सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों का वस्तुत: सीजेआई के खिलाफ बगावत, कहा-लोकतंत्र खतरे में

नयी दिल्ली : लोकतंत्र के खतरे में होने के बारे में चेतावनी देते हुए उच्चतम न्यायालय के चार सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीशों ने शुक्रवार को देश के प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ वस्तुत: बगावत कर दी. उन्होंने ‘चयनात्मक तरीके से’ मामलों के आवंटन और कुछ न्यायिक आदेशों पर सवाल उठाये. इससे समूची न्यायपालिका और राजनीति में तूफान […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 12, 2018 10:28 PM

नयी दिल्ली : लोकतंत्र के खतरे में होने के बारे में चेतावनी देते हुए उच्चतम न्यायालय के चार सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीशों ने शुक्रवार को देश के प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ वस्तुत: बगावत कर दी. उन्होंने ‘चयनात्मक तरीके से’ मामलों के आवंटन और कुछ न्यायिक आदेशों पर सवाल उठाये. इससे समूची न्यायपालिका और राजनीति में तूफान खड़ा हो गया. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के बाद उच्चतम न्यायालय में दूसरे सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीश जे चेलामेश्वर समेत चार न्यायाधीशों के अप्रत्याशित कदम ने हाल के महीनों में शीर्ष अदालत में देश के शीर्ष न्यायाधीश और कुछ वरिष्ठ न्यायाधीशों के बीच मतभेद को सामने ला दिया.

उच्चतम न्यायालय में फिलहाल 25 न्यायाधीश हैं. जब न्यायाधीशों ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया तो न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने खुद कहा कि भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में यह एक ‘असाधारण घटना’ है. उन्होंने कहा, ‘कभी-कभी उच्चतम न्यायालय का प्रशासन ठीक नहीं होता है और पिछले कुछ महीनों में अवांछनीय बातें हुई हैं.’ न्यायाधीश ने शीर्ष अदालत के कामकाज को प्रभावित करनेवाले कुछ मुद्दों पर न्यायमूर्ति मिश्रा पर ‘सुधार के लिए कोई कदम’ नहीं उठाने का आरोप लगाया. न्यायाधीश ने कहा उन्होंने इन मुद्दों को प्रधान न्यायाधीश के समक्ष उठाया था. न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि अगर इस संस्था की रक्षा नहीं की जाती है तो इस देश में ‘लोकतंत्र का अस्तित्व नहीं रहेगा.’

आजाद भारत के इतिहास में इस तरह की यह पहली घटना है. इसने अनिश्चितता की स्थिति पैदा कर दी है कि कैसे इस पवित्र संस्था में खुले मतभेद का समाधान किया जायेगा. कड़ी आलोचना करते हुए न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उन्होंने (चारों न्यायाधीशों ने) शुक्रवार की सुबह प्रधान न्यायाधीश से मुलाकात की थी और ‘संस्था को प्रभावित कर रहे मुद्दों को उठाया.’ प्रधान न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय के चार सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम में होते हैं जो उच्चतर न्यायपालिका के लिए न्यायाधीशों का चयन करती है. न्यायमूर्ति चेलामेश्वर के साथ संवाददाता सम्मेलन में न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ भी मौजूद थे.

न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा, ‘अगर इस संस्था की रक्षा नहीं की जाती है तो इस देश में लोकतंत्र का अस्तित्व नहीं रहेगा.’ उन्होंने कहा कि इस तरह से संवाददाता सम्मेलन करना ‘बेहद पीड़ादायी’ है. संवाददाता सम्मेलन का आयोजन न्यायमूर्ति चेलामेश्वर के आवास पर आयोजित किया गया था. उन्होंने कहा कि सभी चार न्यायाधीश ‘सीजेआई को राजी करने में विफल रहे कि कुछ बातें सही नहीं हैं और इसलिए आपको सुधार के उपाय करने चाहिए. दुर्भाग्य से हमारे प्रयास विफल रहे.’ उन्होंने कहा, ‘और हम चारों का मानना है कि लोकतंत्र खतरे में है और हालिया अतीत में कई बातें हुई हैं.’

यह पूछे जाने पर कि ये कौन से मुद्दे थे तो इसपर उन्होंने कहा कि इसमें ‘सीजेआई द्वारा मामलों का आवंटन भी शामिल था.’ उनकी टिप्पणी का महत्व है क्योंकि शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को विशेष सीबीआई न्यायाधीश बीएच लोया की कथित तौर पर रहस्यमय तरीके से मौत के मुद्दे पर विचार करना शुरू किया. लोया सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले पर सुनवाई कर रहे थे. न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने कहा, ‘हमारी संस्था और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी है. संस्था को बचाने के लिए कदम उठाने के लिए सीजेआई को समझाने के हमारे प्रयास विफल रहे हैं. यह किसी देश और खासतौर पर इस देश के इतिहास और न्यायपालिका की संस्था में एक असाधारण घटना है. बेहद दुख के साथ हम यह संवाददाता सम्मेलन बुलाने पर मजबूर हुए हैं.’

इस घटनाक्रम पर सीजेआई के कार्यालय की तरफ से तत्काल कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आयी है. यह पूछे जाने पर कि क्या वे चाहते हैं कि प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग चलाया जाये तो न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा, ‘देश को फैसला करने दें.’ इस बीच, केंद्र ने साफ कर दिया कि वह इस अप्रत्याशित घटनाक्रम में हस्तक्षेप नहीं करने जा रहा है. उसने कहा कि न्यायपालिका खुद से मुद्दे का समाधान करेगी. विधि राज्य मंत्री पी पी चौधरी ने कहा, ‘हमारी न्यायपालिका पूरी दुनिया में प्रतिष्ठित, स्वतंत्र है और वे खुद से मामले का समाधान कर लेंगे.’

इस बीच, चार न्यायाधीशों ने सीजेआई को जो सात पन्नों का पत्र लिखा है उसमें कहा गया है, ‘गहरी व्यथा और चिंता के साथ हमने सोचा है कि आपको यह पत्र लिखना उचित है ताकि इस अदालत द्वारा सुनाये गये कुछ न्यायिक आदेशों को उजागर किया जा सके, जिसने न्याय प्रदान करने की प्रणाली के समूचे कामकाज और उच्च न्यायालयों की स्वतंत्रता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है. इसके अलावा, इसने प्रधान न्यायाधीश के कार्यालय के प्रशासनिक कामकाज को प्रभावित किया है.’ न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने बताया कि पत्र कुछ महीने पहले सीजेआई को भेजा गया था. इसे मीडिया को जारी किया गया.

पत्र में कहा गया है, ‘इस देश के विधिशास्त्र में भी यह सुस्थापित है कि प्रधान न्यायाधीश अन्य न्यायाधीशों के बराबर ही होते हैं और वे न तो कुछ अधिक या न ही इससे कुछ कम होते हैं.’ पत्र में कहा गया है, ‘ऐसे कई दृष्टांत है जहां राष्ट्र और संस्था के लिए दूरगामी परिणामवाले मामलों को इस अदालत के प्रधान न्यायाधीशों ने चयनात्मक आधार पर इस तरह के आवंटन के लिए बिना किसी तार्किक आधार के ‘उनकी पसंद’ की पीठों को आवंटित किया है. किसी भी कीमत पर इससे रक्षा की जानी चाहिए.’ पत्र में कहा गया है, ‘संस्था के शर्मसार होने से बचने के लिए हम विवरण का उल्लेख नहीं कर रहे हैं, लेकिन इस बात पर गौर करते हैं कि इस तरह के विचलन ने कुछ हद तक पहले ही इस संस्था की छवि को क्षति पहुंचायी है.’

पत्र में मामलों के आवंटन पर न्यायाधीशों की चिंताओं को भी उठाया गया है. विधिक बिरादरी ने देश की सर्वोच्च अदालत में घटनाक्रमों के नतीजों पर ‘दुख’ और ‘निराशा’जाहिर की. पूर्व सीजेआई केजी बालकृष्णन ने कहा, ‘यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.’ पूर्व विधि मंत्री अश्विनी कुमार ने कहा, ‘यह न्यायिक व्यवस्था के लिए बेहद दुखद दिन है.’ वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी ने कहा, ‘अपने मतभेदों को सामने रखने के लिए चार न्यायाधीशों के पास कुछ ठोस वजहें होंगी.’ न्यायाधीशों के संयुक्त संवाददाता सम्मेलन के बाद प्रधान न्यायाधीश मिश्रा से मुलाकात करनेवाले अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा, ‘इससे बचा जा सकता था. पूरा सौहार्द सुनिश्चित करने के लिए सभी न्यायाधीशों को अब बुद्धिमत्ता के साथ काम करना होगा.’ संवाददाता सम्मेलन में न्यायाधीशों ने इन बातों को खारिज कर दिया कि उन्होंने अनुशासन तोड़ा है. उन्होंने कहा कि वे पहले की तरह कर्तव्य का निर्वहन करते रहेंगे. न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा, ‘किसी ने भी अनुशासन नहीं तोड़ा है और यह राष्ट्र का कर्ज है जिसे हमने अदा किया है.’ गोगोई इस साल अक्तूबर में प्रधान न्यायाधीश मिश्रा की जगह लेंगे.

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