कुमार जहां पार्टी के मार्गदर्शक मंडल में शामिल होकर सक्रिय राजनीति से बहुत हद तक अलग हैं, वहीं 73 साल के प्रेम कुमार धूमल अब भी हिमाचल और भाजपा की अंदरूनी राजनीति में खूब जोर लगाते हैं. हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल बुरी तरह चुनाव हार गये. इसके बावजूद धूमल समर्थकों ने उन्हें ही मुख्यमंत्री चुनने के लिए भाजपा हाइकमान पर दबाव बनाया.

धूमल के समर्थक विधायकों के हंगामे के कारण राज्य में नेता चुनने की प्रक्रिया पूरा कराने गयीं रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण और उनके साथ नरेंद्र सिंह तोमर को शिमला से वापस दिल्ली लौटना पड़ा था. नरेंद्र मोदी-अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा के मजबूत उदय के बाद पार्टी में केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाने का ऐसा उदाहरण पहले देखने को नहीं मिला था. धूमल समर्थक दो विधायकों ने अपनी विधायकी छोड़ने की एलान कर दिया, ताकि मुख्यमंत्री बनाये जाने पर प्रेम कुमार धूमल वहां से चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंच सकें.

धूमल के समर्थकों का यह व्यवहार पार्टी हाइकमान को नागवार गुजरा. ध्यान देने की बात यह भी है कि प्रेम कुमार धूमल को भाजपा ने विधानसभा चुनाव के लिए मतदान से दो-तीन दिन पहले ही उम्मीदवार घोषित किया था. भाजपा को चूंकि नये युवा नेतृत्व को उभारना था, इसलिए पहले मुख्यमंत्री उम्मीदवार नहीं घोषित किया गया. ऐसे में जिस आनन-फानन में बुजुर्ग प्रेम कुमार धूमल को उम्मीदवार घोषित किया गया, उससे लोगों में यह संदेश भी गया कि भीतरघात के भय से शायद भाजपा नेतृत्व धूमल के दबाव में है.

धूमल इस बार सुजानपुर से चुनाव लड़े थे और कांग्रेस के राजिंदर राणा से चुनाव हार गये थे, जबकि भाजपा ने राज्य की 68 में 44 सीटें जीत ली. शायद धूमल के दबाव के कारण ही केंद्रीय नेतृत्व में अच्छी पैठ रखने वाले जेपी नड्डा का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए आगे नहीं किया गया. माना जाता है कि धूमल व नड्डा में अच्छे रिश्ते नहीं हैं और धूमल के दबदबे के कारण ही नड्डा को शिमला से दिल्ली का रुख करना पड़ा था.

इन दुश्वारियों से भाजपा नेतृत्व को निबटना था. प्रेम कुमार धूमल राजपूत समुदाय से आते हैं, जो हिमाचल प्रदेश का सबसे प्रभावी तबका है और इस जाति के 28 प्रतिशत वोट इस पहाड़ी राज्य में हैं. वहीं, जेपी नड्डा ब्राह्मण हैं. ऐसे में भाजपा को एक ऐसा चेहरा चाहिए था जो धूमल काे बेअसर करे और राजपूत समुदाय से हो. ऐसे में पांच बार विधायक रहे जयराम ठाकुर का नाम मुख्यमंत्री के लिए तय किया गया. नड्डा की तरह जयराम ठाकुर भी धूमल कैबिनेट में रहे हैं. जेपी नड्डा और जयराम ठाकुर में निजी रिश्ते बहुत अच्छे हैं. जयराम ठाकुर का मुख्यमंत्री के रूप में नाम बढ़ाने में जेपी नड्डा की भी भूमिका मानी जाती है. बहरहाल, भाजपा हाइकमान ने जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री बनाकर प्रेम कुमार धूमल पर लगाम तो लगा ही दी.

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