नयी दिल्ली : धरोहरों की बात करें तो पिछला वर्ष उनके लिए मिला-जुला रहा. एक ओर बैंगलुरु के 100 वर्ष से भी अधिक पुराने एक ऐतिहासिक स्थल को गिरा दिया गया, दिल्ली में वास्तुशिल्प के एक आधुनिक आश्चर्य को गिरा दिया गया वहीं बीते वर्ष अहमदाबाद भारत का विश्व विरासत कहलाने वाला पहला शहर बना. वर्ष 2017 में धरोहरों को गिराने और उनके जर्जर होने की घटनाएं सुर्खियों में छाई रहीं लेकिन यूनेस्को से प्राप्त सम्मान की खबर ने कुछ सुकून के पल भी दिए.
बैंगलुरु के क्रमबिजल हॉल को नवंबर में प्रशासन ने गिरा दिया. इससे लोगों में काफी आक्रोश देखने को मिला था. हॉल का नाम लाल बाग के प्रसिद्ध वास्तुकार जी एच क्रमबिजल के नाम पर रखा गया था. यह विडंबना थी कि इस प्रसिद्ध इमारत को ऐसे समय मिट्टी के ढेर में तब्दील किया गया जब विश्व विरासत सप्ताह मनाया जा रहा था.
विरासतों को गिराने और उनपर ध्यान नहीं देने का सिलसिला पटना में भी देखा गया जहां एक ऐसे ऐतिहासिक मकान को जमींदोज किया गया जिसमें महात्मा गांधी वर्ष 1917 में बिहार के अपने पहले दौरे के दौरान रुके थे. इसे दुर्भाग्यूपूर्ण ही कहेंगे कि चंपारण सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष में ही इस इमारत का वजूद मिटाया गया.
वास्तुकार राज रेवल और इंताच को भारत सरकार के साथ चल रहे कानूनी मामले में मिली हार के बाद राष्ट्रीय राजधानी स्थित प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थलों हॉल ऑफ नेशंस और हॉल ऑफ इंडस्टरीज को अप्रैल में गिरा दिया गया था. इन दोनों इमारतों का निर्माण 1970 के दशक में हुआ था. दिल्ली के दिल्ली दरबार की याद में बना कोरोनेशन पार्क भी अपनी जर्जर और खस्ताहाल स्थिति के कारण सुर्खियों में रहा.
धरोहरों से जुड़ी इन निराशाजनक खबरों के बीच भारत के लिए जुलाई के महीने में एक अच्छी खबर आयी. अहमदाबाद को यूनेस्को ने विश्व धरोहर शहर घोषित किया. भारत के लिए इस तरह का यह पहला सम्मान था. इसके साथ ही यूनेस्को द्वारा सांस्कृतिक विरासत संरक्षण के लिए दिए जाने वाले एशिया-प्रशांत पुरस्कारों में नवंबर में मुंबई के रॉयल ओपेरा हाउस व क्राइस्ट चर्च और तमिलनाडु के एक मंदिर को मेरिट पुरस्कार दिया गया.